02-Aug-2017 08:46 AM
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मप्र में विजय शाह जिस विभाग में मंत्री रहे हैं उस विभाग का बंटाढार सबने देखा है। अब बारी है स्कूल शिक्षा विभाग की। प्रदेश के नौनिहालों को उज्जवल भविष्य का मार्ग दिखाने वाले स्कूल शिक्षा विभाग की कमान संभालते ही शाह ने घोषणाओं की ऐसी कतार लगा दी जैसे लगा कि अब इस विभाग का कायापलट हो जाएगा। लेकिन उनकी घोषणाएं पता नहीं कहां खो गई। आलम यह है कि अपने अब तक के एक साल के कार्यकाल में मंत्री जी ने दर्जनों घोषणाएं की हैं, लेकिन अमल एक पर भी नहीं हुआ है।
विजय शाह की सक्रियता देखें तो ऐसा लगता है जैसे वे इस विभाग के मंत्री हैं ही नहीं। वे कभी टोल नाका, कभी सड़क तो कभी किसी और जगह की निगरानी करते नजर आते हैं। आलम यह है कि स्कूल शिक्षा विभाग से अधिक तो वे अपने विधानसभा क्षेत्र के कार्यक्रमों में सक्रिय नजर आते हैं। स्थिति यह है कि स्कूलों में पढऩे वाले छात्रों तक को मालूम नहीं है कि प्रदेश का स्कूल शिक्षा मंत्री कौन है। अधिकतर छात्र स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी का ही नाम लेते हैं। इन सबके इतर विजय शाह स्कूलों और स्कूली शिक्षा का कायापलट करने के लिए निरंतर घोषणाएं करते रहते हैं। लेकिन उनकी घोषणाओं पर न तो वे स्वयं और न ही अधिकारी ध्यान देते हैं। मंत्री ने खंडवा और फिर भोपाल में कहा था कि नए शैक्षणिक सत्र से सभी स्कूलों में प्रार्थना से पहले तिरंगा फहराया जाएगा। मामला राष्ट्र सम्मान से जुड़ा था इसलिए इसे गंभीरता से लिया गया और आदेश जारी हुए, लेकिन स्कूलों में नहीं पहुंचे और झंडावंदन भी शुरू नहीं हुआ। मंत्री ने भी कभी इसकी खोज खबर नहीं ली। इसी तरह प्रदेश के सभी सरकारी शिक्षक राष्ट्र निर्माता की नेमप्लेट लगाएंगे। ये आदेश भी अब तक स्कूलों में नहीं पहुंचे और न ही शिक्षकों ने नेमप्लेट लगाई। स्कूलों में समानता का भाव पैदा करने के लिए बच्चों के बैठने के लिए रोटेशन की घोषणा की थी। ताकि बैक बेंचर बच्चों को पढ़ाई के समान अवसर मिल सके। लेकिन क्लास रूम में रोटेशन में बैठाने की घोषणा आज तक शुरू नहीं हो पाई। विजय शाह की मैदान ही नहीं बल्कि विधानसभा में की गई घोषणाएं भी अधर में लटकी हैं। जुलाई 2016 में विधानसभा में घोषणा की थी कि निजी स्कूल फीस रेगुलेटरी कानून शीतकालीन सत्र में पेश करेंगे। फिर बजट सत्र में पेश करने को कहा। अब तक कानून का मसौदा कैबिनेट में भी नहीं पहुंचा, जबकि इस घोषणा के एक साल से अधिक का समय हो गया है। इसी तरह मंत्री ने प्रशासनिक और अकादमिक कार्य एक जगह करने के उद्देश्य से राज्य शिक्षा केंद्र और लोक शिक्षण संचालनालय को मर्ज करने की घोषणा की थी। अब तक निर्णय नहीं हुआ।
शाह ने सरकारी शिक्षकों को एप्रिन पहनाने की घोषणा की। पर न एप्रिन का पता है और न ही उसकी डिजाइन का। स्कूल शिक्षा विभाग में मोबाइल से शिक्षकों की अटेंडेंस लगाने के लिए पूर्व में मंत्री प्रस्ताव लेकर आए। मंत्री विजय शाह ने इसे इस सत्र से लागू करवाने के लिए कहा। लेकिन अभी तक पता नहीं है। स्कूल शिक्षा विभाग में अध्यापकों को छठवें वेतनमान के लिए गणना पत्रक जारी किया गया। इस गणना पत्रक में अधिकारियों ने बार-बार गलती की। जिससे अध्यापक नाराज हो गए। मंत्री गलती करने वाले ऐसे अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाए। स्कूल शिक्षा मंत्री ने नियमित व अध्यापक संवर्ग के शिक्षकों के लिए आनलाइन ट्रांसफर नीति लागू की। लेकिन इसका फायदा शिक्षकों को नहीं मिल सका। आनलाइन पोर्टल पर रिक्त पद वाले स्कूलों के नाम ही नहीं बताए गए, जिससे शिक्षक अपने को ठगा सा महसूस करने लगे। विभाग में मंत्री की घोषणाओं पर अमल जरूर नहीं हुआ, लेकिन करोड़ों की बजट वाली साइकिल व ड्रेस विभाग ने जरूर खरीद कर दी। जबकि पूर्व में इन्हीं दो मदों की खरीददारी में ढेरों अनियमितता मिली थी। जानकार बताते हैं कि विजय शाह भावनाओं में बहकर बिना सोचे-समझे बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर जाते हैं, लेकिन बाद में खुद उनको इसकी सुध नहीं रहती।
