02-Aug-2017 10:03 AM
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एशिया का अकेले नेतृत्व करने की इच्छा रखने वाला चीन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत के बढ़ते कद से परेशान है। वर्तमान में चीन, भारत को एक प्रतिद्वंद्वी की तरह देख रहा है, चूंकि भारत विश्व की तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। ऐसे में जहां एक तरफ भारत संपूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल हुआ है तो दूसरी ओर चीन अपनी नीतियों के कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग नजर आ रहा है। चीन की नीतियों के संदर्भ में देखें तो उसने हमेशा विस्तारवाद को अपनी विदेश नीति के केंद्र में रखा है।
यही कारण है कि बीसवीं सदी से इक्कीसवीं सदी तक चीन अपने भूभाग को बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ाते भी बाज नहीं आता है। जमीन के प्रति चीन की भूख के कारण 1959 में तिब्बत जैसे शांतिप्रिय राष्ट्र को अपना स्वतंत्र अस्तित्व खोना पड़ा और वहां के नागरिकों को चीन के अत्याचार के कारण दूसरे देशों में शरणार्थी बनने पर मजबूर होना पड़ा।
तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन ने एक तो भारतीय सीमा के निकट पहुंचने में सफलता प्राप्त कर ली, और दूसरे, पाकिस्तान जैसे अपने सदाबहार मित्र का वह पड़ोसी बन गया, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के माध्यम से। पीओके से ही चीन की सीमा पाकिस्तान से मिलती है, जिसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है। तिब्बत को हड़पने के साथ ही जल नियंत्रण की शक्ति भी चीन ने हासिल की। यहां जल नियंत्रण से तात्पर्य है कि भारत में बहने वाली तीन सदानीरा नदियों (ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज) का उद््गम स्थल तिब्बत में है। गौरतलब है कि चीन ने बह्मपुत्र नदी पर बांध बनाया है। उसके माध्यम से गर्मियों में पानी की कमी के समय भारत का पानी रोकने में वह सक्षम है जिससे पूर्वोत्तर को सूखे का सामना करना पड़ सकता है।
दूसरी ओर, वर्षा के दिनों में अत्यधिक जल की स्थिति में बांध का फाटक खोलने पर पूर्वोत्तर जलमग्न हो सकता है। सतलुज का उद््गम स्थल भी तिब्बत (राक्षस ताल) ही है। ऐसे में सतलुज नदी पर बने भाखड़ा बांध पर बनी जल विद्युत परियोजनाओं (करचम वांगटु हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट और नाथपाझाकड़ी) को भी चीन प्रभावित कर सकता है। भारत पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद से लंबे समय से पीडि़त है। इसी कारण पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए सिर्फ कहा गया था कि हो सकता है सिंधु नदी जल समझौते की समीक्षा कर भारत अपने हिस्से के जल का इस्तेमाल करे। फिर क्या था, पाकिस्तान के सदाबहार मित्र चीन ने ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोक कर पाकिस्तान के साथ मित्रता बखूबी निभाई। यहां तक कि चीन ने आतंकवाद के प्रति दोहरा रवैया अपनाते हुए संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित होने से भी बचाया। जबकि चीन स्वयं भी उइगर प्रांत में आतंकवाद से पीडि़त है।
चीन ने पाकिस्तान के माध्यम से भारत की सुरक्षा के समक्ष काफी चुनौतियां खड़ी कीं। इसके बावजूद भारत, पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के मसले पर अलग-थलग करने में कामयाब रहा। यही कारण है कि विश्व के कई देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, इजराइल, जापान, अफगानिस्तान, यूरोपीय संघ के देश, आसियान के देश आदि भारत के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। ऐसे में भारत ने दबाव की जो रणनीति बना रखी है उसे उस पर कायम रहना चाहिए। इससे चीन को सबक मिलेगा।
बार-बार गीदड़ भभकी दे रहा है ड्रेगन
भूटान के अनुरोध पर भारतीय सैनिकों ने डोकलाम में चीन के सड़क निर्माण-कार्य को रोक दिया। तब से भारत और चीन के बीच तनाव जारी है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्सÓ में एक विशेषज्ञ के हवाले से लिखे गए लेख के अनुसार, अगर भारत ऐतिहासिक सबक सुनने से इनकार करता है तो चीन फौजी कार्रवाई करने पर मजबूर हो जाएगा। धमकी के साथ चीन के सैनिकों ने 5100 मीटर की ऊंचाई पर युद्धाभ्यास भी शुरू कर दिया। इसमें चीन का आधुनिकतम टी-96 टैंक भी शामिल हुआ। लेकिन भारत ने भी 1962 के धोखे से सीख लेते हुए अपनी सैन्य-क्षमता को लगातार और सुदृढ़ किया है। इसलिए चीन को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए। संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी चीन को जमकर लताड़ा है।
-माया राठी