02-Aug-2017 09:34 AM
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प्रदेश में अवैध रेत खनन और इस कारोबार में भ्रष्टाचार को लेकर लगातार बदनामी झेल रही सरकार पर व्यवस्था को दुरुस्त करने का दबाव है। इस दबाव के कारण सरकार ने नर्मदा में रेत खनन पर प्रतिबंध लगा दिया है साथ ही अन्य नदियों में मशीनों से रेत खनन पर रोक लगा दी गई है, लेकिन सतत विकास कार्यों के लिए रेत जरूरी है। इसलिए सरकार ने प्रदेश में आदर्श रेत खनन नीति बनाने की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में 21 जुलाई को नदियों की परिस्थिति के अनुसार रेत हार्वेस्टिंग, खनन, परिवहन और विपणन की नीति अनुसार फ्रेमवर्क तैयार करने प्रशासन अकादमी में कार्यशाला आयोजित की गई। इस अवसर पर पर्यावरणविदों, अफसरों, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना राज्य के खनन अधिकारियों ने अपने-अपने सुझाव दिए।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ला, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष न्यायाधिपति दिलीप सिंह के साथ ही पर्यावरणविद् एवं खनन विशेषज्ञ एच एन गोलाईत ने अपने-अपने सुझाव रखे। गोलाईत ने सरकार के सामने अपना प्रस्ताव रखते हुए कहा कि रेत का मुख्य स्रोत नदियां हैं। इसलिए सबका ध्यान रेत खनन के लिए नदियों में ही जाता है, लेकिन नदियों पर बने बांधों की तरफ कभी किसी का ध्यान नहीं गया है। प्रदेश की अधिकांश नदियों पर बांध बने हैं। इन बांधों में नदियों का पानी जाता है तब इसके साथ बड़ी मात्रा में रेत भी जाती है। इससे हर साल बांधों का जल क्षेत्र कम होता जाता है और रेत का भंडार बढ़ता जाता है। अगर सही तकनीक अपनाकर सरकार बांधों से रेत की निकासी करवाए तो न केवल बड़ी मात्रा में रेत निकलेगी, बल्कि बांधों की जलग्रहण क्षमता भी बढ़ेगी।
अगर गोलाईत के सुझाव पर ध्यान दें तो निश्चित रूप से मध्यप्रदेश के बांधों से सालों तक रेत निकासी हो सकती है और इससे न तो जलीय पारिस्थिति खराब होगी और न ही पर्यावरण क्षरण। प्रदेश में गांधी सागर डेम, राणा प्रताप सागर डेम, तवा डेम, हलाली डेम, बरना डेम, बरगी डेम, इंदिरा सागर डेम, ओंकारेश्वर डेम, बाणसागर डेम, कोलार डेम, राजीव सागर डेम, बरियारपुर डेम, गुलाब सागर डेम, माही डेम सहित अन्य जितने भी बांध हैं वे सालों तक प्रदेश को रेत दे सकते हैं। सरकार को इस दिशा में कार्य करना चाहिए। अगर सरकार बांधों से रेत निकलवाती है तो इससे बांधों की आयु भी बढ़ेगी।
अगर सरकार अपनी खनन नीति में गोलाईत के सुझावों को प्राथमिकता देती है तो न केवल नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा खत्म होगा बल्कि पर्यावरण संतुलन भी कायम रहेगा। प्रकृति के साथ संतुलित व्यवहार जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर होने वाले आत्मघाती प्रभावों के संकेत पृथ्वी के तापमान में वृद्धि, अवर्षा, अनियमित वर्षा और प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सामने आने लगे हैं। अनेक जीव-जंतु धरती से विलुप्त होने लगे हैं। महाशीर मछली सहित अनेक जीव-जंतु विलुप्ती की कगार पर है। खनन नीति पर समग्र और मानवीय परिप्रेक्ष्य में चिंतन होना चाहिए। खनन की वैज्ञानिक प्रक्रिया हो, जो रोजगार के अवसर सृजित करने के साथ ही पारिस्थितिकी का संरक्षण करे। अक्टूबर में सरकार की नई खनन नीति आएगी। जिसमें संभावना जताई जा रही है कि सरकार सभी सुझावों को समाहित करेगी।
छग में सस्ती रेत ऐसे
छत्तीसगढ़ से आए डी महेश बाबू ने कहा कि हमारे यहां सरकार ने रेत में को रॉयल्टी मुक्त रखा है। ताकि आम लोगों को सस्ते दामों पर रेत मिल सके। राज्य का मकसद रेत लोगों को उपलब्ध कराना है न कि राजस्व प्राप्त करना। यदि सरकार मप्र में इसे लागू करती है तो निश्चित ही लाभ होगा। प्रदेश में सरकार को 6 फीसदी कमाई रेत से होती है। बाकी अन्य खनिज से 4135 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। बैठक में बताया गया कि मोबाइल एप के जरिए अवैध माइनिंग रोकने का प्रयास होगा।
डंपरों में लगेंगे जीपीएस
कार्यशाला में सुझाव दिया गया कि भोपाल में आने वाले रेत के डंपरों में जीपीएस लगेंगे। जीपीएस से डंपरों की मॉनीटरिंग की जाएगी। होशंगाबाद से भेापाल के बीच चार जिलों की खनिज जांच चौकियां रास्ते मेंं हैं। हरेक चौकी पर 500 रुपए की रकम तय है। रोजाना दो ट्रिप में 500 ट्रकों का मूवमेंट है। लगातार इन चौकियों पर रिश्वत की शिकायतें मिल रही हैं। सरकार अब होशंगाबाद से भोपाल की तरफ आने वाले एंट्री पाइंट पर जांच चौकी पर तौल कांटा लगाएगी।
- नवीन रघुवंशी