बीपीएल और मनरेगा से ज्यादा कमाएंगी गायें !
19-Jul-2017 08:57 AM 1234903
हजारों गायों के हिंगोनिया गौशाला में मरने के बाद किरकिरी झेल रहे राजस्थान में अब गायों को वीआईपी ट्रीटमेंट मिलेगा। प्रदेश में गायें अब बीपीएल और मनरेगा मजदूरों से ज्यादा कमाएंगी और वो भी बिना पसीना बहाए और बिना जिम्मेदारी उठाए। वसुंधरा सरकार का गाय मंत्रालय अब राज्य में प्रति गाय के हिसाब से रोजाना 70 रुपए और बछड़े को 35 रुपए खाने के लिए देगी। इस पैसे के इंतजाम के लिए कई विभागों के पैसे के अलावा 33 तरह के लेन-देन पर 10 फीसदी का काऊ टैक्स लगा दिया गया है। आपको बता दें कि राजस्थान सरकार राज्य के प्रत्येक व्यक्ति के सभी तरह के वेलफेयर पर 26 रुपए 65 पैसे ही खर्च करती है। वहीं राजस्थान में शहर में 28 रुपए और गांव में 25 रुपए 16 पैसे तक कमाने वाला बीपीएल होता है। इन सबके बीच गायों के लिए सरकार ने इतनी राशि दे दी है कि हर गरीब-बेरोजगार को आज गायों की आवभगत देखकर ईष्र्या हो जाएगी। जयपुर के हिंगोनिया गौशाला की दिल दहला देने वाली तस्वीरें कौन भूल सकता है। मरी हुई और मरती हुई गायों की तस्वीरों ने वसुंधरा सरकार के देश में गाय मंत्री और गाय मंत्रालय करने के दावों की पोल खोल कर रख दी थी। लेकिन अब सरकार ने गायों को वीआईपी ट्रीटमेंट देने का फैसला किया है। जनवरी में पहली बार गोपालन विभाग ने ये राशि प्रति गाय 32 रुपए प्रति बछड़े 16 रुपए के हिसाब से तीन महीने के लिए दी थी। उसके बाद आपदा प्रबंधन विभाग ने राज्य के तेरह जिलों और जयपुर जैसे बड़े शहरों में नगर निगम के अकाल राहत और आपदा प्रबंधन मंत्रालय ने सभी गो शालाओं में प्रति गाय के हिसाब से रोजाना 70 रुपए और बछड़े को 35 रुपए देने का फैसला किया है। सरकार ने निर्देश दिए हैं कि ये राशि इनके खान-पान पर खर्च होंगे। इसके लिए गौशाला में सीसीटीवी लगाना होगा और चारा खिलाने की सीड़ी सरकार को सौंपनी होगी। सरकार ने लक्ष्य रखा है कि सभी लावारिश गायों को गोशाला में ले जाकर सेवा की जाएगी। राजस्थान के सबसे बड़े हिंगोनिया गौशाला में सरकार अक्षय पात्र संस्था को प्रति गाय 70 रुपए और प्रति बछड़े 35 रुपए गायों के रख रखाव के लिए दे रही है। जयपुर नगर निगम ये पैसे हिंगोनिया गौशाला को दे रहा है। जब तक सरकार के पास गो टैक्स से 500 करोड़ का गो फंड इक_ा नहीं हो जाता है तब तक राज्य सरकार अकाल की स्थिति मानते हुए आपदा प्रबंधन के नियमों के तहत ये पैसे दे रही है। उधर विपक्ष का कहना है कि सरकार आम लोगों के वेलफेयर में तो कटौती कर रही है लेकिन हिंगोनिया में मारी गईं गायों का पाप धोने के लिए गायों को 70 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दे रही है और वो भी सभी गौशालाओं को नहीं देकर केवल राजनीति कर रही है। फिलहाल राज्य में 2319 गोशालाओं में 671452 गाये हैं जिनको अनुदान मिलेगा। सरकार के इस घोषणा के बाद गोशालाओं में गायों की संख्या लगातार बढ़ रही है। मसलन हिंगोनिया गौशाला को हीं लें। पहले वहां करीब 8500 गायें थी लेकिन जब से 70 रुपए और 35 रुपए गाय-बछड़े के लिए मिलना शुरु हुआ है वहां गायों की संख्या अप्रैल में करीब 13 हजार से ज्यादा हो गई है। सवाल उठता है कि एक गाय 70 रुपए और बछड़ा 35 रुपया में क्या खाएगा। मसलन एक किलो पशु आहार 15 रुपए प्रति किलो के हिसाब से आएगा और हरा चारा खुदरा में भी खरीदें तो 4-5 रुपए प्रति किलो मिलेगा जबकि थोक में तो ये और भी सस्ता हो सकता है। लेकिन हर कोई गायों की तहर खुश किस्मत नहीं है। मसलन आम जनता की हालात ही देख लीजिए। बजट पर अध्ययन करने वाली संस्था बार्क के अनुसार राजस्थान सरकार हेल्थ, फैमिली वेलफेयर, शिक्षा, खेल, कला एवं संस्कृति, शहरी आवास, जल और कचरा निस्तारण, वेलफेयर फॉर एससी एसटी, लेबर, सोशल वेलफेयर और ग्रामीण विकास पर सलाना प्रति व्यक्ति 9727.61 पैसे खर्च करती है। यानी सरकार प्रति व्यक्ति के सभी तरह के वेलफेयर पर 26 रुपए 65 पैसे खर्च करती है।  यानी राज्य में मनुष्य से अच्छी स्थिति में तो गाएं हैं। सरकार ने खोला भ्रष्टाचार का द्वार राजस्थान में गाय मंत्रालय भले हीं बन गया है लेकिन अलग-अलग विभाग जैसे नगर निगम, पशुपालन विभाग और गोपालन विभाग गायों की देखभाल कर रहा है। राज्य में स्टाम्प पेपर की खरीद से लेकर रजिस्ट्री समेत 33 तरह के फायनेंशियल ट्राजेक्शन पर काउ टैक्स 1 अप्रैल 2017 से लग रहा है। साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी से भी 30 रुपए कि कटौती हर माह गो सेवा के लिए की जा रही है। जिससे गायों के लिए चारा खरीदा जाएगा। राजस्थान सरकार का मानना है कि एक बार 500 करोड़ का फंड बन जाए तो गायों के लिए सुविधा के और इंतजाम किए जा सकेंगे। लेकिन हिंगोनिया गोशाला के अनुभव बताते हैं कि गायें कभी फंड और पैसे के अभाव में नहीं मरी। हिंगोनिया में गायें इसलिए मरीं क्योंकि सरकारी पैसे की लूट मची थी। गरीब किसान भी गाय पाल लेता है बिना 70 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से सरकारी अनुदान लिए हुए। उसकी गाय कभी मरती भी नहीं है। ऐसे में गाय के नाम पर पैसे बांटने की मुहिम कहीं भ्रष्टाचार के लिए एक और स्रोत न खोल दे। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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