02-May-2017 07:55 AM
1234816
अखिल भारतीय सेवा और राज्य की सेवाओं के अफसरों और कर्मचारियों पर विभिन्न मामलों में विभागों में लंबित अभियोजन स्वीकृति अब चार सदस्यीय सब कमेटी करेगी। दरअसल अभियोजन की स्वीकृति में हो रही देरी के कारण कैबिनेट ने यह फैसला लिया है। विगत दिनों सम्पन्न हुई कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में अभियोजन के लिए सब कमेटी बनाई गई। इस कमेटी में वित्त मंत्री जयंत मलैया, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव, पशुपालन, मछुआ कल्याण, पर्यावरण मंत्री अंतरसिंह आर्य और सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री लालसिंह आर्य शामिल हैं।
उप समिति की अपनी पहली बैठक में 18 अभियोजन स्वीकृति के मामले आए। समिति ने तीन लोगों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति जारी की। इनमें एक मामला छिंदवाड़ा का है। वहां के लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन एक्जीक्यूटिव इंजीनियर संजय डेहरिया के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति दी गई। इनके साथ ही पिछोर के सीएमओ नरेंद्र पाठक और मत्स्य विभाग के तत्कालीन संचालक पीसी कौल के खिलाफ भी अभियोजन की स्वीकृति दी गई। वहीं विभाग के एक मामले को पुर्नविचार के लिए विभाग के पास भेज दिया गया है। उप समिति ने अपनी पहली बैठक में पाया कि जिस मामले में विधि विभागों के अभियोजन स्वीकृति के विपरीत निर्णय देता है कमेटी उसे खत्म कर देगी। लेकिन ऐसे मामले बिरले ही सामने आते हैं। जबकि कमेटी बनी है कि अभियोजन के मामले में अगर विभाग सहमत हो और विधि विभाग असहमत हो तो वह उसे निपटाएगी।
यही नहीं उपसमिति के अधिकार को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि अगर कोई कमेटी के निर्णय को लेकर कोर्ट में चैलेंज करता है तो कोर्ट किसको नोटिस देगा। कमेटी को या व्यक्ति को। दरअसल पहले यह होता आया है कि अभियोजन की स्वीकृति राज्य सरकार करती थी। सरकार के सीनियर सेक्रेटरी की कमेटी मामले की जांच पड़ताल करने के बाद निर्णय देती थी। अमूमन यह देखा गया है कि विभाग के प्रमुख सचिव ही अभियोजन की स्वीकृति देते थे। लेकिन अब उपसमिति बनाकर सरकार ने अभियोजन का निर्णय करने का फैसला लिया है। ऐसे में समिति को लेकर संशय बना हुआ है।
जानकारों का कहना है कि मप्र कैबिनेट ने शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति जारी करने की प्रक्रिया में संशोधनों को मंजूरी प्रदान की है, इसके बाद अभियोजन को मंजूरी विभागों से मिलने वाली रिपोर्ट के आधार पर ले ली जाएगी। अभी विधि विभाग के पास फाइलें सालों-महीनों तक पेंडिंग रहती है। इससे सालों तक मामलों में कार्रवाई नहीं हो पाती। इस मंजूरी के बाद अन्वेषण अभिकरण, व्यक्तिगत परिवादी की ओर से अभियोजन स्वीकृति के प्रकरण, आवेदन अभिलेख सहित सीधे प्रशासकीय विभाग को भेजते हुए उसकी एक प्रति विधि एवं विधायी कार्य विभाग एवं सामान्य प्रशासन विभाग को पृष्ठांकित करेगा। प्रशासकीय विभाग प्रकरण का परीक्षण कर यदि यह पाता है कि प्रकरण अभियोजन की स्वीकृति के योग्य है, तो वह प्रकरण की प्राप्ति से 45 दिन की अवधि के भीतर अभियोजन की स्वीकृति जारी कर उसे अन्वेषण अभिकरण, व्यक्तिगत परिवादी को प्रेषित करेगा तथा स्वीकृति आदेश की एक प्रति विधि और विधायी कार्य विभाग एवं सामान्य प्रशासन विभाग को भी अग्रेषित करेगा। अभी तक इस तरह की प्रकिया नहीं थी, इस वजह से अभियोजन मंजूरी मिलने में काफी समय लग जाता था। इससे कार्रवाई समय से नहीं हो पाती थी। जानकारों का कहना है कि इस मंजूरी के बाद अभियोजन को मंजूरी नहीं मिलने जैसी शिकायतें नहीं आएगी। इसके बजाय त्वरित कार्रवाई हो सकेगी। फिलहाल तीन महीने में विभाग द्वारा अभियोजन स्वीकृति दिए जाने की व्यवस्था है। अब देखना यह है कि प्रदेश के विभागों में अभियोजन के लिए लंबित फाइलों का निपटारा उपसमिति कितनी जल्दी करती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने डाला परेशानी में
प्रदेश के करीब डेढ़ सौ भ्रष्ट अफसर और कर्मचारियों को लेकर सरकार की चिंता बढ़ गई है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने सरकार को परेशानी में डाल दिया है। कैबिनेट बैठक में अभियोजन स्वीकृति की मंजूरी दिए जाने के निर्णय के पीछे भी सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ही माना जा रहा है। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 6 सितम्बर को दिया था। यह फैसला भ्रष्टाचार के जुड़े मामलों में अभियोजन स्वीकृति दिए जाने में अडंगा लगाने वाली सरकार पर बड़ा प्रहार माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें हरियाणा के पूर्व मंत्री अभय चौटाला और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल के मामलों का भी हवाला दिया गया है। इसके अनुसार यदि कोई अफसर या अन्य का पद या ऑफिस बदल जाता है तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत उसकी अभियोजन स्वीकृति सरकार से लेने की जरुरत ही नहीं है। प्रदेश में कई मामले इसी आपाधापी में अटके हुए है। इसलिए प्रदेश सरकार ने भी उपसमिति बनाकर मामलों का निपटारा करने की राह तलाश ली है।
-विकास दुबे