19-Jul-2017 09:10 AM
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17 जुलाई से शुरू होने जा रहा मप्र विधानसभा का मानसून हंगामेदार होगा। दरअसल, किसान आंदोलन के बाद सरकार को बैकफुट पर देख कांग्रेस आक्रामक हो गई है। मैदान के साथ ही उसने विधानसभा में भी सरकार को घेरने के लिए कमर कस ली है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मानसून सत्र में कुल 3257 सवाल लगे हैं जिसमें से किसान और नर्मदा को लेकर करीब 1500 सवाल हैं। इसमें सर्वाधिक डेढ़ हजार प्रश्न किसान आंदोलन और नमामि देवी नर्मदे अभियान से जुड़े हैं। दरअसल, विपक्ष ने रणनीति बनाकर किसान आंदोलन और उनसे जुड़े सवालों को उठाया है। किसान आंदोलन से जुड़े सभी पक्षों को लेकर प्रश्न उठाए गए हैं। कृषि, गृह, पुलिस मुख्यालय, किसान संगठनों की मांग, गोलीकांड, न्यायिक जांच आयोग की स्थिति, भेल के दशहरा मैदान पर हुए मुख्यमंत्री के उपवास पर खर्च, राज्यपाल की ओर से केंद्र को भेजी रिपोर्ट, नर्मदा सेवा यात्रा में आए अतिथियों के आने-जाने, पूरे अभियान के प्रचार-प्रसार पर हुए खर्च से लेकर प्रधानमंत्री की यात्रा में लगाए वाहन सहित अन्य खर्चों को लेकर सवाल पूछे गए हैं।
प्रदेश में भाजपा शासन के 13 साल से अधिक के अब तक के कार्यकाल को देखें तो ऐसा मौका पहली बार आया है जब विधानसभा सत्र में सरकार घिरती नजर आ रही है। इस सत्र में चुनावी रंग दिखेगा। इसलिए भाजपा और कांगेे्रस आर-पार के मूड में है। विधानसभा में सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता बाहर से सपोर्ट करेंगे, वहीं भाजपा संगठन भी अपनी सरकार के समर्थन के लिए तैयार है। यानी दोनों तरफ से तलवारों में धार दे दी गई है, पहले ही दिन से वार पर वार होंगे।
विधानसभा का मानसून सत्र इस बार किसानों को लेकर खासा हंगामाखेज रहने वाला है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए तगड़ी नाकेबंदी कर रही है। कांग्रेस की ओर से अब तक छह काम रोको प्रस्ताव की सूचना विधानसभा सचिवालय को दी गई है। ये सभी किसानों से जुड़े हैं। कांग्रेस इस विधानसभा में तत्काल चर्चा की मांग करेगी। 17 जुलाई से शुरू हो रहे विधानसभा के मानसून सत्र में पहले दिन राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए मतदान होना है। 18 जुलाई से विधानसभा की कार्यवाही विधिवत शुरू होगी। दस दिनी विधानसभा सत्र में सचिवालय को अब तक छह स्थगन की सूचनाएं मिल चुकी हैं। ये किसान आंदोलन और किसानों के ही अन्य दूसरे मुद्दों से जुड़ी हैं। विधानसभा सचिवालय के सूत्रों के मुताबिक नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह समेत कई विधायकों ने ये स्थगन लगाए हैं। इसके अलावा किसानों से जुड़े मुद्दों को लेकर कांग्रेस के दो दर्जन से अधिक विधायक भी ध्यानाकर्षण सूचना के माध्यम से सदन में किसानों से जुड़े मसलों पर सरकार से चर्चा कराने की मांग करेंगे। गौरतलब है कि विधानसभा को इस सत्र के लिए 3257 प्रश्न मिले हैं। इन प्रश्नों में भी अधिकांश प्रश्न किसानों की समस्याओं से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा अब तक विधानसभा सचिवालय को 37 अशासकीय संकल्पों की भी सूचना मिली है।
विपक्ष की मंशा को भांपते हुए सरकार भी इस मुद्दे पर पूरी तैयारी कर रही है। गतदिनों कैबिनेट बैठक के बाद विधानसभा सत्र की तैयारियों को लेकर मंत्रियों के साथ हुई बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रियों से साफ कहा कि प्रदेश सरकार ने किसानों के हित में ऐतिहासिक काम किए हैं। कांग्रेस के सवालों का ऐसा सटीक जबाव दें कि प्रश्न करने वाला ही घिरता नजर आए। सीएम ने कहा कि किसानों के मुद्दे पर हम हर तरह की चर्चा को तैयार हैं और विपक्ष को तथ्यों के साथ जवाब दिया जाएगा।
8 हजार करोड़ रुपए का रहेगा अनुपूरक बजट
मध्यप्रदेश सरकार 20 जुलाई को विधानसभा में चालू वित्तीय वर्ष का पहला अनुपूरक बजट प्रस्तुत करेगी। ये करीब आठ हजार करोड़ रुपए का रहेगा। इसमें प्याज सहित अन्य उपज की खरीदी के लिए छह सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का प्रावधान किया जाएगा। साथ ही अन्य विभागों को जरूरी काम करने के लिए राशि मुहैया कराई जाएगी।
