02-Aug-2017 09:17 AM
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किस शहर की क्या जरूरतें हैं और उन्हें कब पूरा होना चाहिए, इसके लिए समय पर प्लानिंग होती है। शहर का विकास कर इसे खूबसूरत व सुनियोजित बनाने के लिए मास्टर प्लान बनाए जाते रहे, लेकिन मप्र की राजधानी का मास्टर प्लान 2005 से अधर में है, फिर भी शहर का विकास धड़ाधड़ हो रहा है। यानी बिना प्लानÓ के कहीं का रोड़ा, कहीं का पत्थर जोड़ कर शहर को कंक्रीट के जंगल में तब्दील किया जा रहा है। शहरी प्रबंधन पर सालाना करोड़ों रुपए खर्च करने वाली सरकार शहरों की विकास योजनाओं को लागू कराने में फिसड्डी है। यही वजह है कि प्रदेश के आधे शहर बिना मास्टर प्लान या फिर एक्सपायर्ड प्लान के भरोसे अपने विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाने को मजबूर है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खुद राजधानी भोपाल है। 2005 में यहां का मास्टर प्लान एक्सपायर हो चुका है, लेकिन अब तक इसके ही आधार पर आगे बढ़ा जा रहा है। खंडवा, सीहोर, छिंदवाड़ा समेत अब भी 45 शहर ऐसे हैं जो एक्सपायर मास्टर प्लान से काम चला रहे हैं। इनमें से 25 से अधिक शहरों के मास्टर प्लान के ड्राफ्ट बनकर तैयार है, लेकिन इन्हें लागू नहीं किया जा रहा। भोपाल मास्टर प्लान का ड्राफ्ट ही अक्टूबर 2013 से बनकर तैयार है, लेकिन लागू नहीं किया गया।
राजधानी के मास्टर प्लान 2031 भले ही जारी नहीं हो पाया हो लेकिन हकीकत तो यह है कि इसमें शहर के रसूखदारों का दखल बढ़ता जा रहा है। उनके दखल के कारण ही शहर के कई कैचमेंट एरिया से लगे क्षेत्रों को लो डेंसिटी एरिया घोषित किया गया है जिससे उनको निर्माण की अनुमति मिल सके और आगे चल कर वह पूरा एरिया व्यावसायिक बन जाए। इस संबंध में भदभदा के पास साक्षी ढाबे से लगी रसूखदारों की बेहद जमीन है जिनकी अनुमति के लिए 2005 भोपाल विकास योजना में लो डेंसिटी एरिया घोषित किया गया था अब इसको हटाया जाए या नहीं यह एक बड़ा सवाल बनकर सबके सामने आया है। भोपाल मास्टर प्लान 2031 के जारी होने से पहले इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों के विपरीत परिणाम सामने आ रहे हैं। शहर के ग्रीन बेल्ट को बचाने की कवायद ठंडे बस्ते में जाती जा रही है और लो डेंसिटी एरिया के घोषित होने के बाद शहर की फिजां संवरने की बजाय बिगड़ती जा रही है। इससे पहले भोपाल विकास योजना 2005 में भी बड़ी झील को बचाने की बात तो कही गई थी लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाया था।
अब संचालनालय नगर तथा ग्राम निवेश के अधिकारियों की बड़ी चिंता इस बात की है कि कहीं भोपाल मास्टर प्लान 2031 का हाल भी भोपाल विकास योजना 2005 जैसा ही न हो। राजधानी के प्रस्तावित मास्टर प्लान में राजधानी की 14 झीलों और उसके कैचमेंट एरिया को बचाने की बात कही जा रही है। इस समय हालत यह है कि कहने के लिए झील से 50 मीटर की दूरी तक निर्माण की अनुमति नहीं है, लेकिन अब तक ग्रीन बेल्ट रहे बड़े हिस्से में निर्माण की अनुमति देने का प्रावधान प्रस्तावित होने से कई सवालिया निशान खड़े हो गए हैं।
सवाल यह भी है कि नए मास्टर प्लान में कैचमेंट एरिया को किस तरह से बचाया जाए, क्योंकि 1995 के मास्टर प्लान में बड़ी झील के जलग्रहण क्षेत्र में किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं थी। उसके बाद प्रेमपुरा और लालघाटी के आसपास के क्षेत्र को लो डेंसिटी एरिया घोषित किया गया है। आशय यह है कि इस क्षेत्र में अब निर्माण की अनुमति मिल जाएगी। लो डेंसिटी एरिया बनने के बाद इस क्षेत्र की सूरत बिगड़ती जा रही है। इसी तरह भदभदा रोड पर स्थित साक्षी ढाबे के आसपास के एरिया को भी लो डेंसिटी में शामिल किया गया था। अब तक यहां भी निर्माण की अनुमति नहीं थी। जानकार बताते हैं कि इन क्षेत्रों में कई नौकरशाहों और प्रभावशाली लोगों ने बड़ी मात्रा में जमीन खरीद रखी है। अब तक उन्हें निर्माण की अनुमति नहीं मिल पा रही थी। सवाल यह है कि बड़ी झील के कैचमेंट एरिया में निर्माण की अनुमति देकर हम झील को कैसे बचा पाएंगे?
मास्टर प्लान के ड्रॉफ्ट में बार-बार हुए बदलाव
भोपाल शहर के मास्टर प्लान में बीते 15 साल के दौरान 213 संशोधन हुए हैं। 5 अक्टूबर 2007 में तत्कालीन संचालक नगर एवं ग्राम निवेश मप्र दीप्ति गौड़ मुकर्जी ने सरकार को 15 बिंदुओं की रिपोर्ट सौंपकर नए प्लान की जरूरत को खारिज किया। 2005 को ही पर्याप्त बताया। सरकार ने तमाम बिंदुओं को खारिज कर संचालक बदल दिया। नई संचालक दीपाली रस्तोगी ने प्लान बनाकर नौ अगस्त 2008 को प्रकाशित करवा दिया। इसे भी रोक दिया गया। सितंबर 2009 में नया प्लान बनवाया गया। 1600 से अधिक आपत्तियों के बाद इसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। एक साल बाद फिर प्लान के लिए नगर एवं ग्राम निवेश अधिनियम के विरुद्ध तकनीकी समिति बना दी गई। इसके आधार पर प्लान बनाने की कवायद शुरू हुई। 2012 में 2031 के लिए मास्टर प्लान का ड्रॉफ्ट तैयार कर दिया गया, अक्टूबर 2012 में इस पर आपत्तियां आमंत्रित करने के दावे किए, लेकिन ये अब तक अटका ही हुआ है। सुझावों और आपत्तियों पर ध्यान ही नहीं दिया गया।
-राजेश बोरकर