आरक्षण की सुलगती आग
19-Aug-2017 05:50 AM 1234827
जिस तरह मुंबई की सड़कों पर लाखों मराठा उतरे, शहर की सांसें रोक गए उससे आगामी दिनों में सरकार के लिए संकट का संकेत दे गए। मराठा संकेत दे गए कि सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण की उनकी मांग अब पुरानी हो चुकी है, लेकिन गुजरते समय के साथ उनकी मांगें बस वहीं तक सीमित नहीं रही हैं। अब उन्होंने किसानों की पूर्ण कर्ज माफी की मांग भी उठाई है। इन मांगों को मानना अपने-आप में कठिन है। मगर इसके साथ एक और ऐसी मांग मराठा समुदाय ने की है, जिसका सामना करना महाराष्ट्र या केंद्र सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। मांग है अनुसूचित जाति-जन जाति अत्याचार निवारण कानून को बदला जाए। जिस वक्त भारतीय जनता पार्टी दलित वर्ग को अपना खास वोट बैंक बनाने की कोशिश में जुटी है, क्या इस मांग पर वह कोई सकारात्मक संकेत देने की स्थिति में भी है? दरअसल, ये मांग समाज में तीखे होते सामूहिक अंतर्विरोधों को परिलक्षित करती है। ऐसी स्थितियों का समाधान महज सरकारी फैसलों से नहीं हो सकता। इसके लिए व्यापक सामाजिक दृष्टि के साथ आम-सहमति बनाने की जरूरत पड़ती है। मगर फिलहाल देश में सहमतियां टूटने का दौर है। बहरहाल, मराठा समुदाय की मांगों पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कुछ ऐलान किए। आरक्षण की मांग को तो उन्होंने सीधे नहीं माना, लेकिन उस दिशा में आगे बढऩे का वादा किया। कहा कि मराठा आरक्षण की मांग को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को भेज दिया गया है। आयोग मराठों को आरक्षण देने के आधार और संभावनाओं का अध्ययन करेगा। इसके अलावा मराठा समुदाय के बच्चों को शिक्षा में वे सारी सुविधाएं और छूट दी जाएंगी, जो अभी ओबीसी छात्रों को मिल रही है। हर जिले में मराठा छात्रों के लिए हॉस्टल बनाया जाएगा। एससी-एसटी कानून से मराठों की आपत्ति के मद्देनजर मुख्यमंत्री ने कहा कि कोपर्डी गैंगरेप केस को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। पिछले साल अहमदनगर जिले के कोपर्डी में एक नाबालिग मराठा बालिका की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई थी। इस कांड के आरोपी दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस कांड के बाद मराठों दलितों के प्रति भी आक्रोश बढ़ा। मगर अब उनकी मांग केस को तेजी से आगे बढ़ाने भर की नहीं है। बल्कि वे कानून में बदलाव चाहते हैं, जिस पर मुख्यमंत्री चुप रहे। गहराई से देखें तो शिक्षा क्षेत्र के बारे में घोषित उपायों के अलावा मुख्यमंत्री के बाकी ऐलान टाल-मटोल वाले हैं। इनसे मराठों का आक्रोश दूर होगा, ये कहना कठिन है। दरअसल देश में अब आरक्षण के साथ ही कई अन्य मामले उठने लगे हैं पिछले काफी समय से देखा जा रहा है कि धार्मिक और क्षेत्रीय आधारित समुदाय अपने संख्याबल और शक्ति प्रदर्शन के जरिए सरकारों पर दबाव डालकर अपनी मांगे मनवा लेते हैं और आरक्षण में हिस्सेदार बन जाते हैं। अपनी मांगों को मनवाने के लिए ये समुदाय किसी भी हद तक चला जाते हैं, जैसे शहरों का घेराव कर उसे बंधक बनाना या तोडफ़ोड़-आगजनी करके सार्वजनिक संपत्तियों को बर्बाद करना। ऐसे समुदाय आजादी के 70 साल बाद कुछ ज्यादा ही मजबूती के साथ उभर कर सामने आए हैं। जोकि अपनी मनमानी के लिए बाकी देशवासियों के साथ दुश्मन सरीखा व्यवहार करने से नहीं चूकते। सब मांग रहे हैं अपने लिए अलग बजट अब तो सामुदायिक आधारित रियायतों की मांग होने लगी है। वर्तमान में मुसलमान रियायत मांग रहे हैं और जल्द ही हमें कई दूसरे समुदायों से भी ऐसी मांगों की आवाजें बुलंद हो सकती हैं। महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या में मराठों की तादाद एक तिहाई से ज्यादा है। मराठों की ये संख्या एक बेशकीमती वोट बैंक मानी जाती है। आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय अरसे से प्रदर्शन करता आ रहा था, इतनी बड़ी संख्या वाले समुदाय की मांगों की अनदेखी करना किसी भी राजनेता के लिए सियासी खुदकुशी करने जैसा होता, लिहाजा मुख्यमंत्री फडणवीस ने हालात को भांप कर ही फैसला लिया। वैसे ये दूसरी बार है कि जब फडणवीस ने समूहों के आगे हथियार डाले हैं। कुछ दिन पहले ही फडणवीस ने राज्य के किसानों का कृृषि ऋण माफ करने का ऐलान किया था। जिससे राजकोष पर करीब 40,000 करोड़ रुपए का अतरिक्त भार पड़ा है। मजे की बात तो ये है कि शुरुआत में फडणवीस कृषि ऋण माफी का जोरदार विरोध कर रहे थे और इसकी खामियां गिनाते आ रहे थे। -ऋतेन्द्र माथुर
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