19-Jul-2017 08:07 AM
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देश और विदेश के व्यस्त राजनीतिक गतिविधियों के बीच एक इंसान की कमी दिखाई दे रही है। वो हैं आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। केजरीवाल जी ऐसे इंसान हैं जो सभी प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दों पर टिप्पणी करने में पीछे नहीं रहते और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर हमला करने का एक मौका कभी चूकते हैं। ऐसे में अभी की गहमागहमी में उनकी अनुपस्थिति उल्लेखनीय है। इन दिनों तो केजरीवाल किसी टीवी चैनल पर बाइट देते भी नहीं दिख रहे हैं। यहां तक की उनके टीवी और रेडियो चैनलों पर चलने वाले सारे विज्ञापन भी कहीं गायब हो गए हैं।
पिछले एक महीने में कम से कम तीन बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं। पहला- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों की घोषणा, दूसरा- गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) के रूप में देश में ऐतिहासिक आर्थिक सुधार लागू हुए और तीसरा- आजादी के लगभग 70 सालों में पीएम नरेन्द्र मोदी इजरायल जाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने। लेकिन इन सभी घटनाओं के बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री शांत बैठे हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर उनकी तरफ से कोई हलचल नहीं दिखाई दे रही है। जबकि इसके पहले केजरीवाल किसी भी मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार और भाजपा की आलोचना करने में सबसे आगे रहते थे।
इन तीनों हालिया घटनाक्रमों पर प्रतिक्रिया देते हुए केजरीवाल के करीबी सूत्रों का कहना है कि इजरायल के मुद्दे पर केजरीवाल का कोई स्टैंड नहीं है। जीएसटी मामले पर कहा गया कि 2 जुलाई को केजरीवाल ने एक हैंगआउट में हिस्सा लिया था और ईद के एक दिन पहले भीड़ द्वारा जुनैद की हत्या गोमांस के लिए किए जाने का आरोप लगाया था। साथ ही कुछ ट्विट्स को रिट्वीट भी किया था। राष्ट्रपति चुनाव के बारे में उन्होंने कहा कि पार्टी ने पहले ही इस बात के संकेत दे दिए है कि वो भाजपा के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं करेंगे। लेकिन इसके पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री हर मुद्दे पर बड़ी ही साफगोई से अपनी बात रखते थे। 29 सितंबर 2016 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर आतंकवादियों के खिलाफ किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के लिए जब सारा देश जश्न मना रहा था केजरीवाल उन कुछ विपक्षी नेताओं में से थे जिन्होंने सेना की इस कार्रवाई पर उंगली उठाई थी। इसी तरह जब 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने जब रात के 8 बजे नोटबंदी की घोषणा की तो सारे देश ने इस कदम का जोरशोर से स्वागत किया। लेकिन केजरीवाल ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मिलकर एक अभियान का नेतृत्व किया जिसमें नोटबंदी के फैसले को रद्द करने की मांग की गई थी। यहां तक की नोटबंदी के फैसले को वापस नहीं लेने पर जनता के साथ मिलकर विद्रोह की भी धमकी दी थी।
अब इस बात से तो सभी को आश्चर्य होगा कि आखिर केजरीवाल इतना शांत क्यों हो गए हैं। तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। केजरीवाल को पूरा यकीन था कि पंजाब और गोवा के विधानसभा चुनावों में जीत उन्हें ही मिलेगी। लेकिन पंजाब में मिली कम सीटें और गोवा में खाता न खोल पाना दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए करारा धक्का थी। इन दोनों ही राज्यों में केजरीवाल ने जिस तरह से अपना समय और संसाधन लगाया था उसके बाद उनकी प्रतिष्ठा दांव पर थी। लेकिन अपनी पार्टी की जड़ें दिल्ली से बाहर फैलाने और जमाने के मकसद से लड़े गए ये चुनाव उनके लिए हानिकारक साबित हुआ। दिल्ली का नगर निगम चुनाव आम आदमी पार्टी का पहला चुनाव था और यहां भी उन्हें भाजपा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा। पंजाब और गोवा विधानसभा चुनावों की तुलना में आम आदमी पार्टी के लिए ये हार किसी झटके से कम नहीं थी क्योंकि यहां पर उसी की सरकार है।
दो विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद केजरीवाल ने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया। साथ ही चुनाव आयोग (ईसी) पर भाजपा के हाथों की कठपुतली बनने का भी आरोप लगाया। उन्होंने चुनाव आयोग से एक ईवीएम देने की मांग की और चैलेंज किया कि 72 घंटे में वो ये साबित कर देंगे कि ईवीएम के सॉफ्टवेयर से छेड़छाड़ की जा सकती है। चुनाव आयोग ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए न सिर्फ आमआदमी पार्टी बल्कि सारे राजनीतिक दलों को ईवीएम में धांधली की बात को साबित करने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन न सिर्फ आम आदमी पार्टी बल्कि सारे दलों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। और फिर से केजरीवाल की छवि मटियामेट हो गई।
अपनी करनी के जाल में फंसे अरविंद
आम चुनावों में हार के बाद से आम आदमी पार्टी के अंदर ही उठा-पटक शुरु हो गई। दिल्ली सरकार में पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने केजरीवाल के खिलाफ विद्रोह का झंडा तो बुलंद किया ही था साथ ही उनके खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं और अनौपचारिकताओं के गंभीर आरोप भी लगाए। इसी समय आप के सह-संस्थापक और केजरीवाल के विश्वासपात्र कुमार विश्वास भी अलग ही राग अलापने लगे थे। दोनों ही एक-दूसरे के राजनीतिक हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि संघर्ष-विराम की एक कोशिश जरूर की गई है लेकिन ये कोई स्थायी हल नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के चार अन्य लोगों के खिलाफ मानहानि के मामलों ने उनकी छवि खराब की थी। हालांकि आम आदमी पार्टी के संयोजक ने अपने बचाव के लिए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी को नियुक्त किया है लेकिन वो बैकफुट पर ही नजर आ रहे हैं। आप के तीन विधायकों द्वारा विद्रोह के अलावा आम आदमी पार्टी के 66 में से 20 विधायकों पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में निलंबन की तलवार लटक रही है।
-इन्द्रकुमार