16-May-2013 07:55 AM
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सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को सुप्रीम कोर्ट से बरी किए जाने का विरोध सारा देश विशेषकर सिख बहुल क्षेत्रों में जारी है। सिख समुदाय का कहना है कि सरकार ने जानबूझकर कई

हत्याओं के दोषी सज्जन कुमार को बचाया है। अरविंद केजरीवाल ने पीडि़त परिवारों की मांगों के समर्थन में एक दिन की भूख हड़ताल की थी तो पीडि़ता निरप्रीत कौर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गई हैं। सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री निवास पर आए दिन प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शनकारी कांग्रेस के बड़े नेताओं के विरोध में नारे लगा रहे हैं और दंगे के दोषियों को सजा देने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों की मांग नाजायज नहीं है। गुजरात दंगों में तो माया कोडनानी सहित 22 लोगों को सजा हो चुकी है कुछ को तो फांसी की सजा भी सुनाई गई है लेकिन सिख विरोधी दंगों में खास आरोपियों को अपेक्षित सजा नहीं मिली है। इसका कारण शायद यह है कि सिख समुदाय की तादाद वोट के लिहाज से भारत में उतनी बड़ी नहीं है जितनी मुसलमानों की है। इसीलिए मुसलमानों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दल उमड़ पड़ते हैं, लेकिन जब सिख दंगों की बात आती है तो दिल दहला देने वाला अन्याय सामने दिखाई देने लगता है। सज्जन कुमार को सबूतों के अभाव में बरी किया गया है। सबूत उनके खिलाफ हो भी नहीं सकते थे क्योंकि जिस पुलिस को सबूत जुटाने थे वह खुद दंगों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही थी और उसे उकसाया भी जा रहा था। सज्जन कुमार का कहना है कि उनके विरुद्ध लगाए गए आरोप गलत हैं वे एक ही समय में दो स्थानों पर कैसे रह सकते हैं। शायद सज्जन कुमार की दलील कुछ सच भी हो पर उन्हें पूरी तरह क्लीन चिट देना भारत की न्याय प्रणाली की खामी उजागर कर रहा है। सिख विरोधी दंगे भारतीय इतिहास के सबसे दर्दनाक दंगों में से एक हैं जिनमें सिखों को अभूतपूर्व हिंसा का सामना करना पड़ा। बहुत से परिवार तो ऐसे थे जिसमें एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा। कई परिवारों में 20-20 लोगों को मार दिया गया। ऐसी ही कहानी मंजीत सिंह की भी है।
मनजीत सिंह तब 3 वर्ष के थे, जब 84 के दंगे हुए। दंगाइयों ने उनके पिता को मौत के घाट उतार दिया। दंगाइयों ने पहले उनके मकान पर हमला बोला और उसे तहस नहस कर दिया। इसके बाद उनके पिता को मकान के अंदर से घसीटते हुए बाहर ले जाया गया और बीच सड़क पर मौत के घाट उतार दिया गया। इतना ही नहीं, कातिलों ने मनजीत सिंह के दस वर्षीय भाई पर जलते हुए टायर भी फेंके। दंगाई अपने साथ मनजीत के पिता की लाश घसीटते हुए ले गए। उनके पिता की लाश आज तक नहीं मिली है। कैलिफॉर्निया में रह रहे 52 वर्षीय मंजीत सिंह ने कहा है कि उन्होंने 31 अक्टूबर 1984 को ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) में अमिताभ बच्चन को भीड़ में एक सिख की ओर इशारा करके सिख विरोधी नारा लगाते हुए देखा था। इससे पहले दंगों की प्रमुख गवाह जगदीश कौर और बाबू सिंह दुखिया ने अकाल तख्त से अमिताभ की शिकायत की थी। इन दोनों का आरोप है कि उन्होंने दूरदर्शन पर अमिताभ को खून का बदला खून से लेंगे का नारा लगाते हुए देखा था। दोनों ने दावा किया था कि उनके पास इसकी क्लिपिंग भी है। गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया में भी एक अमेरिकी संस्था ने अमिताभ के खिलाफ दंगे भड़काने का केस दर्ज कराया है। हालांकि अमिताभ बच्चन ने अकाल तख़्त और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को चि_ी लिखकर अपनी सफाई दी है। चि_ी में उन्होंने लिखा है कि 84 के दंगों में उन्होंने किसी को नहीं भड़काया था। अमिताभ बच्चन ने अपने खत में 84 के सिख विरोधी दंगों को इतिहास पर काला धब्बा भी बताया। वरिष्ठ पत्रकार राहुल बेदी और जोसेफ आज भी दंगों के उन 72 घंटों को याद करके सिहर उठते हैं। राहुल बेदी ने त्रिलोकपुरी के ब्लॉक 32 का दंगा कवर किया था। वह बताते हैं कि पूर्वी दिल्ली में जो नरसंहार हुआ, वह पूर्वनियोजित था। वहां तकरीबन 320 सिख महिला, पुरुष और बच्चे थे। सभी लोगों को दो दिनों के अंदर मार दिया गया। एक नवंबर को जब बेदी और जोसेफ दंगे की कवरेज कर रहे थे, दंगाइयों ने उन दोनों को भी निशाना बनाया। राहुल बेदी बताते हैं कि मौके पर ऐसा लग रहा था कि जैसे सिखों का स्लाटर हाउस बना दिया गया हो। पुलिस मौके पर खड़ी होकर पूरी तरह से तमाशा देख रही थी। दंगाई और हत्यारों को देखकर ऐसा लग रहा था कि उन्हें किसी बात की कोई जल्दी नहीं है। वह सिख महिलाओं का बलात्कार कर रहे थे और उन्हें बुरी तरह से टॉर्चर करके उनकी हत्या कर रहे थे।
ऐसे वीभत्स दंगों में केवल छोटे लोगों को मामूली सजा दी गई। बड़े लोग अभी भी बचे हुए हैं।
दिल्ली से अरुण दीक्षित