02-Aug-2017 08:12 AM
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प्रदेश में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने 14 वर्ष में पांच इन्वेस्टर्स मीट इंदौर में उसके अलावा ग्वालियर, सागर, जबलपुर और प्रदेश के बाहर मुंबई, बैंगलूरू, कोलकाता आदि शहरों में दर्जनों रोड शो कर डाले। वहीं बीमारू राज्य को उबारने के लिए एक दर्जन से अधिक विदेश यात्राएं कर करोड़ों रुपए फूंक दिए, ताकि अधिक से अधिक युवाओं को रोजगार मिल सके। उधर, सरकार के लोन बांटने वाले निगम एमपीएसआईडीसी कानूनी पचड़ों में फंस गया है। तत्कालीन प्रबंध संचालक एमपी राजन ने कांग्रेस के राज्य में उद्योगपतियों को उद्योग लगाने के लिए बगैर अपनी वित्तीय स्थिति देखे सरकार को कर्जे में धकेल कर करोड़ों रुपए के लोन बांट दिए थे। इस मामले में आर्थिक अनियमितता के 42 अपराध ईओडब्ल्यू में पंजीबद्ध है जिनमें से 20 में चालान लग चुका है और प्रदेश के बाहर कोलकाता और मुंबई में भी कई मामले लंबित हैं। 259 करोड़ों की रिकवरी के लिए सरकार ने लाखों रुपए की रकम फूंक दी परंतु हाथ कुछ नहीं लगा।
अब सरकार ने एमपीएसआईडीसी को पिछले 6 माह से बंद करने का निर्णय ले लिया। इसके लिए कवायदे चालू हैं परंतु इसको ट्राईफेक में मर्जर करने के लिए सरकार को उन सारे आर्थिक अनियमितताओं के मामलों को सुलझाना पड़ेगा तब जाकर प्रदेश में काम कर रही औद्योगिक केन्द्र विकास निगम और उनकी सहायक छह कंपनियों का विलय ट्राइफेक में हो पाएगा। सरकार ये कवायद इसलिए कर रही हैं कि बीमारू राज्य में उद्योगों को किसी भी तरीके से प्रलोभन देकर प्रदेश के सातों औद्योगिक विकास निगम की स्थिति ठीक किसा जा सके। इंदौर, उज्जैन, भोपाल, ग्वालियर, सागर, जबलपुर, रीवा के निगमों को औद्योगिक विकास निगम के अधीन लाया जा सके। हालांकि इसको करने में छह माह से अधिक का समय भी लगेगा परंतु इससे इन निगमों की हालत ठीक हो जाएगी। कारण सीधा सा है कि इंदौर और भोपाल को छोड़कर सभी निगम घाटे में चल रहे हैं। अब औद्योगिक विकास निगम बन जाने से एक ही बैलेंस शीट पर लोन मिल जाएगा।
प्रदेश में 1977 में निर्यात निगम कंपनी बनाई गई थी और उसकी सारी गतिविधियों को 2004 में एमपीएसआईडीसी लिमिटेड को सौंप दिया गया ताकि निवेशकों को सुविधाएं मिल सके और सिंगल विंडो सिस्टम से इन्वेस्टर्स को खुश किया जा सके। बाद में जब उद्योगों को लोन देने का सिलसिला बंद हुआ तो फिर मध्यप्रदेश ट्रेड इन्वेस्टमेंट फेसिलिएटेशन कार्पोरेशन का गठन हुआ था।
अब मप्र में औद्योगिक विकास के लिए महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, हरियाणा आदि राज्यों में औद्योगिक अद्योसंरचना विकास हेतु अपनाई गई कार्य योजना की तरह पूरे प्रदेश के लिए एक निगम के गठन के लिए मंत्री परिषद ने अपनी मोहर लगा दी है। इससे प्रदेश में समेकित औद्योगिक विकास हो सकेगा। ज्ञातव्य है कि एकेवीएन का काम अपने-अपने क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना और उनका विकास करना था, लेकिन इन सात एकेवीएन में से इंदौर और भोपाल को छोड़कर बाकी पांचों एकेवीएन अपने-अपने क्षेत्र में औद्योगिक विकास में पिछड़ गए। पांचों एकेवीएन एक बार भी फायदे में नहीं रहे। ये निरंतर घाटे में चल रहे हैं। दरअसल मध्यप्रदेश में औद्योगिक विकास का यह जो मॉडल बना है वह कई मामलों में कमजोर है। एकेवीएन का काम अपने क्षेत्र में जमीनों का चयन, उनका विकास और उस पर उद्योगों की स्थापना करने के साथ ही उसकी निगरानी करना है। लेकिन पांच एकेवीएन तो पूरी तरह फेल हो गए। इस कारण इनकी बैलेंस शीट भी घाटे की रही। घाटे की बैलेंस शीट के कारण इन्हें लोन भी नहीं मिला। ऐसे में इन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास पूरी तरह प्रभावित रहा। प्रदेश एकेवीएन के वित्तीय मॉडल के अनुसार औद्योगिक विकास के लिए 10 फीसदी रकम एकेवीएन, 40 फीसदी प्रदेश सरकार से ग्रांट और 50 फीसदी लोन लेना पड़ता है, लेकिन एकेवीएन को लोन नहीं मिल पाने के कारण कई क्षेत्रों में औद्योगिक विकास नहीं हो पा रहा है।
सरकार ने जिस उम्मीद और मंशा के साथ एकेवीएन की कल्पना की थी वह साकार होती नजर नहीं आ रही है। प्रदेश में केवल इंदौर एकेवीएन और भोपाल एकेवीएन ही उद्योगों के लिए जमीन ढूंढ पा रहे हैं। जबकि ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, उज्जैन, सागर के एकेवीएन सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि उद्योगों का भार केवल इंदौर और भोपाल क्षेत्र पर पड़ रहा है। इससे सरकार की मंशानुसार औद्योगिक प्रगति नहीं हो पा रही है। ऐसे में सरकार ने अन्य राज्यों की तर्ज पर कंपनी बनाकर औद्योगिक विकास की रूपरेखा तैयार करने का फैसला किया है।
बोर्ड की बैठक में तय होगा मर्जर का निर्णय
जानकारी के अनुसार अब सारे एकेवीएन अपने-अपने बोर्ड की बैठक करेंगे और सारे एकेवीएन को मर्ज कर एक कंपनी बनाने का प्रस्ताव नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को भेजेंगे। संभावना जताई जा रही है कि लॉ ट्रिब्यूनल से अनुमति मिलने में छह-सात महीने का वक्त लग सकता है। उसके बाद सरकार सातों एकेवीएन को मर्ज कर एक कंपनी का गठन करेगी। इस कंपनी के तहत हर जिले में इसके कार्यालय होंगे जहां स्थानीय उद्योगों के विकास पर नजर रखी जाएगी। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर प्रदेश सरकार ने यह कदम उठाने में इतनी देर क्यों कर दी। पिछले एक दशक में सरकार ने प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए जितने प्रयास किए वे अगर साकार होते तो आज प्रदेश औद्योगिक विकास में सिरमौर रहता। लेकिन जिन एकेवीएन पर औद्योगिक विकास की जिम्मेदारी थी वे अपना काम ठीक से नहीं कर सके। दरअसल मप्र में औद्योगिक विकास के लिए एकेवीएन वाली जो नीति अपनाई गई है वह देश में और कहीं नहीं है।
- भोपाल से अजयधीर