22-Jul-2017 07:33 AM
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गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लेकर देश में असमंजश का महौल है। 70 साल पहले 15 अगस्त, 1947 को जिस तरह आधी रात को देश की आजादी की घोषणा की गई थी, कुछ उसी तर्ज पर 30 जून और 1 जुलाई की दरमियानी आधी रात में देश में जीएसटी लागू होगा। कोई इसे आर्थिक आजादी बता रहा है तो कोई गुलामी। ऐसे में जीसटी की दरों और इसकी तैयारियों को लेकर व्यापारी और उद्यमी परेशान हैं वहीं आम आदमी को लग रहा है कि जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुएं और सेवाएं काफी महंगी हो जाएंगी। लागू होने के बाद क्या महंगा होगा या क्या सस्ता हो जाएगा, चिंता इस बात की नहीं है। जरूरी यह है कि इसे लागू करने संबंधी परेशानियों से निजात पाई जाए।
आम आदमी के मन में जीएसटी को लेकर व्याप्त भ्रांति 30 जून को उस समय और बढ़ गई जब इसकी विसंगतियों को लेकर व्यापारियों ने भारत बंद रखा। उधर, तमाम तरह की आशंकाओं के बावजूद अर्थशास्त्रियों द्वारा इसे स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़े कर सुधार के रूप में देखा जा रहा है। मैं भी मानता हूं कि करों की समरूपता के लिहाज से जीएसटी का उद्देश्य बहुत ही अच्छा है लेकिन इसे पूरी तैयारी के साथ लागू किया जाना चाहिए। ऐसा लग रहा है कि इसके लिए न तो उद्यमी और न ही सरकार पूरी तरह से तैयार है। जीएसटी के संदर्भ में दो तरह की समस्याएं हैं, एक तो अलग-अलग वस्तुओं और सेवाओं पर कर दरों को लेकर और दूसरे इसे लागू करने की तैयारियों को लेकर। पहली समस्या का तोड़ तो यही है कि व्यापारियों को देर-सबेर समझा-बुझाकर काम चला लिया जाए। लेकिन, दूसरी समस्या अधिक विकट है, इसके लिए कमजोरी नहीं छोड़ी जा सकती। सरकार यह कहकर नहीं बच सकती कि छोटे व्यापारी जो 20 लाख रुपए के टर्नओवर की सीमा में ही कारोबार करते हैं, उन्हें कोई परेशानी नहीं है और इससे अधिक टर्नओवर वाले व्यापारी और कंपनियां, इसकी तैयारी कर ही लेंगी।
सवाल यह उठता है कि क्या वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार करने वाली कंपनियों और व्यापारियों ने इंटरनेट से संचालित होने वाली नई कर प्रणाली के लिए खुद को तैयार कर लिया है? क्या इंटरनेट की उन्हें सुविधा हर समय उपलब्ध रहेगी? क्या व्यापारियों और उद्यमियों ने आवश्यक सॉफ्टवेयर को लेकर तैयारी कर ली है? इससे भी बड़ी बात क्या सरकार भी पूरी तरह से तैयार है। केवल एप लांच करने भर से ही तो काम नहीं चलने वाला। समझ में यह भी नहीं आ रहा है कि इसे लागू करने की हड़बड़ी आखिर क्यों दिखाई जा रही है। लागू करना है भी तो इसे पूरी तैयारी के साथ लागू करना चाहिए। मैं एक बार फिर कहूंगा कि नई कर व्यवस्था वास्तव में कर सुधार ही है लेकिन किसी भी व्यवस्था को जब लागू किया जाता है तो तैयारियों के लिए पूरा वक्त लिया जाता है। एक ही झटके में उसे लागू करना काफी कठिन हो जाता है। देश के व्यापारी और उद्यमी पुरानी व्यवस्था के आदी हैं, उन्हें अचानक कर प्रणाली बदलने से परेशानी अवश्य ही आएगी। उन्हें पर्याप्त समय देना चाहिए।
अचानक नई कर प्रणाली शुरू करने से उनका व्यापार निश्चित तौर पर बाधित होगा। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जीएसटी वर्तमान में दुनिया के 140 से भी ज्यादा देशों में लागू है तो सवाल उठता है कि हमारे यहां लागू करने में क्या परेशानी है? निस्संदेह हमारे यहां भी इसे जरूर लागू करना चाहिए लेकिन इतना भी समझें कि जिन देशों में इसे लागू किया जा चुका है, वहां भी उद्यमियों-व्यापारियों को पुरानी व्यवस्था से नई व्यवस्था अपनाने और पर्याप्त संसाधन जुटाने के लिए समय दिया गया होगा। हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा? देश में इसके लागू होने के एक दिन पहले तक भी आम आदमी और व्यापार जगत में काफी आशंकाओं और असमंजस का माहौल है। व्यापारी और उद्यमी कर दरों व इसकी तैयारियों को लेकर परेशान हैं, तो आम आदमी को लग रहा है कि जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुएं और सेवाएं काफी महंगी हो जाएंगी।
व्यापारी ही नहीं विभाग
भी असमंजश में
जीएसटी को लेकर विभागों के बीच भी उलझन अभी भी बरकरार है। सेंट्रल एक्साइज विभाग ने अपने जोन और वार्ड घोषित करते हुए अधिकारियों की पदस्थापना कर दी है, वहीं दूसरी ओर वाणिज्यिककर विभाग ने भी अपने जोन घोषित किए हैं। अधिकार क्षेत्र को लेकर दोनों ही विभागों के बीच असमंजस है। जीएसटी काउंसिल ने 1.5 करोड़ रुपए से अधिक के टर्नओवर वाले कारोबारियों की जांच की जिम्मेदारी सेंट्रल अधिकारियों को और 1.5 करोड़ से कम टर्नओवर वाले की जिम्मेदारी वाणिज्यिककर को सौंपी है।
1.5 करोड़ से कम टर्नओवर वाली इकाइयों में से 90 प्रतिशत इकाइयां वाणिज्यिककर विभाग और 10 प्रतिशत इकाइयां सेंट्रल एक्साइज देखेगा। 1.5 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाली इकाइयों को सेंट्रल एक्साइज और वाणिज्यिककर विभाग समान रूप से देखेगा। फिलहाल अधिकार क्षेत्रों की घोषणा नहीं की गई है। कौन अधिकारी क्या देखेगा इसको लेकर असमंजस की स्थिति है। वाणिज्यिककर विभाग को यदि 1.5 करोड़ से नीचे की इकाइयां देखना है तो संभवत: सेंट्रल एक्साइज में रजिस्टर्ड 800 इकाइयों की जिम्मेदारी भी इन्हीं के पास आएगी। इसको लेकर कोई कार्य योजना नहीं बनाई गई है। वहीं दूसरी ओर एक्साइज में भी इसी तरह की स्थिति है।
-सुनील सिंह