19-Jul-2017 08:28 AM
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भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज अंतरराष्ट्रीय महिला वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली बल्लेबाज बन गई हैं। साथ ही उन्होंने अभी तक के अपने प्रदर्शन से यह साबित कर दिया है कि वे भारतीय पुरूष क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली से किसी मायने में कम नहीं हैं। लेकिन फिर भी उन्हें हम कम ही आंकते हैं। आप भी दिल पर हाथ रख कर बताइए कि जैसे हम क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली आदि को सिर आंखों पर बिठाते हैं, वैसे हमने क्या कभी मिताली राज या बोलिंग लीजेंड झूलन गोस्वामी को मान दिया है। एक ही खेल है। खेल के प्रशासक-बोर्ड भी वही हैं, फिर ये भेदभाव क्यों? स्टार पुरुष क्रिकेटर्स पर पैसों की बरसात तो महिला स्टार क्रिकेटर्स पर क्यों नहीं।
यहां अगर कहा जाए कि रातों-रात भेदभाव खत्म हो जाएगा और महिलाओं से खेलों में बराबरी का व्यवहार होने लगेगा तो ये सिर्फ कोरी कल्पना ही होगी। फिर ये भेदभाव कैसे खत्म होगा। ये तभी होगा जब हम सबसे पहले मानसिकता बदलेंगे। अधिक से अधिक बेटियां खेल में करियर बनाने के लिए आगे आएं। कोई मिताली-झूलन जी-तोड़ मेहनत कर नाम कमाएं तो उन्हें भी बीसीसीआई, सरकार और प्रायोजकों की तरफ से वैसा ही प्रोत्साहन मिले जैसा कि पुरुष स्टार क्रिकेटर्स को मिलता है। ऐसा माहौल बनेगा तो अधिक लड़कियां खेलों की ओर प्रेरित होंगी। क्रिकेट ही क्यों, हर खेल में ही क्यों नहीं। यहां दंगलÓ फिल्म का डॉयलॉग याद आता है, मेडल छोरा लाए या छोरी, मेडल तो मेडल ही होता है, उससे मान तो तिरंगे का ही बढ़ता है। अब दंगलÓ में कोई तो बात होगी जो चीन जैसे खेल प्रधान देश में भी उसका जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है।
भारत में सानिया मिर्जा (टेनिस), साइना नेहवाल, पीवी सिंधू (बैडमिंटन) जैसी कुछ खिलाड़ी अपनी मेहनत से ऊंचे मुकाम पर पहुंची लेकिन जहां महिलाओं की टीम स्पर्धाओं का उल्लेख होता है तो उन्हें कवरेज के लिहाज से बोरिंग ही माना जाता है। इसी कवरेज में सबसे ज्यादा भेदभाव होता है। रिसर्च बताती हैं कि स्पोट्र्स मीडिया आउटलेट्स महिलाओं के गेम की कवरेज को हल्के में लेते हैं। सुस्त कैमरावर्क, कम एक्शन रीप्ले और सब स्टैंडर्ड कमेंट्री, जबकि आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में विजिबिलिटी ही मायने रखती है।
महिला खेलों को देखने के लिए जितने दर्शक बढ़ेंगे, उतना ही उनसे भेदभाव खत्म होगा। मार्केट फोर्सेज भी मजबूर होंगी। महिला खेलों के लिए अधिक स्पॉन्सर्स आगे आएंगे। उन्हें मेहनताने के तौर पर अच्छी रकम मिलेगी। ब्रैंड इमेजिंग वाली कंपनियां महिला खिलाडिय़ों को भी तवज्जो देने लगेंगी। अभी ये तर्क दिया जाता है कि महिला खेल स्पर्धाओं को अधिक दर्शक नहीं मिलते, इसलिए उन्हें टीवी और मार्केट में ज्यादा भाव नहीं दिया जाता। लड़कियां स्पोट्र्स को करियर बनाने के लिए ज्यादा आगे आएं। वहीं स्पॉन्सरशिप्स, कवरेज, खेल संगठनों और आयोजकों में भी पूर्व खिलाड़ी रह चुकी महिलाओं और कुशल महिला प्रशासकों को अधिक जगह मिलेगी तो उनकी सुनी भी जाएगी। अभी तो उनकी भागीदारी ना के बराबर तक सीमित रखी गई है। इस दिशा में खेल मंत्रालय समेत राज्य सरकारों को भी ध्यान देना होगा।
योग्य महिला खिलाडिय़ों को छात्रवृत्ति, सरकारी नौकरी देकर पुरुस्कृत किया जाना चाहिए। उन्हें ये चिंता नहीं होनी चाहिए कि स्पोट्र्स को करियर बनाने से सम्मान के साथ जिंदगी जी पाएंगी या नहीं। यहां हम सबको, खास तौर पर पुरुषों को, महिलाओं को लेकर सोच बदलनी पड़ेगी। अभी पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान और सीमर वकार यूनुस ने ट्वीट में कहा है कि महिलाओं के वनडे मैचों के लिए ओवर्स की संख्या 50 से घटा कर 30 कर देनी चाहिए। ये खेल को अधिक मनोरजंक और प्रतिस्पर्धात्मक बनाएगा।
कम ओवर होंगे तो तेज पेस होगी, मतलब ज्यादा दर्शक आएगे। यूनुस के मुताबिक 50 ओवर महिलाओं के लिए बहुत ज्यादा होते हैं यानि इतने ओवर्स खेलने के लिए जितना स्टैमिना होना चाहिए उतना महिलाओं के पास नहीं होता। वकार यूनुस ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए ये तर्क भी दिया है कि टेनिस में भी तो पुरुषों के लिए मैच में 5 सेट और महिलाओं के लिए सिर्फ 3 सेट ही रखे जाते हैं। यूनुस ये लिखना भी नहीं भूले कि उनके बयान को महिलाओं को लेकर भेदभाव से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए और ना ही उनके मन में कोई दुर्भावना है। इस सोच के पीछे वकार के अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन इसका सटीक जवाब ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेटर एलिसा हीली ने दिया। हीली ने कहा कि महिलाओं के 50 ओवर के मैच में 530 जितने रन बनना क्या मनोरंजक नहीं है। दरअसल आज भी हम महिला खिलाडिय़ों को दोयम दर्जे में रखते हैं। जबकि ये पुरुष खिलाडिय़ों से किसी भी मायने में कम नहीं है।
-आशीष नेमा