02-Aug-2017 09:14 AM
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महिला विश्वकप का फाइनल हम हार गए। यहां हम पर थोड़ा जोर दूंगा क्योंकि यही हमÓ इस पूरे विश्वकप की सबसे बड़ी जीत है। पहली बार महिलाओं की टीम को हमने अपनी टीम की तरह देखा। उसकी जीत से खुश हुए, उसकी हार पर दुख हुआ। फिर भी अब देश में हर कोई गर्व से कह रहा है कि म्हारी छोरियां छोरों से कम है क्या। बात भी सही है। जिस तरह हमारी महिला क्रिकेट टीम ने एक-एक टीम को धूल चटाई है उससे यह तो उम्मीद जग ही गई है कि अब म्हारी छोरियों का भविष्य भी उज्जवल है।
आईसीसी महिला विश्व कप के फाइनल मुकाबले में भारतीय महिला क्रिकेट टीम को भले ही हार का सामना करना पड़ा है लेकिन इसके बावजूद भी टीम की जमकर तारीफ हो रही है और साथ ही टीम की कप्तान मिताली राज को भी खूब सराहना मिल रही है। भारत और इंग्लैंड की टीम के बीच खेले गये फाइनल मुकाबले में भारतीय टीम 9 रन से हार गयी। लेकिन एक नए अध्याय की शुरूआत हो गई है। ठीक उसी तरह जैसा 1983 वल्र्ड कप जीतने के बाद भारतीय पुरूष क्रिकेट का हुआ था। भारतीय महिला क्रिकेट में मिताली राज और झूलन गोस्वामी के नाम ही अब तक आपने सुन रखे होंगे शायद, लेकिन अब हरमनप्रीत कौर, राजेश्वरी गायकवाड़, शिखा पांडे, सुषमा वर्मा, दीप्ति शर्मा, पूनम यादव, वेदा कृष्णमूर्ति, पूनम राउत, स्मृति मंधाना इन नामों ने भी अपने हुनर से सबको चकित कर दिया है।
ये हार तो होनी ही थी। वो लोगÓ तो तबसे कह रहे थे, जब भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ पहला वॉर्म-अप मैच हारा था। भारत ने टूर्नामेंट के पहले मैच में इंग्लैंड को हराया। उसके बाद भी हार तो होनी ही थी, ऐसा वो लोग कह रहे थे। उन्होंने फिर अपनी बात दोहराई, जब भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका से हार गई। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भटके, तब भी वे बोले। वे कहते हैं, जब दबाव आएगा, तो भारतीय टीम हार जाएगी। वे भारत के कमजोर घरेलू सिस्टम की तरफ इशारा करते हैं। वे बताते हैं कि कैसे टूर्नामेंट से दो महीने पहले कामयाब कोच को हटा देना सही नहीं था। वे मिताली राज पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता की ओर इशारा करते हैं। ये वो लोग हैं, जो लगातार बताते रहे हैं कि भारत क्यों नहीं जीतेगा। इस बीच भारत जीतता रहा। भारत ने नॉकआउट जैसे मैच में न्यूजीलैंड को हराया। पिछली चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को सेमीफाइनल में स्तब्ध कर दिया। वे वल्र्ड कप फाइनल भी लगभग जीत ही गए थे। उसके बाद हार और इंग्लैंड ने उन्हें जकड़ लिया।
हार के बावजूद यह भारतीय टीम की जीत है
अगर ये ओलिंपिक होता, तो हम खुशी मना रहे होते, जैसे पीवी सिंधु के सिल्वर मैडल के लिए मनाई थी। इसके बजाय मिताली असहाय अपनी टीम को एक और फाइनल हारते देखती रहीं। लेकिन इस हार का जश्न मनाने की जरूरत है। ठीक वैसे ही, जैसे भारत को मिताली राज और गोस्वामी के करियर का जश्न मनाना चाहिए। ये दोनों करियर के बेहतरीन अंत से कुछ इंच पीछे रह गईं। भारत ने विश्व कप फाइनल में बाद में बल्लेबाजी करते हुए सबसे ज्यादा रन बनाए। ये उन्होंने मिताली के बगैर किया। आखिरकार भारत को हार ने पकड़ ही लिया। अच्छे स्तर के घरेलू क्रिकेट में ना खेलना उन्हें भारी पड़ा। मैनेजमेंट में स्थायित्व और सोच की कमी होना बारी पड़ा। लेकिन उन्होंने हार को धोखा दिया। वो भी अंत तक। पहले क्वार्टर में... फिर सेमी में। जब हार आई भी, तो वे उसके सामने डटकर खड़े हुए. ... पूरे मुल्क ने उन्हें ऐसा करते देखा। ये कुछ ऐसा है, जिसका जश्न मनाना चाहिए।
-आशीष नेमा