22-Jul-2017 07:51 AM
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चाल, चेहरा और चरित्र की राजनीति करने वाली भाजपा कुछ साल पहले तक कांग्रेस को यह कह-कह कर कोसती थी कि यह पार्टी परिवारवाद और वंशवाद के चंगूल में फंस गई है। पार्टी में केवल नेताओं और घरानों के वंशजों और परिवारजनों को पद मिलता है। लेकिन मप्र भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) की प्रदेश कार्यकारिणी की जो तस्वीर पेश की गई है उससे भाजपा आज अपने ही आरोपों से घिर गई है। कार्यकारिणी का स्वरूप देखकर ऐसा लगता है जैसे प्रदेश के केंद्रीय मंत्री से लेकर भाजपा के केंद्रीय पदाधिकारियों के बेटों ने अपने पिता की विरासत संभालने के लिए कमर कस ली है। आलम यह है कि प्रदेश के करीब आधा दर्जन मंत्रियों के बेटों सहित कई नेताओं के लाल राजनीति के अखाड़े में जोर-आजमाइश के लिए दंड पेलने को तैयार है।
भाजयुमो द्वारा की गई इस घोषणा में कई नेता पुत्रों के राजतिलक की राजनीतिक बिसात बिछा दी गयी है। जिन नेता पुत्रो को जगह दी गई है वे है केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य सभा सांसद प्रभात झा के बेटे तुष्मुल झा, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय, प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह और मध्य प्रदेश के जल संसाधन मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव। हालांकि अभिषेक ने पहले ही युवा मोर्चा की टीम में रहने में अनिच्छा जाहिर की थी, फिर भी उन्हें कार्यसमिति में रखा गया है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समझाइश के बाद भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने टिकटों के वितरण में जिस तरह परिवारवाद और वंशवाद को प्राथमिकता दी है उससे मप्र के नेताओं को मानो खुली छूट मिल गयी है। और यही कारण है की मध्य प्रदेश में भी अब नेता पुत्रों के लिए बिसात बिछा दी गई है।
भाजपा भले ही परिवारवाद की खिलाफत की बात करें, लेकिन भाजयुमो के पदाधिकारियों की घोषणा में इससे उलट दिखता है।
विवादित चेहरों ने बढ़ाई संगठन की परेशानी
प्रदेश भाजपा संगठन इन दिनों मोर्चाओं में की गई विवादित नेताओं नियुक्तियों को लेकर परेशान है। पिछले हफ्ते भाजयुमो द्वारा जारी की गई प्रदेश पदाधिकारी एवं कार्यसमिति में पुराने चेहरों को दरकिनार कर नए चेहरों को बड़ी संख्या में शामिल करने का मामला प्रदेश नेतृत्व के संज्ञान में आया है। इससे पहले अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, किसान एवं महिला मोर्चा भी पदाधिकारियों की नियुक्ति को लेकर विवादों में आ चुका है। अन्य मोर्चों की अपेक्षा भाजयुमो में पार्टी गाइडलाइन को दरकिनार कर नए युवाओं को शामिल करने के ज्यादा आरोप लगे हैं। नाराज युवा नेता अब पार्टी अध्यक्ष नंदकुमार चौहान, संगठन महामंत्री सुहास भगत से लेकर मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष पूनम महाजन तक गुपचुप तरीके से अपनी बात पहुंचा रहे हैं। मप्र भाजपा में सबसे पहले महिला मोर्चे की कार्यसमिति गठित की गई थी, महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष लता ऐलकर ने मोर्चा की पिछली वर्किंग कमेटी के लगभग सभी चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाकर नए चेहरों को शामिल किया गया। मोर्चा में उपेक्षा से नाराज महिला नेत्रियों ने प्रदेश संगठन के सामने अपनी बात रखी, लेकिन किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। इसी तरह अल्पसंख्यक मोर्चा में भी विवादित नेताओं को शामिल करने का मामला उठा था। खास बात यह थी कि मोर्चा अध्यक्ष सनवर पटेल ने विवादित एवं अपराधिक छवि के नेताओं को बाहर करने की बात कही थी। इसी तरह पिछड़ा वर्ग मोर्चा के अध्यक्ष भगत सिंह कुशवाह की नियुक्ति पर भी सवाल उठे थे, लेकिन कुशवाह को संगठन महामंत्री सुहास भगत की पसंद का बताया जाता है। पिछड़ा वर्ग मोर्चा में मुख्यमंत्री और भाजपा के खिलाफ अभियान चलाने वाले नेताओं को जगह दी गई। किसान मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष रणवीर रावत ने अपनी टीम में पिछली कार्यकारिणी के किसी पदाधिकारी पर भरोसा नहीं किया। यही स्थिति भाजयुमो की है। चूकि मोर्चा में युवा नेताओं को एडजस्ट किया गया है, इसलिए प्रदेश पदाधिकारियों की संख्या 17 से बढ़ाकर 42 तक पहुंच गई। प्रदेश नेतृत्व के दखल के बाद मोर्चा अध्यक्ष अभिलाष पाण्डेय को आयामों में नियुक्ति करनी पड़ी।
- अजयधीर