माननीयों की मनमानी से कराहता लोकतंत्र
02-Aug-2017 10:06 AM 1234940
मप्र की चौदहवीं विधानसभा का चौदहवां सत्र कोई परिणाम दिए बगैर ही नीयत समय से दो दिन पहले ही संपन्न हो गया। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा अपील करते ही रह गए और विधायक काम निबटाए बगैर अपने-अपने घरों को रवाना हो गए। शोर-शराबा, हो-हल्ला और आरोप-प्रत्यारोप ने सदन की गरिमा को मुद्दों पर वांछित सहमति-असहमति से ज्यादा छींटाकशी और कटुतापूर्ण आपसी वैमनस्य-भाव रखने का अप्रिय सबक दे दिया। जन-हितैषी मुद्दे और राज्य-हितैषी बिल सार्थक बहसों के बिना पारित कर दिए गए। राज्य-हित गौण हो गए और पार्टी-हित राष्ट्र से भी बड़े हो गए। जबकि किसान आंदोलन के बाद इस सत्र से बड़ी उम्मीदे थी, लेकिन यह सत्र भी अन्य पिछले सत्रों की तरह केवल अनुपूरक बजट और बिल पास करने तक ही सीमित रहा। न तो विपक्ष अपना कर्तव्य निभा पाया और न ही सत्तापक्ष अपनी छाप छोड़ पाया। आलम यह है कि दिन पर दिन विधायिका की साख भी गिरती जा रही है। कभी महीनों चलने वाले विधानसभा के सत्र अब घंटे और मिनटों में सिमट कर रह गए हैं। जनहित के मुद्दों पर तार्किक बहस कराने में सत्तापक्ष की तो कभी रुचि रही ही नहीं है, अब विपक्ष भी सिर्फ  खानापूर्ति तक सिमट गया है। मप्र में हर विधानसभा में बैठकों की संख्या घट रही है। 2003 के बाद तो विधानसभा के सत्रों की अवधि आधी रह गई है। हालात ये हो गए हैं कि विधायक विधानसभा से दूर होते जा रहे हैं। माननीयों की इस मनमानी से लोकतंत्र कराहने लगा है। भारत के संविधान की अनुसूची-3 में मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों को पद ग्रहण करने के पहले ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है। उन्हें इस बात की शपथ लेनी होती है कि वे संविधान में सच्ची श्रद्धा और निष्ठाÓ रखते हैं। संविधान निर्माताओं ने सोचा होगा कि सार्वजनिक रूप से शपथ लेने से मानव बंध जाता है, क्योंकि उसे ईश्वर से डर लगे या न लगे, प्रजातंत्र में जनता की नजरों से गिरने का भय रहेगा। बहरहाल भारत में ठीक उलटा हुआ और नेता की समझ विकसित हुई कि शपथ लेने के बाद सरकारी सुविधा में मंदिर के दर पर वीआइपीÓ दर्शन कर ईश्वर को खुश किया जा सकता है, लेकिन जनता की नाराजगी की काट एक ही है और वह है उसे मुद्दोंं में भटकाए रखे और अपना काम निकालते रहे। विधायक अपने पद की शपथ लेते समय संविधान और इसकी संसदीय परम्पराओं का सम्मान करने तथा इनकी गरिमा को आंच न आने देने का संकल्प लेते हैं परंतु आचरण में सर्वथा इसके विपरीत हो रहा है जिससे प्रतिदिन विधानसभाओं की मर्यादा लुट रही है।  मध्यप्रदेश में भी 2003 के बाद से यह तस्वीर देखने को मिल रही है कि यहां हर सत्र हंगामे के कारण अधूरा ही रह जाता है। सत्तापक्ष और विपक्ष केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए सदन की गरिमा को तार-तार करते रहते हैं। मप्र का मानसून सत्र 17 जुलाई से शुरू हुआ और इसमें 28 जुलाई तक 10 बैठकें प्रस्तावित थीं। लेकिन सत्र आठ दिन में ही सिमट गया। इस दौरान न तो किसानों के मुद्दे पर सार्थक बहस हो पाई और न ही महंगाई, कानून व्यवस्था या अन्य किसी मुद्दे पर। विधानसभा का सत्र शुरू होने के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरण शर्मा की अध्यक्षता में कार्यमंत्रणा समिति की बैठक आयोजित कर सदन को सुचारू रूप से चलाने पर सहमति बनी। लेकिन सदन में सत्तापक्ष और विपक्ष अपनी ढपली अपना राग अलापते रहे। मप्र विधानसभा में भी हो-हल्ला, हंगामा और फिर बहिष्कार रोजमर्रा की कहानी हो गई है। कहानी के दुखद अंत की तरह विधानसभा के सत्र भी हंगामें की भेंट चढ़ रहे हैं। कई अहम मुद्दों पर विधानसभा में चर्चा होनी थी। कई अहम बिल पास होने थे। लेकिन विपक्षी विधायकों के बहिर्गमन के चलते अभी तक के परिणाम ढाक के तीन पात जैसे ही हैं। गत मानसून सत्र में भी यही नजारा देखने को मिला। न तो सत्तापक्ष किसी सार्थक मुद्दे पर चर्चा करना चाह रहा था और न ही विपक्ष। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरण शर्मा कहते हैं कि लोकतंत्र में विरोध और बहिर्गमन कभी नकारात्मकता के प्रतीक नहीं रहे लेकिन  अहम प्रस्तावों के दौरान बिना बड़ी वजह सदन की कार्यवाही से खुद को अलग रखना अगंभीरता को दर्शाता है। विपक्ष को हमेशा गंभीर रहना चाहिए। हालांकि वह स्वीकार करते हैं कि मध्यप्रदेश में देश के कुछ राज्यों की तरह अप्रिय स्थिति की नौबत नहीं आती है। उधर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है कि भाजपा सरकार कभी भी सदन की कार्यवाही को लेकर गंभीर नहीं रही है। जब भी जनहित के मुद्दों पर चर्चा की मांग की जाती है सत्तापक्ष इसके लिए तैयार नहीं होता है। विधानसभा के हर सत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष की लड़ाई में अफसर भी दिन पर दिन लापरवाह होते जा रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि विधायकों के सवालों का जवाब तक नहीं दिया जा रहा है। गत मानसून सत्र में कई सवालों को जांच आयोग का हवाला देकर टाल दिया गया। इसको लेकर विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रहा है कि उसी के कहने पर अधिकारी उनके सवालों का जवाब नहीं दे रहे हैं। विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दिन विधायक जीतू पटवारी के सवाल के लिखित जवाब में गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने जानकारी दी कि किसान आंदोलन के दौरान मुख्यमंत्री ने उज्जैन में किसानों पर दर्ज किए गए प्रकरण वापस लेने की जो घोषणा की थी, उस मामले में मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा कोई पत्राचार नहीं किया गया है। -बिंदू माथुर
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