02-Aug-2017 08:21 AM
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नीतीश कुमार ने महागठबंधन को अलविदा कहकर फिर से भाजपा का दामन थाम लिया है, तब उनके इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान लालू की राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है। भाजपा के लिए यह मनोकामना पूर्ण होने जैसा है, क्योंकि देश का एक अहम राज्य वापस से उनकी झोली में आ गिरा है। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम में नीतीश कुमार एक नायक के तौर पर उभरे हैं, जिन्होंने उसूलों के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। नीतीश कुमार ने इस इस्तीफे के बाद उन लोगों को भी निरुत्तर कर दिया है जो नीतीश का लालू के साथ जाने के फैसले की आलोचना कर रहे थे।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि नीतीश कुमार की राजनीतिक समझ और माहौल को भांपने की कला अद्वितीय है। नीतीश कुमार ने अब तक के अपने राजनीतिक जीवन में सही समय पर सही फैसले किए और साथ ही साथ अपनी गलतियों से बहुत जल्दी सीख भी ली है। साल 2013 में नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होने का फैसला कर एक रिस्क लेने की कोशिश की थी, हालांकि उनका यह दांव उल्टा पड़ गया और लोकसभा चुनावों में जदयू को मिलने वाली सीट घटकर 2 ही रह गयी। हालांकि नीतीश ने तुरंत ही इस गलती से सबक लेते हुए विधानसभा चुनावों के लिए लालू और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना लिया।
उस समय नीतीश के इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई, मगर उन्हें पता था कि वो क्या कर रहे हैं। नीतीश अगर उस समय भारतीय जनता पार्टी के साथ जाते तो उनकी स्थिति उस योद्धा की तरह होती जो युद्ध में हार के बाद आत्मसमर्पण करने जा रहा हो। मगर नीतीश लालू के साथ दो माइनस मिलकर एक प्लस बनाने की दिशा में आगे बढ़ गए। इस बार नीतीश का यह फैसला बिल्कुल सही रहा, और बिहार में महागठबंधन ने भाजपा को पटखनी दे दी। इस जीत के साथ ही नीतीश न केवल एक सर्वमान्य नेता बन कर उभरे बल्कि इस जीत ने नीतीश के लिए भाजपा के आकर्षण को भी फिर से जीवित कर दिया। हालांकि नीतीश को भी इस बात का इल्म था कि लालू के साथ सरकार चलाना आसान नहीं रहने वाला और इसलिए नीतीश ने भाजपा के लिए भी अपने द्वार खुले ही रखे। नीतीश हर उस मुद्दे पर केंद्र सरकार के फैसलों के साथ खड़े नजर आये जिस पर बाकी की विपक्षी पार्टियां सरकार को घेरने में लगी थीं, चाहे वो नोटबंदी का फैसला हो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक हो। नीतीश ने इस कदम से लालू पर भी दबाव बनाए रखा। नीतीश को ये भी भली भांति मालूम था कि लालू के साथ उनका लम्बा राजनीतिक भविष्य नहीं हो सकता, और इसी कारण नीतीश लालू से अलग होने के लिए उचित समय की तलाश में थे। जहां वो बिना राजनीतिक नुकसान उठाये लालू से किनारा करने में भी सफल हो जाएं और अब सही समय पर नीतीश ने लालू के साथ अपने गठबंधन को भी तिलांजलि दे दी है। भाजपा के साथ गठबंधन के बाद नीतीश कुमार छठी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गए हैं, लेकिन अब उन पर आरोप लग रहा है कि वे लालू यादव का राजनीतिक कैरियर खत्म करने के दोषी हैं। उधर लालू के पुत्र तेजस्वी यादव ने भी नीतीश कुमार पर जमकर प्रहार किया है। उन्होंने नीतीश कुमार पर कई तरह के आरोप भी लगाए। साथ ही उन्होंने नीतीश कुमार को डरपोक और कायर भी करार दिया।
नीतीश-मोदी की दोस्ती से जेडीयू में बवाल
बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के साथ बने महागठबंधन से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने भाजपा से हाथ मिलाया, फिर आनन-फानन में मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। नीतीश के साथ पुराने साथी भाजपा विधानमंडल दल के नेता सुशील मोदी डिप्टी सीएम बन गए। लेकिन, इस फैसले से जेडीयू के भीतर की नाराजगी भी खुलकर सामने आ गई है। जेडीयू के राज्यसभा सांसद अली अनवर ने फिर से भाजपा के साथ जाने के अपनी पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार के फैसले पर सवाल खड़ा कर दिया है। अली अनवर का कहना है कि नीतीश कुमार ने अंतरात्मा की आवाज पर भले ही भाजपा के साथ जाने का फैसला कर लिया। लेकिन, मेरे जमीर को यह बात गवारा नहीं है। अली अनवर का कहना है कि भाजपा आज भी उसी उग्र रास्ते पर जा रही है जिस रास्ते से हमें परहेज था। जेडीयू के दूसरे राज्यसभा सांसद और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव भी नाराज बताए जा रहे हैं।
- विनोद बक्सरी