900 करोड़ का सृजन घोटाला
31-Aug-2017 06:31 AM 1234877
भागलपुर का चर्चित सृजन घोटाला हरि अनंत हरि कथा अनंताÓ के अवतार में दिख रहा है। पापड़, चरौरी, दनौरी, तिलौड़ी बेचने और सिलाई-कढ़ाई सिखाने वाली शातिर दिमाग की मनोरमा देवी सरकारी खजाने को लूटकर केवल 10 साल में अरबपति बन गई और सिस्टम टुकुर-टुकुर देखता रहा। इस गड़बड़झाले में भागलपुर की गलियों में धूल फांकने वाले कई छुटभैया नेता और सरकारी हुक्मरान भी करोड़पति बन गए। सबसे हैरानी की बात यह है की इस दौरान सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार का शासन बिहार में रहा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा सीबीआई जांच की अनुशंसा किये जाने के बाद इसकी चर्चा बिहार से बाहर होने लगी है। इस घोटाले के पीछे सृजन नामक एनजीओ की कहानी है। सृजन संस्था का पूरा नाम सृजन महिला विकास सहयोग समिति है। इससे एकीकृत बिहार (अब झारखंड) के रांची में लाह अनुसंधान में वरीय वैज्ञानिक की पत्नी मनोरमा देवी के आत्मनिर्भर बनने की कहानी गुथी हुई है। वर्ष 2007-2008 में सृजन को-ऑपरेटिव बैंक खुल जाने के बाद से घोटाले का खेल शुरू होता है। भागलपुर ट्रेजरी के पैसे को सृजन को-ऑपरेटिव बैंक के खाते में ट्रांसफर करने और फिर वहां से सरकारी पैसे को बाजार में लगाया जाने लगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सृजन में स्वयं सहायता समूह के नाम पर कई फर्जी ग्रुप बनाये गये। उनके खाते भी खोले गये और इन खातों के जरिये नेताओं और नौकरशाहों का कालाधन सफेद किया जाने लगा। यह घोटाला सुनियोजित तरीके से होता रहा है। सरकारी विभाग के बैंकर्स चेक या सामान्य चेक के पीछे सृजन समितिÓ की मुहर लगाते हुए मनोरमा देवी हस्ताक्षर कर देती थीं। इस तरह उस चेक का भुगतान सृजन के उसी बैंक में खुले खाते में हो जाते थे। जब भी कभी संबंधित विभाग को अपने खाते की विवरणी चाहिए होती थी, तो फर्जी प्रिंटर से प्रिंट करा कर विवरणी दे दी जाती थी। इस तरह विभागीय ऑडिट में भी अवैध निकासी पकड़ में नहीं आ पाती थी। सृजन में घोटाला वर्ष 2008 से ही हो रहा है। उस समय बिहार में जदयू-भाजपा की सरकार थी। वित्त मंत्रालय का प्रभार सुशील कुमार मोदी के पास था। उसी साल ऑडिटर ने यह गड़बड़ी पकड़ ली। तब ऑडिटर ने आपत्ति जतायी कि सरकार का पैसा को-ऑपरेटिव बैंक में कैसे जमा हो रहा है? उसके बाद तत्कालीन एसडीएम विपिन कुमार ने सभी प्रखंड के अधिकारियों को पत्र लिखा कि पैसा सृजनÓ के खाते में जमा नहीं करें। इसके बावजूद सब कुछ पहले जैसा ही होता रहा। आखिर कोई जिलाधिकारी किसके आदेश पर सरकारी विभागों का पैसा सृजन को-ऑपरेटिव बैंकÓ के खाते में भेज रहा था? यहां पदस्थापित होने वाले दूसरे कई जिलाधिकारियों ने भी ऐसा होने दिया। इसके बाद 25 जुलाई, 2013 को भारतीय रिजर्व बैंक ने बिहार सरकार से कहा था कि इस को-ऑपरेटिव बैंक की गतिविधियों की जांच करें। रिजर्व बैंक का आदेश है कि अगर 30 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी होगी, तो जांच सीबीआई करेगी। वर्ष 2013 में भागलपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी प्रेम सिंह मीणा ने सृजनÓ की बैंकिंग प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए जांच टीम गठित कर दी थी। अब फिर यह मामला गर्म हो गया है। अब तक 6 रहस्यमयी मौतें सृजन स्कैम की नींव पडऩे से लेकर परवान चढऩे तक 6 रहस्यमयी मौतें हुईं जिसमें दारोगा रैंक का एक पुलिस अधिकारी भी शामिल है। मरने वालों का डायरेक्ट और इनडायरेक्ट संबंध शातिर घोटालेबाजों से किसी न किसी मुकाम पर किसी न किसी वजह से रहा है। इनमें से कम से कम तीन मृतकों के परिवार वालों ने पुलिस को रो-रो कर साक्ष्य के साथ समझाने का प्रयास किया कि हमारे प्रियजनों की हत्या की गई हैÓ। दोषियों को पकडऩे के लिए अधिकारियों के सामने भी उन लोगों ने विनती की, लेकिन चांदी की जूती ने पुलिस का दिल पिघलने से रोक दिया। हालांकि डीएसपी रैंक के एक पुलिस अधिकारी ने तर्क दिया कि लालच, डर और दबाव तीनों ने मिलकर हम लोगों को अपने कर्तव्य के निर्वहन करने से रोके रखाÓ। - विनोद बक्सरी
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