18-Aug-2017 10:14 AM
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मप्र की राजधानी भोपाल प्राकृतिक सौंदर्य के मामले में किसी से कम नहीं है, लेकिन यहां की नगर सरकार इसकी प्राकृतिक सौंदर्यता की जगह कृत्रिम सौंदर्यता पर जोर दे रही हैं। इसके लिए यहां अंधाधुंध योजनाएं बनाई जा रही हैं। जिन योजनाओं में नगर सरकार और अधिकारियों को अपना फायदा दिखता है उसे अमलीजामा पहनाया जाता है बाकि अधूरी रह जाती हैं। आज स्थिति यह है कि शहर में विकास को गति देने वाली दर्जनभर योजनाएं फाइलों में दम तोड़ रही हैं। इन योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की जगह नई योजनाओं का खाका तैयार किया जा रहा है।
कुछ साल पहले भोपाल की 25 लाख आबादी उस समय खुश हुई थी जब राजधानी में मेट्रो ट्रेन चलाने का ताना-बाना बुना गया था। ऐसा लगा जैसे सालभर में हम मेट्रो ट्रेन की सवारी करने लगेंगे, लेकिन इसके बाद राजस्थान की राजधानी जयपुर, उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में शुरू हुआ मेट्रो प्रोजेक्ट आज साकार हो गया है और हम अभी खाका तैयार नहीं कर पाए हैं। ऐसा ही हाल स्मार्टसिटी का भी है। एक साल पहले जब भोपाल को स्मार्टसिटी की सूची में शामिल किया गया तो यहां के रहवासी फूले नहीं समा रहे थे, लेकिन स्मार्टसिटी के नाम पर हरियााली के साथ ही बसी बसाई आबादी को बेदखल किया जा रहा है।
भोपाल नगर निगम में नर्मदा नदी का पानी बड़े दावों के साथ लाया गया था, लेकिन आज भी आधी आबादी को यह पानी नसीब नहीं हो रहा है। इस योजना को अमलीजामा पहनाने की जगह नगर निगम राजधानी भोपाल के बड़े तालाब पर देश का सबसे बड़ा वॉटर स्क्रीन व म्यूजिकल फाउंटेन बनने जा रहा है। इस वॉटर स्क्रीन के माध्यम से मौर्य काल से वर्तमान तक के शहर के इतिहास को प्रदर्शित किया जाएगा। इस प्रदर्शन को देखने के लिए जीवन वाटिका पार्क में 600 व्यक्तियों के बैठने के लिए आडिटोरियम का निर्माण होगा। सवाल उठ रहा है कि आखिर इसकी जरूरत क्या है। भोपाल का बड़ा तालाब अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण पहले से ही आकर्षण का केंद्र रहा है। फिर यह नई कवायद क्यों? इससे तालाब का प्राकृतिक सौंदर्य तो बिगड़ेगा ही साथ ही पर्यावरण क्षति भी पहुंचेगी, लेकिन जानकार बताते हैं कि यह सब प्रयास एक इंजीनियर को नवाजने के लिए किए जा रहा हैं।
नगर निगम के दावों के अनुसार राजा भोज द्वारा बसाए प्राचीन नगर भोजपाल, रानी श्यामली द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय, रानी कमलापति का देहत्याग और कुंवर नवल शाह के बलिदान से लेकर भोपाल के विलीनीकरण आंदोलन तक का इतिहास बड़े तालाब पर एक थ्रीडी वाटर स्क्रीन पर दिखाया जाएगा। 16 फरवरी को महापौर आलोक शर्मा ने भूमि पूजन कर इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की। 100 फीट चौड़ी और 60 फीट ऊंची इस वाटर स्क्रीन पर 40 मिनट के इस शो में पहले 20 मिनट म्यूजिकल फाउंटेन के जरिए भारतीय शास्त्रीय संगीत का आनंद लिया जा सकेगा। इस शो को देखने के लिए जीवन वाटिका पार्क में विशेष व्यवस्था की जाएगी। जिस नगर निगम में बड़ी आबादी गर्मियों के दिनों में बूंद-बूंद पानी को तरसती है उस शहर में इसकी क्या जरूरत है। निगम जितना पैसा इस पर खर्च करेगा उतने में पेंडिंग पड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जा सकता है। राजधानी में नगर निगम द्वारा उठाए गए कई कदम उसके लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे हैं। निगम ने सबसे पहले 10 नंबर मार्केट के पास फुटब्रिज लगाने की कागजी योजना बना डाली। जब लाखों रुपए खर्च कर फुटब्रिज वहां लगाने का काम शुरू हुआ तो व्यापारियों ने उसका विरोध शुरू कर दिया। दरअसल वहां फुटब्रिज के लिए न तो जगह थी और न ही आवश्यकता। फिर जैसे-तैसे उस फुटब्रिज को आईएसबीटी के पास लगाया गया, लेकिन यह फुटब्रिज वहां शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। जबसे यह ब्रिज वहां लगा है अभी तक एक सैंकड़ा लोग भी उसका इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं। ऐसे में इस फुटब्रिज की उपयोगिता पर सवाल उठने लगे हैं। इसी तरह एमपी नगर में ज्योति टॉकीज के सामने वर्षों पहले फुटब्रिज खड़ा किया गया, लेकिन आज भी लोग इस ब्रिज का इस्तेमाल नहीं करते हैं। आखिर नगर निगम क्या देखकर ऐसी योजनाएं बना रहा है। डीबी मॉल के सामने जहां फुटब्रिज बनना चाहिए वहां नहीं है।
