22-Jul-2017 07:29 AM
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राजनीति में कुछ भी संभव है। राष्ट्रीय राजधानी के सियासी हालातों से लग रहा है कि अगले छह महीनों में विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं। यह संभावना जगी है चुनाव आयोग के कदम से। दरअसल, लाभ का पद लेकर फंसे आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को चुनाव आयोग से बड़ा झटका लगा है। चुनाव आयोग लाभ के पद वाले मामले में फंसे आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों के खिलाफ सुनवाई जारी रखेगा। ऐसे में चुनाव आयोग के फैसले के बाद दिल्ली में मध्यावधि चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है। बताया जा रहा है कि एक-दो सुनवाई के बाद आयोग अपना फैसला राष्ट्रपति को सौंप देगा। वहीं, आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग से यह मामला खत्म करने की गुहार लगाई थी। गौरतलब है कि प्रशांत पटेल नामक व्यक्ति ने आप के 21 एमएलए के खिलाफ लाभ के पद के मामले में चुनाव आयोग में याचिका दायर की थी। हालांकि आयोग ने विधायक जरनैल सिंह के खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी थी।
चुनाव आयोग ने आदेश में कहा कि आयोग का स्पष्ट मत है कि एमएलए 13 मार्च 2015 से 8 सितंबर 2016 के दौरान डी फैक्टोÓ संसदीय सचिव थे। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि चुनाव आयोग में चल रहे मामले में अदालत के फैसले का कोई असर नहीं पडऩा चाहिए, क्योंकि ये विधायक उच्च न्यायालय द्वारा उनकी नियुक्ति रद्द किए जाने तक इन पदों का लाभ ले रहे थे। उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय ने आठ सितंबर 2016 को न सिर्फ आप के विधायकों की संसदीय सचिव के रूप में नियुक्ति पर रोक लगा दी थी, बल्कि इन पदों के सृजन को भी खारिज कर दिया था।
बता दें कि 13 मार्च 2015 को आप सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने का फैसला किया। 19 जून 2015 को युवा वकील प्रशांत पटेल ने इसके खिलाफ राष्ट्रपति को याचिका दी थी। इसके बाद 24 जून को आनन-फानन में सरकार ने दिल्ली मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति लिए बिना संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से अलग करने का फैसला किया। इसके बाद राष्ट्रपति ने संसदीय सचिव के मामले को चुनाव आयोग के पास भेज दिया। चुनाव आयोग ने महीनों इस पर सुनवाई की। इसी बीच हाई कोर्ट ने एक अलग याचिका पर सुनवाई करते हुए संसदीय सचिव के पद को गैरकानूनी घोषित कर दिया। बताया जा रहा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार और अफसरों पर काम न करने देने का आरोप लगाकर सीधे मध्यावधि चुनाव कराने का जोखिम ले सकते हैं। माना जा रहा है कि अगर ऐसा हुआ तो इस साल के आखिर तक चुनाव हो सकता है।
ज्ञातव्य है कि शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट में भी केजरीवाल सरकार पर मनमाने ढंग से काम करने के आरोप लगाए गए हैं। उप राज्यपाल के साथ टकराव के चलते दिल्ली में अनेक योजनाएं अटकी पड़ी हैं। पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी पराजय से कार्यकर्ता हताश हैं। पार्टी को समझ नहीं आ रहा कि संकटों के इस दौर से वह कैसे बच निकले। पार्टी के विस्तार की बात तो दूर दिल्ली में भी वह सिमटती जा रही है। ऐसे दौर में 21 विधायकों की सदस्यता पर कोई आंच आई तो दिल्ली में राजनीतिक संकट का बढऩा तय है। यहां सवाल ये नहीं कि आम आदमी पार्टी सरकार का भविष्य क्या होगा? सवाल ये कि दिल्ली सरकार के अस्थिर होने से तीसरे मोर्चे की संभावनाएं जन्म लेने से पहले ही धराशायी हो जाएंगी। आम आदमी पार्टी की शुरुआत के समय लगा था कि देश दो मोर्चों की राजनीति से अलग हट सकता है। आम आदमी पार्टी के कमजोर पडऩे से वह विश्वास भी कमजोर होगा। बताया जा रहा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार और अफसरों पर काम न करने देने का आरोप लगाकर सीधे मध्यावधि चुनाव कराने का जोखिम ले सकते हैं। माना जा रहा है कि अगर ऐसा हुआ तो इस साल के आखिर तक चुनाव हो सकते है।
यह है मामला
दिल्ली में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद केजरीवाल सरकार ने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव मनोनीत किया था। बिना कानून की पड़ताल किए कि ये पद लाभ के पद में शामिल होता है या नहीं। मामला राष्ट्रपति के पास गया तो सरकार ने इसे लाभ के पद से हटा लिया। लेकिन जिस दिन विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया उस दिन वो लाभ के पद में आता था। पिछले दो साल से मामला चुनाव आयोग में है। सभी पक्ष चुनाव आयोग के समक्ष दलीलें पेश कर चुके हैं और मामले पर फैसला कभी भी आ सकता है। दिल्ली उच्च न्यायालय संसदीय सचिव के पद को पहले ही गैर कानूनी करार दे चुका है। ऐसे में आयोग का फैसला भी विधायकों के खिलाफ आया तो सरकार पर संकट के बादल और गहरे हो जाएंगे। केजरीवाल के करीबी रहे पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने पिछले दिनों आप सरकार पर भ्रष्टाचार के जो गंभीर आरोप लगाए, उसका बचाव सरकार नहीं कर पाई। हर मुद्दे पर मीडिया के सामने बोलने वाले केजरीवाल इन दिनों मौन हैं।
-ऋतेन्द्र माथुर