02-May-2017 07:20 AM
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महाराष्ट्र में हर साल चंदे का कारोबार अरबों रुपए का होता है। कोई धर्म, कोई राजनीति, कोई सामाजिक कार्य की आड़ में चंदे की उगाही करता है। इसको लेकर कई संगठन आपत्ति दर्ज करा चुके हैं। देर से ही सही लेकिन दुरुस्त तरीके से महाराष्ट्र की देवेंद्र फडऩवीस सरकार चंदे के धंधे पर बैन लगाने जा रही है। सरकार कानून में संशोधन करके चंदा मांगने वालों पर लगाम कसने जा रही है। अब चंदा मांगने से पहले चंदा मांगने की इजाजत सरकार से लेनी होगी। इतना ही नहीं, चंदे के रूप में जमा की गई रकम के हिसाब और खर्च का ब्योरा भी सरकार को बताना होगा।
गत दिनों राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट-1950 की धारा 41 (ग) में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। इस प्रस्ताव के अनुसार अब निजी, गैर सरकारी संस्थाओं तथा व्यक्तियों को धार्मिक और चैरिटेबल कार्यों के लिए चंदा जमा करने और चंदे की रकम के खर्च की पूर्वानुमति सरकार से लेनी होगी। इस प्रस्ताव का मकसद मनमाने ढंग से चंदा जमा करने और चंदे की रकम का दुरुपयोग रोकना है। मंत्रिमंडल के समक्ष पेश प्रस्ताव में कहा गया है कि धार्मिक और धर्मादा कार्यों के लिए चंदा जमा करने की इजाजत मांगने के लिए धर्मादा आयुक्त कार्यालय में ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। धर्मादा आयुक्त कार्यालय के सक्षम अधिकारी के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह आवेदन प्राप्त होने के सात दिन के भीतर या तो आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करे। अगर 7 दिन के भीतर किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाता, तो यह मान लिया जाएगा कि आवेदन स्वीकार कर लिया गया है।
मंत्रिमंडल से मंजूर प्रस्ताव में महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट एक्ट-1950 की धारा 41 (च) और 66 (ग) में भी महत्वपूर्ण संशोधन को मान्यता दी गई है। इसके मुताबिक, अगर किसी संस्था या व्यक्ति द्वारा जमा किया गया चंदा या अन्य संपत्ति अवैध पाई गई, तो उसे सरकारी खजाने में जमा कर लिया जाएगा। सरकार के सूत्रों का कहना है कि कानून में संशोधन का प्रस्ताव मंत्रिमंडल से मंजूर होने के बाद सरकार जल्द ही विधानसभा और विधान परिषद में संशोधन विधेयक पेश करेगी। दोनों सदनों से पारित होने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की अनुमति मिलते ही यह कानून लागू हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि देश में कुकुरमुत्तों की तरह उग चुके गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), समितियों और स्वैच्छिक संगठनों ने चंदे को अपना धंधा बना लिया है। आलम यह है कि इनके कोष और उनके उपयोग की निगरानी के लिए कोई नियामक व्यवस्था नहीं है। इसको लेकर विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को आड़े हाथों लिया था। कोर्ट ने कहा था कि गैर-सरकारी संगठन हों या सरकारी परियोजनाएं, जो भी हो सार्वजनिक धन का निवेश होता है, उनकी निगरानी तो होनी ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो देश की जनता द्वारा करों के रूप में सरकार को अदा की गई धनराशि का दुरुपयोग ही होगा।
ज्ञातव्य है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद लगभग 20 हजार के करीब भारतीय और विदेशी एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंस रद्द किए गए। इस संख्या से स्पष्टï है कि ये सभी संगठन कोई मानवता की भलाई नहीं कर रहे थे, बल्कि देशी-विदेशी चंदे से मलाई खा रहे थे। अब फडऩवीस सरकार ने चंदा लेकर मजा
करने वालों पर नकेल कसने की पूरी तैयारी कर ली है।
आय और खर्च का ब्यौरा भी नहीं देते एनजीओ
90 फीसदी एनजीओ सरकार को कोई टैक्स नहीं देते और चंदे का विवरण देने में भी उन्हें तकलीफ होती है। हजारों लोग एनजीओ चलाने की आड़ में चंदे के पैसे से ऐश की जिन्दगी जी रहे हैं। केन्द्र सरकार ने इनकी मनमानियों पर अंकुश लगाने के लिए इनका पंजीकरण रद्द किया तो ये सरकार के विरोध में उतर आए। एनजीओ के संदर्भ में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ चुके हैं। माहाराष्ट्र में एनजीओ, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों की मनमानी को देखते हुए राज्य सरकार ने कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया है।
-बिन्दु माथुर