कांग्रेस के संकट दिग्विजय
02-Aug-2017 09:25 AM 1234777
मप्र में किसान आंदोलन के बाद कांग्रेस में जिस तरह की सक्रियता, सजगता और एकता दिख रही है उससे सत्तारूढ़ भाजपा भी सहमी हुई है। क्योंकि करीब 13 साल में पार्टी के दिग्गज नेता पहली बार इतने सक्रिय और संगठित नजर आ रहे हैं। दशकों से चले आ रहे मतभेदों को कांग्रेस के नेताओं ने सत्ता पाने के लिए लगभग भुला ही दिया है। लेकिन भाजपा के रणनीतिकार आश्वस्त हैं। उन्हें उम्मीद है की हर बार की तरह कांग्रेस के तथाकथित संकटमोचक दिग्विजय सिंह कांग्रेस के लिए संकट बनेंगे और अपनी ही पार्टी की जड़ में मट्ठा डालेंगे। दरअसल मप्र में कांग्रेस के बंटाढार के लिए दिग्विजय सिंह ही जिम्मेदार हैं। दिग्विजय सरकार के दूसरे कार्यकाल में सिंह का व्यवहार ही नहीं, नीतियां भी खराब हो गई थीं। इसीलिए प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई। तब चुनाव के एक साल पहले उन्होंने शासकीय कर्मचारियों से पंगा ले लिया। ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है जिसको अगली बार सरकार न बनानी हो। 2003 में बाकी धड़ों ने दस साल से सता रहे दिग्विजय सिंह को सबक सिखाने के लिए कांग्रेस की लुटिया डुबो दी थी। हालांकि इसमें दिग्विजय सिंह का खुद भी कम योगदान नहीं था। लोग अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं लेकिन दिग्गी राजा ने तो मानो कुल्हाड़ी पर ही पैर मारे। चुनाव हारने के बाद दस साल के राजनीतिक वनवास की बात कहने वाले दिग्विजय सिंह कहने को खुद को प्रदेश की राजनीति से दूर रखे रहे लेकिन गुटबाजी को हवा देते रहे। उधर पिछले तेरह साल में भाजपा की सरकार ने दिग्विजय सिंह की बंटाधारा की छवि को गहरा कर दिया है। भाजपा के नेता यह मानते हैं कि यदि दिग्विजय सिंह राज्य में सक्रिय होते हैं तो चौथी बार कांगे्रस विधानसभा का चुनाव हार जाएगी। इसकी झलक भी दिखने लगी है। लहार में डॉ. गोविंद सिंह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने सिंधिया की और मुखातिब होकर यह टिप्पणी कर सभी को चौंका दिया था कि हमसे लडऩा बंद करो, जाकर भाजपा से लड़ो। दिग्विजय सिंह की टिप्पणी का अर्थ यह निकाला गया कि पार्टी में नेतृत्व का फैसला सिंधिया के कारण ही अटका हुआ है। दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए अपनी अलग रणनीति बनाई है। दिग्विजय सिंह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नर्मदा यात्रा के जवाब में नर्मदा यात्रा पर निकलने की योजना बना चुके हैं। उन्होंने तीस सिंतबर को नर्मदा यात्रा पर निकलने का कार्यक्रम बनाया है। छह माह की इस यात्रा के लिए उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से औपचारिक अनुमति मांगी है। 3300 किमी की इस यात्रा में पत्नी अमृता राय उनके साथ होंगी। उनके यात्रा के मार्ग में 110 विधानसभा क्षेत्र आएंगे। दिग्विजय सिंह ने ऐलान किया है कि उनका रात्रि पड़ाव पूर्व निर्धारित नहीं होगा। जहां रात्रि होगी, विश्राम वहीं होगा। यानी पार्टी से अलग राह पर दिग्गीराजा चलेंगे। जानकारों का कहना है कि अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में वापस लौटना है तो उसे दिग्विजय सिंह को किनारे लगाना होगा। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि किसी भी राजनीतिक पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए पार्टी को कड़वा घूट पीना ही पड़ता है। काग्रेस  पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी ही यह रही है कि वह जिस बैसाखी के सहारे चल रही है, उससे कभी उबरना ही नहीं चाहती है। कांग्रेस पार्टी नेतृत्व का प्रश्न हो या संगठन के किसी पदाधिकारी का, जो है उसी से गुजारा करने की  प्रवृत्ति ने कांग्रेस को सदा गिराने का काम किया है। दिग्विजय सिंह को अब कोई भी पसंद नहीं करता परन्तु इनकी बदजुबानी के बाद पार्टी ने इन्हें इतनी अधिक  अहमियत दे रखी है कि यही पार्टी की नींव को खोखला कर रहे है।  कुछ सोचकर पार्टी नेतृत्व ने दिग्विजय सिंह के कुछ पर तो कतर दिए यानी उन्हें कर्नाटक और गोवा के प्रभारी पदों से मुक्त कर दिया है, लेकिन उन्हें मप्र से भी दूर रखना होगा। मध्य प्रदेश कांग्रेस के एक बड़े नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, एक जमाना था, जब दिग्विजय सिंह कहा करते थे कि चुनाव काम करके नहीं, बल्कि मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। जनवरी 2002 में उन्होंने दलित एजेंडा वगैरह लागू करने की पहल इसी चुनावी मैनेजमेंट के तहत की थी। हालांकि 2003 में उनका यह दांव चला नहीं। भारी पड़ रहे हैं दिग्विजय सिंह के पैंतरे प्रदेश के लगातार दो बार मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव का काम देख रहे दिग्विजय सिंह द्वारा प्रदेश की राजनीति में समय-समय पर चलने वाले पैंतरे पार्टी को भारी पड़ रहे हैं। पार्टी की एकता के सवाल हों या फिर कोई आम चुनाव उनका दांव हमेशा से ही पार्टी के लिए भारी पड़ता नजर आता है। बावजूद इसके पार्टी उनके पैतरों से अब तक बाहर नहीं निकल सकी है। इसका ताजा उदाहरण सिंधिया के प्रभाव वाले इलाके डबरा में एकता दिखाने के लिए आयोजित की गई पार्टी की वह रैली है जिसमें लगभग प्रदेश के सभी बड़े नेता मौजूद थे। इस दौरान कांगे्रस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पक्ष में नारों के बीच जब दिग्विजय सिंह का भाषण हुआ तो उन्होंने कहा कि मेरे बोलने के लिए कुछ नहीं बचा है। मैं बस इतना बताना चाहता हूं कि कांग्रेस की ओर से मैं सीएम पद का दावेदार नहीं हूं। राज बब्बर जी और मोहन प्रकाश भी इसके दावेदार नहीं है। एक बात यह है कि मंच पर अब जो शेष लोग बैठे हैं अगला सीएम उन्हीं में से होगा। दिग्विजय सिंह के इन शब्दों ने कांगे्रस के पूरे शो पर पानी फेरकर एक बार फिर गुटबाजी को हवा दे दी। कांटे से कांटा निकालने में दिग्विजय सिंह की महारात मानी जाती है। उन्होंने सीएम पद के दावेदारों से खुद को अलग तो किया लेकिन तीन नए दावेदार जोड़ दिए। उनकी सियासत की धुरी ही गुटबाजी है। -भोपाल से अरविंद नारद
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