हो सकती है ब्याज माफी योजना की घोषणा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा के मानसून सत्र में कृषक ऋण समाधान यानी ब्याज माफी योजना की घोषणा कर सकते हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय ने सहकारिता विभाग से योजना का मसौदा मांगा है। योजना के तहत करीब पांच लाख किसानों को 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की ब्याज माफी मिल सकती है। योजना का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि इन किसानों को जीरो प्रतिशत पर कर्ज के साथ ही बीज और खाद लेने पर 10 प्रतिशत की छूट भी मिलने लगेगी। मानसून सत्र में सरकार को घेरने विपक्ष का मुख्य हथियार किसान आंदोलन और उनसे जुड़े मुद्दे रहेंगे। मंदसौर गोलीकांड के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई थी लेकिन सदन में फ्रंटफुट पर खेलने की रणनीति बनाई जा रही है। कांग्रेस के आरोपों के जवाब में सरकार तमाम तर्कों के साथ किसानों के लिए योजनाओं का पिटारा भी खोल सकती है। कृषण ऋण समाधान योजना इसका ही एक हिस्सा होगा। मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री की घोषणा के मुताबिक योजना का मसौदा लगभग तैयार हो चुका है। इसे अंतिम रूप देने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। सहकारिता विभाग से मसौदा मांगा गया है। विभाग ने कर्जदार किसानों की जिलेवार संख्या निकालकर वसूली योग्य कर्ज और उस पर लगे ब्याज का ब्योरा तैयार कर लिया है। बताया जा रहा है कि 1 हजार करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा के ब्याज की छूट किसानों को मिल सकती है। इससे लगभग पांच लाख किसानों को सीधा फायदा होगा।
कांग्रेस सरकार को हर मौके पर घेरेगी। इस कारण बेतुकी बयानबाजी के साथ हंगामे होंगे और सदन स्थगित हो जाया करेगा। इसी हंगामे के बीच सरकारी काम हो जाएंगे और सत्र समाप्त हो जाएगा। ना तो कांग्रेस पिछले 13 सालों में ठीक प्रकार से शिवराज सरकार को घेर पाई है और ना ही सरकार ने उठने वाले सवालों का रुककर जवाब दिया है। कुछ प्रशिक्षण प्राप्त मंत्री तो केवल कांग्रेसी विधायकों के बयानों में आपत्ति तलाशकर हंगामा ही करते हैं। तारीख गवाह है, मप्र विधानसभा के कई सत्र समय से पहले ही भंग हुए हैं। आरोप तो यह भी लगे हैं कि कुछ मंत्रियों ने पूरी प्रक्रिया को कंट्रोल किया और उनके इशारे पर ही सदन स्थगित कर दिया गया।
फिर गौर मचाएंगे शोर
हर बार की तरह इस बार भी सरकार अपनों के निशाने पर रहेगी। खासकर पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा विधायक बाबूलाल गौर मानसून सत्र में सरकार से भोपाल और इंदौर में मेट्रो ट्रेन परियोजना की प्रोग्रेस को लेकर घेरेंगे। गौर मेट्रो के मुद्दे पर सरकार को तीसरी बार घेरने की कोशिश कर रहे हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी गौर ने सरकार से इसी सवाल का जवाब मांगा था। तब सरकार के जवाब पर असंतोष जताते हुए गौर ने कहा था कि जिस रफ्तार से अभी काम हो रहा है, उससे तो भोपाल में मेट्रो का आना मुश्किल ही लग रह है। गौर कहते हैं कि सवाल करना मेरा अधिकार है। मैं क्यों नहीं पूछूं। मैंने पूरा आंकलन करवाकर ही पांच साल में मेट्रो ट्रेन शुरू करने की घोषणा की थी। विभागीय मंत्री रहते हुए मैंने मेट्रोमैन श्रीधरन से मुलाकात की। डीपीआर बनाने केंद्र से तीन करोड़ रुपए लिए। श्रीधरन दो बार भोपाल आए। उच्च स्तरीय बैठकें हुईं। वे काम शुरू करने को तैयार थे, लेकिन अपने यहां के वरिष्ठ अफसरों ने पेंच फंसा दिया। तभी से काम अटका हुआ है।
1400 आश्वासन अटके, मंत्रियों तक की सुनवाई नहीं
विधानसभा सत्र के दौरान मंत्रियों द्वारा जनसमस्याओं को हल करने को लेकर दिए गए आश्वासनों पर अफसर पर्याप्त रुचि नहीं लेते। इसके चलते मंत्रियों के 1361 आश्वासन अधूरे पड़े है। मंत्रियों के आश्वासनों को पूरा करने में जो विभाग सबसे पीछे है उनमें राजस्व, स्वास्थ्य, कृषि और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग शामिल है। सत्र के दौरान अफसर अक्सर ऐसे मामले जिसमें विभाग की कमिया उजागर होती है उनके जवाब समय पर नहीं देते,जानकारी एकत्र की जा रही है कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। नौकरशाहों की लेटलतीफी का आलम यह है कि अभी भी प्रदेश के 51 जिलों में 53 विभागों से जुड़े 1361 आश्वासन पूरे नहीं हो पाए है। शून्यकाल में उठाए गए 45 मामलों पर राज्य शासन ने अब तक कोई कार्यवाही नहीं की है। लोक लेखा समिति द्वारा प्रदेश की योजनाओं को लेकर उठाई गई 165 आपत्तियों का निपटारा अब तक विभागों ने नहीं किया है। इस बार सत्रह जुलाई से शुरु होंने जा रहे विधानसभा सत्र के पहले विभिन्न विभागों ने 866 सवालों के जवाब नहीं भेजे है। सर्वाधिक पेंडेंसी राजस्व विभाग की है। उनके 780 मामले लंबित है।
- इंद्रकुमार