02-Aug-2017 09:58 AM
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मप्र में तबादला उद्योग का रूप ले चुका है। हर साल तबादले के खेल में अरबों रूपए की घूस ली और दी जाती है। इस बार सरकार ने तबादलों को पारदर्शी बनाने के लिए कई प्रावधान किए थे। राज्य शासन ने नई तबादला नीति लागू कर दी है। जिसके तहत तबादले के लिए ऑनलाइन आवेदन करने थे। ऑनलाईन आवेदन उन्हीं को करना था जो स्वयं के व्यय पर तबादला चाहते हैं। जबकि प्रशासनिक आधार पर तबादले विभाग को स्वयं करना था। नीति के तहत 200 पद संख्या तक 20 फीसदी तबादले एवं इससे अधिक होने पर 20+10 प्रतिशत तबादले होने थे, लेकिन मंत्रियों, प्रमुख सचिवों, सचिवों, संचालनालय में बैठे अधिकारियों और मंत्रियों के नाते-रिश्तेदारों ने तबादला नीति को दरकिनार कर मनमानी से तबादला किए और करवाए।
जनता जर्नादन बताती हैं कि मध्यप्रदेश में तबादलों से प्रतिबंध हटने के बाद से तबादला उद्योग इस कदर परवान चढ़ा की आनलाइन आवेदन करने वालों को छोड़कर अन्य अधिकारियों-कर्मचारियों के तबादले होने लगे। मंत्रियों और अधिकारियों के यहां दलाल सक्रिय हो गए। जिसने जहां चाहा पैसे के दम पर अपना तबादला कराया। प्रदेश में सरकार की तबादला नीति धरी की धरी रह गई। खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा, सिंचाई, महिला एवं बाल विकास, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, आबकारी और वाणिज्यिककर विभाग में मनमानी के तबादले हुए। आलम यह रहा कि मंत्रियों के दबाव में सरकार को तीन बार तबादला तिथि बदलनी पड़ी।
कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत का कहना है कि प्रदेश में पिछले एक दशक से पैसे के बल पर तबादले हो रहे हैं। वह कहते हैं कि इस बार भी विभागों ने प्रशासनिक तबादलों में ज्यादा रुचि दिखाई। यही कारण है कि ज्यादातर विभागों ने स्वैच्छिक तबादले के लिए आए ऑनलाइन आवेदनों पर विचार ही नहीं किया। जबकि ऑनलाइन तबादला नीति जारी करते समय ऐसे प्रचारित किया था कि तबादले सिर्फ ऑनलाइन आवेदन आने पर ही किए जाएंगे। उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आशीष उपाध्याय ने तबादलों में मंत्री की मनमर्जी नहीं चलने दी। वहीं जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, गौरीशंकर शेजवार, कुसुम मेहदेले, विजयशाह, गौरीशंकर बिसेन, रुस्तम सिंह, ओमप्रकाश धुर्वे, राजेंद्र शुक्ल, अंतर सिंह आर्य, रामपाल सिंह, जयभान सिंह पवैया, शरद जैन विश्वास सारंग और सूर्यप्रकाश मीणा के रिश्तेदारों, विशेष सहायकों और ब्रोकरों ने खूब चांदी काटी। अगला वर्ष चुनाव का होने के कारण अब मौके का फायदा उठाकर खूब चांदी काटी है। वहीं सरकार के प्रशासनिक अधिकारी भी कम नहीं हैं। उन्होंने भी मौके का फायदा उठाकर मंत्री के साथ ताल से ताल मिलाकर खूब मलाई खाई है प्रशासनिक आधार पर किए गए आदिम जाति कल्याण विभाग में 760 ऑनलाइन आवेदन आए, विभागाध्यक्ष ने आखिरी समय तक तबादला सूची बनाने में ही रुचि नहीं दिखाई। इसी तरह लोक निर्माण, आबकारी, खनिज विभाग के अफसरों की सूचियां भी तबादलों की मियाद खत्म होने के बाद जारी होती रही। स्कूल शिक्षा विभाग में मंत्री ने अपनी मनमानी चलाई वहीं प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री जयंत मलैया की उनके विभाग में नहीं चली। विभाग के कमिश्नर और प्रमुख सचिव ने अपने स्तर पर सारा काम निपटा दिया। महिला एवं बाल विकास तथा पीएचई विभाग में मंत्राणियों ने अपना भरपूर जलवा दिखाया। वहीं स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह की स्वास्थ्य विभाग में तो नहीं चली, लेकिन आयुष विभाग में प्रमुख सचिव के साथ मिलकर उन्होंने खूब व्यारे न्यारे किए।
बसपा विधायक सत्यप्रकाश कहते हैं कि मंत्रियों और अधिकारियों ने कमाई के लिए केवल मालदार पदों पर बैठे लोगों के तबादले किए। तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के तबादलों में अधिकारियों ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। ऐसे में ऑनलाइन नीति के तहत तबादला आदेश करने में गाइडलाइन का भी पालन नहीं किया गया। दिव्यांग, गंभीर बीमारी, महिला कर्मचारी एवं अधिकारियों के आवेदनों पर गंभीरता से विचार ही नहीं किया गया। भर्राशाही और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात स्वास्थ्य विभाग में पैसे और रसूख के दम पर जिसकी जहां मर्जी हुई वहां तबादला करा लिया। अब स्थिति यह है कि जिन लोगों के तबादले अटके हैं वह अब मुख्यमंत्री समन्वय की अनुमति मिलने के बाद ही होगा।
सड़कों पर घूमते रहे जरूरतमंद कर्मचारी
प्रदेश में तबादले की स्थिति यह रही कि जरूरतमंद कर्मचारी तो राजधानी में दफ्तर-दफ्तर घूमकर वापस लौट गए। क्योंकि उनसे मंत्री या अधिकारी मिले ही नहीं। वे मंत्रियों को उनके कार्यालयों और कोठियों में ढूंढते रहते हैं पर नेताजी किसी गुप्त कोठी में बैठ कर तबादले की सूचियां बना रहे होते हैं। कई विभागों में तो स्थिति यह रही कि तबादले का भय दिखाकर सूची जारी होने के पूर्व ही वसूली कर ली गई। सूत्रों के अनुसार मंत्रियों ने अपने प्रमुख स्टॉफ को टारगेट पकड़ा दिया था। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि जिस तरीके से तबादले की तिथि बार-बार बढ़ाई गई, उससे साफ लगता है कि सरकार के दारा लागू की गई तबादला नीति असफल रही है। प्रदेश में सरकार एवं उनके मंत्रियों ने तबादले के नाम पर नया धंधा शुरू कर दिया है। हर साल प्रदेश में तबादलों का सीजन मंत्रियों और अधिकारियों के लिए कमाई का जरिया बन जाता है। जबकि अधिकारी-कर्मचारी इस दौरान जमकर ठगे जाते हैं।
-कुमार राजेंद्र