22-Jul-2017 07:35 AM
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गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में राजनीतिक उठापटक तेज हो गई है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश के कद्दावर नेता शंकरसिंह वाघेला की घर वापसी में जुट गए हैं। इससे प्रदेश की राजनीति में भूचाल-सा आ गया है। ज्ञातव्य है कि वर्तमान समय में गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला कभी भाजपा के सबसे दमदार नेता थे लेकिन नरेंद्र मोदी से पटरी नहीं बैठ पाने के कारण उन्होंने भाजपा छोड़ नई पार्टी बना ली फिर बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन अब उनकी घर वापसी की संभावना बढ़ गई है।
दरअसल, गुजरात चुनाव की दस्तक के साथ ही कांग्रेस में मुख्यमंत्री की दावेदारी तेज हो गई है। वाघेला को उम्मीद थी की पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री का दावेदार बनाएगी। इसके लिए विधायकों के एक बड़े वर्ग ने आलाकमान से मांग भी की थी, लेकिन इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका। इससे वाघेला नाराज चल रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी के कई दूसरे वरिष्ठ नेताओं को अपने ट्विटर अकाउंट से अनफॉलो कर दिया। मौके की नजाकत को देखते हुए नरेंद्र मोदी ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को वाघेला से मुलाकात करने भेजकर उनकी घर वापसी की अटकलों का पुख्ता सबूत दे दिया है। वाघेला यानी की बापू तो फिलहाल अज्ञातवास में चले गए हैं लेकिन गुजरात की राजनीति में बापू पर बबाल मचा हुआ है।
वैसे राजनीतिक घटनाक्रमों को देखें तो नरेंद्र मोदी ने 2014 में ही उस समय वाघेला की घर वापसी की बुनियाद रख दी थी, जब वे गुजरात छोड़कर केंद्रीय राजनीति में सक्रिय होने दिल्ली के लिए रवाना हुए। गुजरात विधानसभा में आयोजित विदाई समारोह में मोदी ने वाघेला को विशेष निमंत्रण पर बुलाया था और बाघेला ने मोदी और उनकी राजनीति पर खूब कशीदे गढ़े थे। उल्लेखनीय है कि वाघेला ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जनसंघ से की जो बाद में जनता पार्टी बनी। बाद में जनता पार्टी टूट गई और उससे कई समूह निकले। वाघेला भाजपा के वरिष्ठ नेता बन गए। साल 1995 में नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर पार्टी को राज्य की सत्ता में लाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया, हालांकि दावा वाघेला को लेकर किया जा रहा था। लेकिन उनको मोदी का साथ नहीं मिला। इसके बाद वह भाजपा के खिलाफ हो गए और एक नई पार्टी राष्ट्रीय जनता पार्टी की शुरुआत की। 1996 में वह गुजरात के सीएम बने। 1997 में उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। वर्तमान में वह गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। हालांकि जुलाई में वाघेला 77 साल के हो जाएंगे। भाजपा में 75 साल से ऊपर का कोई भी नेता चुनाव नहीं लड़ सकता, ना ही पार्टी के किसी प्रभावशाली पद पर ही रह सकता है। ऐसे में देखना होगा कि पीएम मोदी से भी वरिष्ठ वाघेला की भाजपा में वापसी होती है या नहीं। जानकारों की माने तो पार्टी उनके लिए उपयुक्त पद को लेकर विचार कर रही है। सूत्रों की माने तो वाघेला को केंद्रीय पीएसू या बोर्ड में अहम का अध्यक्ष पद दिया जा सकता है, और उनके बेटे को गुजरात सरकार की कैबिनेट में जगह मिल सकती है। अगर उनकी वापसी होती है तो यह विपक्षी कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान होगा।
कांग्रेस का आरोप है की भाजपा लोगों को गुमराह करने के लिए मीडिया में जानबूझकर इस तरह की खबरे फैला रही है। वही भाजपा की माने तो सफाई दे रही कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई जगजाहिर है। जिससे निपटने और छुपाने में असमर्थ कांग्रेस भाजपा पर इस तरह के आरोप मढ रही है। बहरहाल ये कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई हो या भाजपा का राजनितिक पासा कांग्रेस को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
मोदी की पहल पर शाह ने बिछाई चौसर
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी जिस दिन गुजरात विधान भवन में वाघेला कक्ष में मिलने गए थे और काफी देर बातें की तभी यह लग गया था कि वाघेला घर वापसी कर सकते हैं। दरअसल, मोदी की पहल पर शाह वाघेला की वापसी की चौसर बिछा रहे हैं। लेकिन कहा यह भी जा रहा है कि वाघेला उस पार्टी में क्यों वापस आना चाहेंगे, जिसमें उनको तव्वजों नहीं दी गई। वाघेला कहां जातें है और क्या करते हैं, यह तो जल्दी ही पता चल जायेगा पर इतना तो निश्चित है कि उनके कांग्रेस पार्टी से निकलने पर पार्टी का गुजरात में बंटाधार हो जाएगा। अगला चुनाव कांग्रेस के लिए एक ऐसा मौका है जब 22 वर्षों के बाद पार्टी के फिर से सत्ता में आने की संभावना हो सकती है। प्रदेश भाजपा में मोदी के बाद नेतृत्व का अभाव है। पाटीदार समाज (जिनकी जनसख्या 15 प्रतिशत है) भाजपा से सख्त नाराज है और कांग्रेस से जुडऩा चाहता है। किसान भाजपा के खिलाफ आंदोलनरत हैं और प्रदेश के 7 प्रतिशत दलित हिंसा और दमन के चलते भाजपा के खिलाफ वोट कर सकते हैं। भाजपा इस बात को लेकर खुश है कि वाघेला मुश्किल में हैं और उनके पार्टी से हटने की स्थिति में कांग्रेस से निबटना आसान हो जाएगा। अगर कहानी का अंत यह है कि बापू कांग्रेस से अलग हो रहे हैं तो यह भी तय है कि दो दशकों के बाद भी कांग्रेस का गुजरात में सत्ता से वनवास खत्म नहीं होगा।
- रजनीकांत पारे