गैंगस्टर का एनकाउंटर राहत भी, आफत भी
22-Jul-2017 08:02 AM 1234881
पौने दो साल से राजस्थान सरकार के लिए संकट का सबब बना कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल आखिरकार एनकाउंटर में मारा गया। हत्या, अपहरण और जमीनों पर अवैध कब्जा करने सरीखे दर्जनों मामलों में वांछित आनंदपाल तीन सितंबर, 2015 को कोर्ट में पेशी के बाद अपने दो साथियों के साथ फरार हो गया था। पिछले 22 महीने में प्रदेश की पुलिस ने उसे पकडऩे के खूब प्रयास किए। उस पर पांच लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया। इस दौरान दो बार पुलिस का उससे आमना-सामना भी हुआ, लेकिन वह शातिराना ढंग से गच्चा देकर भाग निकला। लेकिन इस बार पुलिस ने जो चक्रव्यूह रचा, उसे आनंदपाल भेद नहीं पाया। सरकार के लिए आनंदपाल के एनकाउंटर सियासी तौर पर भी सुकून भरा है। विपक्ष आनंदपाल के फरार होने के बाद से ही सार्वजनिक निर्माण व परिवहन मंत्री यूनुस खान पर इसमें लिप्त होने के आरोप लगाता रहा है। खान न सिर्फ कैबिनेट के सबसे ताकतवर मंत्री हैं, बल्कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के भी करीबी हैं। ऐसे में उन पर आरोप लगने पर सरकार का असहज होना स्वाभाविक था। इस लिहाज से देखें तो आनंदपाल का अंत सरकार और यूनुस खान, दोनों के लिए राहत भरा है। खान कहते हैं, एनकाउंटर से साबित हो गया है कि विपक्ष ने मेरे ऊपर जो आरोप लगाए वे बेबुनियाद थे। यदि आनंदपाल को मेरा संरक्षण होता तो उसे पकडऩे के लिए सरकार 11 आईपीएस और 100 पुलिसकर्मी क्यों लगाती और उसका एनकाउंटर क्यों होता?Ó हालांकि यूनुस खान के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर रहने वाले निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल अभी भी हमलावर हैं। वे कहते हैं, सरकार ने अपनी खाल बचाने के लिए एनकाउंटर किया है। वह जिंदा पकड़ा जाता तो सारे राज उगल देता। यह जगजाहिर है कि यूनुस खान जेल में आनंदपाल से मिले थे और उनकी मदद से ही वह फरार हुआ। यदि आनंदपाल के फरार होने की सीबीआई जांच होती तो यूनुस खान से उसके रिश्तों का पता चल जाता। इसीलिए सरकार ने इसकी सीबीआई जांच नहीं करवाई।Ó वे आगे कहते हैं, एनकाउंटर के बाद यह साबित हो गया है कि आनंदपाल राजस्थान में ही छिपा हुआ था। किसी राजनैतिक संरक्षण के बिना इतने दिन तक छिपे रहना संभव नहीं है।Ó आनंदपाल के एनकाउंटर से सरकार के लिए राहतों की इस फेहरिस्त के बीच एक आफत भी है। राजपूत संगठनों ने एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। राष्ट्रीय करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी ने एनकाउंटर को साजिश बताते हुए इसकी सीबीआई जांच की मांग की है। वे कहते हैं, आनंदपाल को लेकर सरकार और पुलिस के रूख को देखकर पहले से ही लग रहा था कि एनकाउंटर होगा। सरकार ने समाज विशेष को खुश करने के लिए आनंदपाल को बलि का बकरा बनाया है। यदि आनंदपाल जिंदा पकड़ा जाता तो सरकार के कई चेहरे बेनकाब होते। यह एनकाउंटर नहीं, हत्या है।Ó वे अब इस एनकाउंटर की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। सुखदेव सिंह कहते हैं, हमने इस मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया है। यदि सरकार ने इसे नहीं मांगा तो पूरे राजस्थान में उग्र आंदोलन करेंगे।Ó राजपूतों का यह रुख सरकार के सामने संकट खड़ा कर सकता है, क्योंकि इसका अंजाम जाट-राजपूत टकराव के रूप में सामने आ सकता है। यदि ऐसा होता है तो यह न सिर्फ राजस्थान के सामाजिक सौहाद्र्र पर बुरा असर डालेगा, बल्कि भाजपा को सियासी तौर पर इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। लगता है कि सरकार को भी इसका अंदाजा है। इसलिए पार्टी के कई नेता अब क्षेत्र के राजपूत और जाट समुदाय के प्रभावशाली लोगों से संपर्क साध रहे हैं। सरकार को असहज सवालों से मुक्ति आनंदपाल की मुठभेड़ में मौत राज्य की वसुंधरा सरकार के लिए बड़ी राहत है। सबसे पहले कानून-व्यवस्था के लिहाज से बात करें तो सरकार जब भी इस क्षेत्र की उपलब्धियों का बखान करती, आनंदपाल का नाम उन पर कालिख पोत देता। हालत यह हो गई कि गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया आनंदपाल का नाम सुनते ही झल्ला जाते। एनकाउंटर के बाद गुलाब चंद कटारिया की खीज खुशी में तब्दील हो गई है। अब वे न सिर्फ अपराधों में आई कमी के आंकड़ों का गुणगान कर पाएंगे, बल्कि इन्हें और बेहतर करने की दिशा में भी सोच पाएंगे। जानकारों के मुताबिक आनंदपाल का खात्मा करने में पुलिस को 22 महीने का समय तो लग गया, लेकिन उसे ढूंढऩे की प्रक्रिया में पुलिस ने उसके नेटवर्क को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। आनंदपाल तक पहुंचने से पहले पुलिस उसे फरार करवाने में मदद करने, शरण देने, गाडिय़ां उपलब्ध करवाने, पुलिसकर्मियों पर फायरिंग व हत्या करने, राजकार्य में बाधा डालने और उसके इशारे पर संगीन वारदातों को अंजाम देने के आरोप में 108 गिरफ्तारियां कर चुकी थी। इनमें से ज्यादातर अभी भी जेल में ही हैं। यानी गैंग का सरगना ही नहीं, उसके गुर्गे भी तितर-बितर हो चुके हैं। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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