19-Aug-2017 05:48 AM
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प्रदेश में सरकार अपने संगठनों और आयोगों के प्रति कितनी संवेदनशील है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाही करने वाली संस्था लोकायुक्त पुलिस में मुखिया का पद रिक्त हुए एक साल का समय हो गया है, लेकिन अब तक नए लोकायुक्त की नियुक्ति सरकार द्वारा नहीं की गई है। यही नहीं इस संस्था को लंबे इंतजार के बाद उपलोकायुक्त तब मिल सका जब की लोकायुक्त का पद खाली हो गया था। यही नहीं प्रदेश में कई ऐसे आयोग हैं जो अब भी अध्यक्ष के बगैर लंबे समय से काम कर रहे हैं। सरकार इस मामले में नेता प्रतिपक्ष न होने का बहाना बनाती रहती थी और अब नेता प्रतिपक्ष होने के बाद भी पद खाली पड़े हैं।
ज्ञातव्य है की लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए राज्य मानवाधिकार आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, राज्य महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग के अलावा प्रदेश में खाद्य सुरक्षा आयोग, सूचना और प्रशासनिक सुधार आयोग आदि का गठन किया गया है, लेकिन इनमें से अधिकांश सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। जहां कई आयोगों में सरकार ने अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति कर दी है, लेकिन अध्यक्ष और सदस्य सक्रिय नहीं हैं। जिन आयोगों में अध्यक्ष और सदस्य हैं उनमें राज्य महिला आयोग हमेशा ही सक्रिय रहता है। जबकि बाल अधिकार संरक्षण आयोग, राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष और सदस्य शोभा की वस्तु बनकर रह गए हैं। उधर, मानव अधिकार, सूचना और प्रशासनिक सुधार आयोग में नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं। इनके लिए कहीं पैनल मांगा गया है तो कहीं फाइल सीएम सचिवालय के पास ही अटकी हुई है।
एक अध्यक्ष एवं 2 सदस्य वाले राज्य मानवाधिकार आयोग में लंबे समय से मुखिया नहीं है। अगस्त 2010 में आयोग से सेवानिवृत हुए जस्टिस डीएन धर्माधिकारी इसके अंतिम पूर्णकालिक अध्यक्ष थे। मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष के खाली पद को भरने के लिए भी हाईकोर्ट से पैनल मांगा गया है। करीब दो माह पहले भेजे पत्र का अब तक कोई जवाब नहीं आया है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि जब तक पैनल नहीं मिल जाता, तब तक सरकार के हाथ बंधे हुए हैं। पैनल के लिए स्मरण पत्र भेजा जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश में 13 सितंबर 1995 के दिन जरूरतमंद पीडि़तों को सहायता पहुंचाने के उद्देश्य से मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया था, लेकिन सरकार के लचर रवैये के चलते आयोग अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पा रहा है। दरअसल, मानव अधिकार आयोग में पिछले 7 साल से स्थाई अध्यक्ष नहीं है। कार्यकारी अध्यक्ष के सहारे काम चल रहा है, जिसके चलते लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है। लंबित मामलों की संख्या में मध्यप्रदेश चौथे स्थान पर आ गया है। साल 2010 में जस्टिस डीएम धर्माधिकारी मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उसके बाद पूर्व जस्टिस एके सक्सेना को कार्यकारी चेयरमैन बनाया गया। जब वे रिटायर हो गए तो रिटायर्ड डीजीपी नंदन दुबे को कार्यकारी चेयरमैन पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई और फिलहाल रिटायर्ड आईपीएस वीरेन्द्र मोहन कंवर कार्यकारी अध्यक्ष है, जबकि दो सदस्यों के पद खाली हैं। नियमानुसार मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन पद पर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या देश के किसी भी हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश को ही चेयरमैन बनाया जा सकता है। इसके बावजूद एक रिटायर्ड आईपीएस को एक्टिंग चेयरमैन बनाने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
सूचना आयुक्त के रिक्त पदों को भरने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग विज्ञापन के जरिए आवेदन बुला चुका है। प्राप्त आवेदनों की सूची बनाकर मुख्यमंत्री सचिवालय को सौंपी जा चुकी है। नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में नेता प्रतिपक्ष सहित अन्य सदस्यों की बैठक होनी है। बैठक की तारीख तय नहीं। मुख्यमंत्री की घोषणा पर सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रशासनिक सुधार आयोग को लेकर अधिसूचना जारी की। दो-तीन दौर की बैठकों के बाद अध्यक्ष व सदस्यों की योग्यता के पैमाने तय किए गए। इसकी अधिसूचना भी निकल गई पर मामला फाइलों में सिमटकर रह गया। सरकार के स्तर पर आयोग में नियुक्ति को लेकर न कोई प्रस्ताव और न ही कोई सुगबुगाहट। ऐसे में इन आयोगों की उपयोगिता पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या ये आयोग केवल लोगों को भ्रमित करने के लिए गठित किए गए हैं।
प्रभाव में नहीं दिखा
खाद्य आयोग
राज्य शासन द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के प्रावधान अनुसार 21 जुलाई को मध्यप्रदेश खाद्य आयोग का गठन किया गया है। आयोग के अध्यक्ष भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी आरके स्वाई को बनाया गया है। आयोग द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में वितरण होने वाली खाद्यान्न सामग्री, स्कूलों में छात्र-छात्राओं को वितरण होने वाले मध्यान्ह भोजन और आंगनवाड़ी में बच्चों एवं महिलाओं को वितरण किए जाने वाले पूरक पोषण आहार की मॉनीटरिंग एवं मूल्यांकन, पात्र हितग्राहियों को योजनाओं के लाभ न प्राप्त होने की शिकायत अथवा स्व-प्रेरणा से जांच का कार्य किया जायेगा, लेकिन अभी तक खाद्य आयोग प्रभावी नहीं दिखा।
- सुनील सिंह