मोदी से दूर हैं वसुंधरा
01-May-2013 10:05 AM 1234763

मुस्लिम वोटों की राजनीति धर्मनिरपेक्ष दलों में ही नहीं बल्कि भाजपा जैसे हिन्दू समर्थक दलों में भी सर चढ़कर बोल रही है। राजस्थान में इसका नज़ारा देखा जा सकता है जहाँ वसुंधरा  राजे ने मोदी के आने पर अघोषित रोक लगा राखी है। दरअसल वसुंधरा गहलोत सरकार के खिलाफ अल्पसंख्यकों की नाराजगी को भुनाना चाहती हैं। मोदी के आने से इस बात की आशंका है कि अल्पसंख्यक वोटों का धु्रवीकरण हो सकता है। चुनावी गणित को देखते हुए महारानी कोई कसर नहीं रखना चाहती लिहाज़ा उन्होंने आलाकमान को बता दिया है कि उन्हें क्या पसंद है इसीलिये रथ यात्रा के दौरान रैलियों में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, लालकृष्ण आडवाणी और अरुण जेटली शामिल तो होंगे पर मोदी नहीं दिखाई देंगे। उल्लेखनीय है कि पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने अजमेर की सभा में बिलकुल खुले शब्दों में कहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। इसी कारण वसुंधरा को खुला हाथ दिया गया है कि वे अपनी पसंद का प्रचारकर्ता स्वयं चुन लेवें।
वसुंधरा के रुख को भांपकर भाजपा की राजस्थान इकाई ने साफ कर दिया कि दिल्ली का तख्त हासिल करने के लिए भले ही पार्टी मोदी को तुरूप का इक्का मान रही हो, लेकिन राजस्थान का राज फिर से हासिल करने के लिए महारानी के हुक्म को ही मानना पड़ेगा, इसमें मोदी की जरूरत नहीं है। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिरकार मोदी की राजस्थान में एंट्री को लेकर महारानी को परहेज क्यों है। वसुंधरा मोदी से दूरी बना कर क्यों रखना चाहतीं हैं। समझा जाता है कि वसुंधरा मोदी को रैली में न बुला कर एक तीर से चार निशाना साधने की कवायद में है। पहला वसुंधरा नहीं चाहतीं कि उनके सियासी शो को मोदी लूट लें, दूसरा गुजरात चुनावों के दौरान वसुंधरा को मोदी ने नहीं बुलाया, तो वसुंधरा ने मोदी को ना कह दिया। तीसरा वसुंधरा गहलोत सरकार के खिलाफ अल्पसंख्यकों की नाराजगी को भुनाना चाहतीं हैं। चौथा मोदी से दूरी बना कर वसुंधरा खुद की सेकुलर छवि को मजबूत करने में पीछे नहीं रहना चाहतीं।
कुछ समय पूर्व राजस्थान के गोपालगढ़ कांड में पुलिस गोली से 10 अल्पसंख्यकों की मौत हो गई था। इस घटना को लेकर अल्पसंख्यक गहलोत सरकार से काफी नाराज बताए जा रहे हैं। वसुंधरा चाहती हैं कि उदयपुर के इलाकों में निर्णायक कही जाने वाली 30 विधानसभा सीटों पर अल्पसंख्यकों का वोट उन्हें मिले। भाजपा का एक धडा भले ही मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग कर रहा हो, लेकिन दिल्ली की गद्दी पर बैठने से पहले मोदी को अपने घर में भी लडाई जीतनी पड़ेगी। लेकिन मोदी भले ही नेताओं की पसंद न हों पर वे जनता की पसंद तो हैं इसी कारण पहले चरण में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ही आवाज उठती रही।  गुजरात से सटे उदयपुर संभाग के आदिवासी बहुल इलाकों से जब यात्रा गुजरी तो भाजपा नेताओं ने भी सत्ता में आने पर गुजरात की तर्ज पर राजस्थान में भी विकास लाने का वादा किया। ज्यादातर बड़ी सभाओं में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करने की आवाज उठती रही। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के सामने भी जब इस बारे में नारेबाजी हुई तो उनको कहना पडा कि विषय ध्यान में आ गया है। मोदी को लेकर मजबूरी का आलम यह था कि वसुंधरा राजे ने भी गुजरात जैसे विकास की बात करीब-करीब हर सभा में की। उनका कहना है कि राज्य के किसानों की हालत आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों जैसी हो गई है। इसके साथ ही उन्होंने अपने पिछले शासन में हुए विकास के साथ ही आरोप लगाया कि कांग्रेस के शासन में राज्य पिछड़ गया है। किन्तु सात चरणों में पूरी होने वाली वसुंधरा की सुराज संकल्प यात्रा का श्रीगणेश साधारण ही रहा है वे अशोक गहलोत की तरह जनता को आकर्षित करने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। बहरहाल पहले चरण में यह यात्रा उदयपुर संभाग में होगी जो  16 जुलाई तक चलेगी, इस दौरान 28 विधानसभा क्षेत्रों में 35 जन सभाएं होंगी। वसुंधरा के समर्थकों का कहना है कि जब  सुराज संकल्प यात्रा सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी और इसमें वसुंधरा राजे करीब 13,500 किमी चलेंगी तो स्वत: ही जनमानस में बदलाव देखने मिलेगा क्योंकि  212 जन सभाएं प्रदेश के लोगों को कांग्रेसी सरकार के खिलाफ लामबंद कर देंगी। अब ऐसा हो पायेगा या नहीं इसका पता नहीं है किन्तु  वसुंधरा राजे यह पूरी यात्रा अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस दो बसों से तय कर रही हैं जिनमें  टीवी, म्यूजिक, इंटरनेट और लिफ्ट जैसी सुविधाएं मौजूद हैं।
चुनावी मौसम में भी यदि कुछ कड़वी बातें सामने आ जाएँ तो मज़ा किरकिरा होना स्वाभाविक है जब गहलोत ने यह आरोप लगाये कि वसुंधरा ने अपने ही मंत्रियों के खिलाफ षडय़ंत्र रचे थे  तो राजनीति गरमा गयी। गहलोत ने कहा कि वसुंधरा राजे ने सत्ता में रहते हुए खुद के मंत्रियों को नहीं छोड़ा। गुलाबचंद कटारिया, घनश्याम तिवाड़ी, नरपतसिंह राजवी और अजयपाल सिंह। उनके जमीनों के झूठे सच्चे मामले उठाए। गहलोत बता रहे थे कि भाजपा-आरएसएस में ये बाते सब जानते हैं। जब इन पर घोटाले के आरोप लगे तो हटाया क्यों नहीं?
उधर जमीन का एक पुराना मामला भी चुनाव के समय वसुंधरा का सरदर्द बन गया है जयपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि क्यों ना धौलपुर के सहेड़ी में 22 बीघा चारागाह जमीन सांसद दुष्यंत सिंह के नाम करने के मामले में दर्ज एफआईआर पर जांच सीबीआई को सौंप दी जाए? वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में धौलपुर के बाड़ी तहसील के सहेड़ी की 22 बीघा चारागाह जमीन गैर-कानूनी तरीके उनके पुत्र दुष्यंत सिंह के नाम कर दी थी। इस संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री के प्रभाव के कारण सरकार ने अपील नहीं की थी। लेकिन अब यह मामला सामने आ गया है।

जयपुर से आरके बिन्नानी

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