19-Jul-2017 08:46 AM
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पश्चिम बंगाल में एक बार फिर दंगे की आग भड़क उठी है। सूबे के उत्तरी परगना जिले के बसिरहाट परिक्षेत्र के बादुरिया में एक युवक द्वारा फेसबुक पर की गयी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर राज्य के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा ने जन्म ले लिया। इस टिप्पणी के बाद बादुरिया इलाके में मुस्लिम समुदाय की भावना को ऐसी ठेस पहुंची कि वो कानून और व्यवस्था को धता बताते हुए सड़क पर उतरकर उपद्रव और हिंसा का तांडव मचा दिया। स्थानीय लोगों के अनुसार तकरीबन दो हजार मुसलमान सड़क पर उतर पड़े थे। पुलिस ने सौरव को गिरफ्तार कर लिया था, मगर हिंसा के उन्माद में बौराए ये मुसलमान थाने के बाहर इकठ्ठा होकर सौरव को उन्हें सौंपने की मांग करने लगे। इसी आवेश में पुलिस की जीप जलाने से लेकर हिन्दुओं के घर तहस-नहस करने तक अनेक प्रकार की अराजकता इन्होंने फैलायी। इस पर हिन्दुओं की तरफ से भी प्रतिक्रिया हुई और एक छोटी-सी फेसबुक टिप्पणी से उपजे इस विवाद ने इतने बड़े सांप्रदायिक दंगे की शक्ल ले ली कि बादुरिया में केंद्र द्वारा अर्धसैनिक बलों को तैनात करना पड़ा।
इस पूरे प्रकरण में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार सवालों के घेरे में है। सवाल है कि जब मुस्लिम समुदाय के लोग सड़क पर इकठ्ठा होकर अराजकता फैला रहे थे, उस वक्त ममता सरकार का पुलिस-प्रशासन क्या कर रहा था? उन्हें दो हजार की संख्या में संगठित होकर सड़क पर उतरने का अवसर कैसे मिल गया? इसकी भनक प्रशासन को क्यों नहीं लगी? क्या इलाके का पुलिस-प्रशासन हालात के बेकाबू होने की प्रतीक्षा कर रहा था? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब ममता बनर्जी को देने चाहिए। मगर इन सवालों का जवाब देने की बजाय उन्होंने तो एक नया ही शिगूफा छेड़ दिया।
हुआ ये कि बादुरिया के सांप्रदायिक तनाव के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने राज्य में बदहाल हो रही कानून व्यवस्था के विषय में ममता बनर्जी से बात की। इस दौरान शायद उन्होंने ममता से राज्य की बिगड़ती स्थिति को लेकर कुछ सवाल पूछ दिए। बस इसके बाद क्या था, ममता ऐसी बिगड़ीं कि इस पूरी बातचीत का पूरा बवंडर ही बना दिया। उन्होंने राज्यपाल पर भाजपा के नेता की तरह बात करने से लेकर अपना अपमान करने तक अनेक प्रकार के सवाल उठा दिए। यहां तक कि ममता बनर्जी ने राज्यपाल की शिकायत राष्ट्रपति से करते हुए उन्हें पद से हटाने की मांग भी कर दी। जबकि राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी की तरफ से ममता बनर्जी के सभी आरोपों को गलत बताया गया है। उनका कहना है कि उन्होंने ममता का कोई अपमान नहीं किया, लेकिन वे राज्य की स्थिति पर मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकते। खैर, ममता बनर्जी को यह बताना चाहिए कि राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी पर वे इतना बिफरीं क्यों? यदि उन्होंने उनसे कुछ प्रश्न किए, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। राज्य में राज्यपाल का पद केंद्र में राष्ट्रपति के पद के समानांतर होता, अत: वे राज्य के मुख्यमंत्री से शासन-प्रशासन के विषय में जवाब मांग सकते हैं। विचार करें तो ममता बनर्जी का राज्यपाल द्वारा उनके शासन-प्रशासन से सम्बन्धी सवाल पूछे जाने से बिगड़ जाना एक हद तक समझ आता है। कारण कि ममता ने मोदी सरकार के सत्ता में आने के कुछ समय बाद से ही अपनी राजनीति का केंद्र बिंदु भाजपा के अंधविरोध को बना लिया है। बहरहाल, ममता बनर्जी को समझना चाहिए कि वे केवल किसी एक समुदाय का मत पाकर मुख्यमंत्री नहीं बनी हैं और न आगे ही ऐसी कोई संभावना है, अत: धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण के अन्धोत्साह में राज्य की कानून व्यवस्था को बर्बाद मत करें। वर्ना जिस बंगाल की जनता ने वामपंथियों को अर्श से फर्श पर पहुंचाया, वो उन्हें भी सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने में देर नहीं करेगी।
बांग्लादेशी घुसपैठिए बिगाड़ रहे हैं माहौल
दरअसल बंगाल में हाल के वर्षों में हुए दंगों की प्रकृति का अगर अवलोकन करें तो ज्यादातर दंगों में मुस्लिम समुदाय ने किसी एक मामूली-सी वजह को आधार बनाकर हिंसा और उत्पात की शुरुआत की है, जिसके प्रतिक्रियास्वरूप कुछ मामलों में हिन्दू भी आक्रामक हो गए। मुस्लिमों में इस बढ़ी आक्रामकता का एक कारण अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं, जिनके संरक्षण के ममता सरकार पर लगातार आरोप लगते रहे हैं। तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के लिबास में लिपटीं ममता बनर्जी अपने मुस्लिम वोट बैंक के मोह में इस पूरी स्थिति को जानते-बूझते भी कोई ठोस कार्रवाई करने से बचती रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप आज राज्य के मुस्लिम समुदाय के अराजक तत्वों का मन इतना बढ़ गया है कि वे अब राज्य सरकार की कानून व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं।
-ऋतेन्द्र माथुर