02-Aug-2017 09:39 AM
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राजनीतिक मैदान में अगर किसी से डर है तो वह है भाजपा और संघ। इसलिए वे इनके खिलाफ किसी भी हद तक जाने को तत्पर रहती हैं। इसका नजारा विगत दिनों शहीदी दिवस पर आयोजित महारैली में देखने को मिला, जहां वे केंद्र सरकार और भाजपा पर जमकर बरसीं। केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ममता ने कहा कि आज देश के हालात आपातकाल से भी बुरे हैं। उत्साहित ममता बनर्जी ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी 9 अगस्त से भाजपा भारत छोड़ो अभियान छेड़ेगी। उन्होंने कहा कि यह देशव्यापी अभियान 30 अगस्त तक चलेगा। गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर निशाना साधते हुए ममता कि गोरक्षा करने वाले आज राक्षस बन गए हैं। अब ये लोग फैसला कर रहे हैं कि हमें क्या खाना और पहनना होगा।
दरअसल, 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाजपा के प्रति विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। विशेष रूप से गत वर्ष नवम्बर में हुई नोटबंदी के बाद से तो उनका भाजपा विरोध घृणा के स्तर तक पहुंचता नजर आ रहा है। भाजपा के प्रति वे अपने विरोध को जिस-तिस प्रकार से जाहिर करती रहती हैं। अब उन्होंने घोषणा की है कि आगामी 9 अगस्त से वे भाजपा भारत छोड़ोÓ नामक आन्दोलन करने जा रही हैं। इस आंदोलन की जरूरत उनको इसलिए लग रही है क्योंकि उनके हिसाब से फिलहाल देश में आपातकाल से भी बुरे हालात हैं। समझा जा सकता है कि ममता बनर्जी भाजपा के प्रति अंधविरोध की मानसिकता में किस कदर डूब चुकी हैं। ये अंधविरोध की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि जो सरकार दुनिया की सबसे विश्वसनीय सरकार है (फोब्र्स रिपोर्ट के अनुसार), उसके शासन की तुलना ममता बनर्जी आपातकाल से कर रही हैं। संभवत: उन्हें आपातकाल का अनुभव नहीं रहा या उन्होंने उसका इतिहास ढंग से नहीं पढ़ा, वर्ना ऐसा बचकाना बयान नहीं देतीं। ममता बनर्जी ने यह भी कहा है कि अरविन्द केजरीवाल, सोनिया गांधी, लालू आदि जितने भी लोग भाजपा के खिलाफ होंगे, वे उन सबके साथ खड़ी होंगी।
भाजपा भारत छोड़ोÓ आन्दोलन के नामपर विपक्ष को एकत्रित करके स्वयं को विपक्षी मोर्चे की राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रस्तुत करने की जिस मंशा के तहत ममता बनर्जी यह सब कर रही हैं, वो मंशा इस तरीके से पूरी होने की कोई संभावना नहीं है। उल्टे ममता का यह दांव उनपर भारी ही पड़ सकता है।
भाजपा जो इस समय निर्विवाद रूप से देश की सर्वाधिक लोकप्रिय पार्टी है, जिसका प्रमाण लगातार चुनावों में हो रही उसकी बम्पर विजय है, के प्रति भारत छोड़ोÓ जैसा अतार्किक आन्दोलन जनता को रास नहीं आएगा। संभव है कि नोटबंदी का अनर्गल विरोध करने के बाद विपक्षी दलों की जो फजीहत हुई थी, इस आन्दोलन का भी वैसा ही कुछ परिणाम सामने आए। सीधे शब्दों में कहें तो राष्ट्रीय नेता बनने की जल्दबाजी में ममता अपना वर्तमान चौपट करने की ओर बढ़ रही हैं। ममता बनर्जी को समझना चाहिए कि राष्ट्रीय नेता ऐसे अर्थहीन आंदोलनों से नहीं बना जाता, उसके लिए मिले प्राप्त अवसर के अनुसार बेहतर प्रदर्शन करके लोगों का विश्वास जीतना पड़ता है। जबकि फिलहाल तो स्थिति ये है कि बंगाल में ममता के शासन का स्तर बेहद खराब है। कानून-व्यवस्था जैसी कोई चीज राज्य में दूर-दूर तक नजर नहीं आती। अत: ममता बनर्जी को चाहिए कि वे केंद्र सरकार पर अनावश्यक दोषारोपण और भाजपा के अंधविरोध की बजाय अपने शासनाधीन बंगाल की कानून व्यवस्था को दुरुस्त करें। देश इस बात को अच्छी तरह से देख और समझ रहा है कि कैसे ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति में फंसकर बंगाल सांप्रदायिक हिंसा का गढ़ बनता जा रहा है। अत: उचित होगा कि ममता बनर्जी देश की चिंता करने की बजाय बंगाल में कानून व्यवस्था सुधारें। राज्य की स्थिति बदहाल रहती है, तो राष्ट्रीय स्तर की नेता बनने की ममता की ये कवायदें उन्हें भारी नुकसान ही पहुंचाएंगी।
बदल रही हैं ममता?
राज्य में मुस्लिम, अनुसूचित जाति और जनजाति मिलाकर कुल 53 प्रतिशत वोट हैं और ममता पर इनको लेकर थोड़ा नरम रहने के आरोप भी लगते रहे हैं। ममता इन आरोपों पर भी कम ही ध्यान देती रहीं थी अब तक। लेकिन अब उनमें बदलाव दिखने लगे हैं। बदूरिया और बशीरहट में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बाद वे थोड़े तनाव में दिखीं और इस बीच राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी से उनकी तनातनी भी हुई। राजनीतिक दबाव में ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों, खासतौर से भाजपा पर चिनगारी को आग देने जैसे आरोप लगाने के साथ हिंसा की न्यायिक जांच के आदेश भी दिए। सीपीएम नेता और पूर्व मंत्री अब्दुल सत्तार को लगता है कि मुख्यमंत्री ने कभी इस तरह के मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
-इन्द्र कुमार