उल्लेखनीय है कि शाह ने मंत्री पद संभालने के बाद कहा था कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में निजी स्कूलों से बेहतर शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन सरकार और उसके स्कूल शिक्षा विभाग के तमाम प्रयासों के बाद भी सरकारी स्कूलों में बच्चों के बढऩे की बजाय लगातार संख्या कम होती जा रही है। इस मामले में हालात कितने खराब हो चुके हैं कि बीते एक साल में ही सरकारी स्कूलों से 28 लाख छात्र-छात्राओं का मोहभंग हो चुका है। बच्चों को सरकारी स्कूलों में लाने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश मेें स्कूल चले अभियान, प्रवेशोत्सव और मध्यान्ह भोजन के साथ शासन की दर्जन भर लोक लुभावन योजनाएं चलाई जा रही हैं इसके बाद भी बच्चे आकर्षित नहीं हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह है स्कूलों में पढ़ाई का बिगड़ा ढर्रा और जरूरी सुविधाओं का अभाव। यह व्यवस्थाएं सुधारने की जगह शासन की योजनाएं एसी कमरों में बैठकर मात्र फाइलों में चलती रहती हैं। इस स्थिति को देखते हुए विभाग ने एडमिशन की अंतिम तारीख को आगे बढ़ाते हुए सरकारी स्कूलों में 12 अगस्त कर दी गई है। प्रदेश की बदहाल शिक्षा व्यवस्था के बारे में जब भी विजय शाह से सवाल किया जाता है तो वे कतराने लगते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वे किस काम के मंत्री हैं। जानकार बताते हैं कि उनका मन केवल तबादले में लगा ही रहता है।
पहली से आठवीं तक बिना पढ़े पास होने के कारण ज्यादातर बच्चों की नींव कमजोर हो चुकी है। नतीजतन हर वर्ष करीब चार लाख बच्चे नौवीं के बाद दसवीं बोर्ड की परीक्षा में शामिल नहीं होते हैं इनमें से करीब एक लाख छात्र छात्राएं बोर्ड परीक्षा के डर से हर वर्ष पढ़ाई छोड़ देते हैं शेष अन्य सामाजिक आर्थिक कारणों से दसवीं की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं।
निराशाजनक परिणाम ने खोली पोल
विजय शाह के दावे के बावजूद इस बार दसवीं-बारहवीं का परिणाम बेहद निराशाजनक रहा। पहली बार हुआ कि बेकार परिणाम रहने पर अपनी नाकामयाबी छुपाने के लिए विभाग ने कोई आंकड़े जारी नहीं किए। लेकिन बेकार परिणाम के चलते सर्वाधिक छात्रों ने इस बार सुसाइड किया। इसकी वजह निश्चित रूप से स्कूल शिक्षा विभाग की लापरवाही है। विभाग में शिक्षण व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए कोई अच्छा इंतजाम नहीं किया था। जबकि महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस की अध्यक्षता में गठित छात्रों द्वारा मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या करने संबंधी सामाजिक समस्या के समाधान समिति ने 24 मार्च 17 को विधानसभा में रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी। रिपोर्ट में आत्महत्या के 55 कारण और 70 समाधान बताए थे। 12 मई को दोनों कक्षाओं का रिजल्ट घोषित होने के बाद सरकार को रिपोर्ट याद आई थी।
80 हजार स्कूलों में एक ही शौचालय
प्रदेश में स्कूलों की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां 80 हजार स्कूलों में बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं हैं। प्रदेश सरकार ने दो साल में सौ फीसदी शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा था जिसके एवज में महज 15 फीसदी ही नए शौचालय बन सके हैं। सरकारी स्कूलोंं में शौचालय निर्माण को लेकर बेहद लापरवाही सामने आई है।
सिर्फ शाह के गृह जिले में अतिथि शिक्षकों की भर्ती
प्रदेश में नया शिक्षण सत्र शुरू हो चुका है, लेकिन खंडवा को छोड़कर अन्य जिलों में अब तक अतिथि शिक्षकों को रखने का आदेश ही नहीं दिया गया है। हालात यह है कि शिक्षकों की कमी के चलते कई स्कूलों में अब तक पढ़ाई ही शुरू नहीं हो पा रही है। खास बात यह है कि स्कूल शिक्षा मंत्री विजय शाह ने एक सप्ताह पहले अपने गृह जिले खंडवा में अतिथि शिक्षकों की भर्ती के आदेश दे दिए थे, जिसके चलते वहां प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है, जबकि अन्य जिलों को अभी भी इस आदेश का इंतजार है। पूरे प्रदेश में करीब 41 हजार शिक्षकों की कमी है, जिसके चलते स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित हो रही है। समग्र शिक्षक व्याख्याता एवं प्राचार्य कल्याण संघ के प्रदेशाध्यक्ष मुकेश शर्मा ने सिर्फ एक जिले में अतिथि शिक्षक की भर्ती के आदेश पर सवाल उठाए हैं।
-सुनील सिंह