एक तरफ नगर निगम ऐसी योजनाएं बना रहा है जिनका कोई उपयोग नहीं है दूसरी तरफ पानी के लिए कई प्रोजेक्ट लंबे समय से अटके हुए हैं। कोलार क्षेत्र में पानी के लिए केरवा पेयजल योजना का काम चल रहा है। पहले यह दिसंबर 2015 में पूरा होना था। फिर दिसंबर 2016 डेडलाइन की गई है। अब भी 40 प्रतिशत काम बाकी है। विधायक रामेश्वर शर्मा कई बार धीमी गति पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। उधर अभी कुछ माह पहले केंद्र सरकार की अमृत योजना के तहत डेढ़ सौ करोड़ से अधिक की कोलार परियोजना की नई पाइपलाइन बिछाने और भौरी में नए जलशोधन संयंत्र के निर्माण का काम शुरू हुआ है। दावों के अनुसार कोलार प्राजेक्ट का काम अप्रैल 2019 में और भौंरी प्रोजेक्ट का काम सितंबर 2018 में पूरा होगा। गौरतलब है कि बैरागढ़ के नजदीक भौंरी एवं आसपास की 70 हजार आबादी जलसंकट से जूझती आ रही है। इस योजना को लेकर पिछले दो साल से गतिरोध चल रहा था। जमीन आवंटन न होने से संपवेल एवं जलशोधन संयंत्र निर्माण की योजना अटकी हुई थी। आयसर संस्था की जमीन पर अनुमति मिलने के बाद आखिरकार इसका भूमिपूजन हुआ, लेकिन योजना अपने नीयत समय पर पूरी हो पाएगी कि नहीं इसको लेकर असमंजस बरकरार है। हालांकि महापौर आलोक शर्मा का कहना है कि भोपाल में नगर निगम की जितनी भी योजनाएं लंबित है उनका काम शीघ्र पूरा किया जाएगा। वह कहते हैं कि कुछ योजनाएं फण्ड के अभाव में शुरू नहीं हो पाई हैं। निगम उनके लिए फण्ड की व्यवस्था में जुटा हुआ है। उधर नेता प्रतिपक्ष मोहम्मद सगीर का कहना है कि राजधानी में विकास केवल कागजों पर हो रहा है।
जहां डेयरियां शिफ्ट, वहां लगेंगे बायो गैस प्लांट
शहर से बाहर जिन पांच स्थानों पर डेयरियों को शिफ्ट किया जा रहा है वहां नगर निगम ने बायो गैस प्लांट लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसका प्रस्ताव तैयार कर यांत्रिकी शाखा को भेज दिया गया है। फाइनल अप्रूवल के बाद निगम बायो गैस प्लांट के लिए टेंडर जारी करेगा। ज्ञातव्य है कि शहर में स्थित डेयरियों की शिफ्टिंग को लेकर एनजीटी में सुनवाई के दौरान निगम की ओर से बताया कि पांचों स्थानों पर शिफ्टिंग का काम चालू है। बारिश के कारण काम पूरा करने में आ रही दिक्कतों को देखते हुए निगम ने तीस दिन का समय और मांगा है। इस बीच डेयरी संचालकों के कुछ और आवेदन आ गए हैं। निगम के वकील विवेक चौधरी ने बताया कि पांचों स्थानों में जैविक खाद बनाने के लिए बायो गैस प्लांट लगाने का प्रस्ताव बनकर तैयार है। इसे यांत्रिकी शाखा को भेजा गया है। इस मामले की अगली सुनवाई 13 सितंबर को होगी।
भानपुर खंती के लिए फिर बन रही डीपीआर
भोपाल नगर निगम किस तरह काम कर रहा है इसका अंदाजा भानपुर खंती की हालत देखकर लगाया जा सकता है। भानपुर खंती के कचरे से बनने वाली बिजली के प्रोजेक्ट के क्लोजर की अब तीसरी बार नए सिरे से डीपीआर बनाई जाएगी। इससे पहले पीपीपी मोड पर खंती बंद करने का प्लान बना था। इसके क्लोजर के लिए फरवरी में टेंडर जारी हुए थे, लेकिन कोई कंपनी आगे नहीं आई थी। इसके बाद निगम ने प्राइवेट कंपनी से खंती के क्लोजर की तैयारी की। अब फिर प्लान बनेगा। यह बदलाव नगर निगम को केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई नई गाइडलाइन के कारण करना पड़ रहा है। इसके आधार पर नगर निगम को डीपीआर में संशोधन करना पड़ेगा। नई डीपीआर में अब निगम को केन्द्र सरकार को बताना होगा कि खंती के कचरे का औद्योगिक इस्तेमाल कैसे करेगा। अभी तक निगम की कचरे से बिजली बनाने की योजना थी। इसमें अब बदलाव की तैयारी है। अभी तक नगर निगम ने इस पर 10 करोड़ रुपए खर्च कर डाले हैं।
- राजेश बोरकर