19-Jul-2017 08:37 AM
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पिछले 13 साल से प्रदेश की राजनीति में मरणासन पड़ी कांग्रेस को किसान आंदोलन के दौरान सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के सत्याग्रहÓ से ऐसी संजीवनी मिली है कि मप्र की राजनीति के सारे समीकरण बदलने लगे हैं। अचानक कांग्रेस में एकता नजर आने लगी है। सारे दिग्गज एक मंच से हुंकार भरने लगे हैं। परस्पर विरोधी नेता एक नजर आने लगे हैं। कार्यकर्ता सक्रिय होने लगे हैं और कांग्रेस की सभाओं में भीड़ उमडऩे लगी है। यह दृश्य देखकर भाजपा और सरकार ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी सतर्क हो गया है। तो क्या कांग्रेस का वनवास खत्म होने वाला है? यह सवाल प्रदेश की राजनीतिक, प्रशासनिक वीथिका के साथ ही चौक-चौराहों पर भी उठ रहा है। लेकिन जवाब अनुतरित है।
दरअसल, कांग्रेस की इस एकता में भी कई पेंच नजर आ रहे हैं। फिर भी विधानसभा चुनाव 2018 जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे प्रदेश कांग्रेस में समीकरण बदल रहे हैं। प्रदेश के दिग्गज नेताओं के बीच की दूरियां फरवरी 2017 के विधानसभा घेराव से कम होना शुरू हुईं और अब ये लगातार एक मंच पर नजर आने लगे हैं। अरुण यादव-अजय सिंह की जोड़ी जहां मैदान में दिखाई देने लगी है तो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया-सुरेश पचौरी खड़े नजर आ रहे हैं। वहीं कमलनाथ अभी अलग-थलग दिखाई दे रहे हैं तो दिग्विजय सिंह ने खुद को तटस्थ कर रखा है। कांग्रेस विपक्ष की भूमिका निभाने में भी कुछ समय पहले तक बंटी-बंटी होने के कारण नाकाम नजर आती थी, उसमें अब बदलाव दिखाई दे रहा है। बदलाव की शुरूआत तो राज्यसभा चुनाव के समय हो गई थी, जब वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा की सीट के लिए दिग्गजों ने अपने-अपने स्तर पर प्रयास किए थे। इसके बाद तन्खा ने सिंधिया-कमलनाथ के सहारे सभी दिग्गजों को एक मंच पर लाने के लिए प्रयास करना शुरू किए और फरवरी
2017 में विधानसभा घेराव में कांग्रेस एकजुट दिखाई दी।
इसी बीच जून के किसान आंदोलन ने कांग्रेस को एकता की संजीवनी दे दी है। किसान आंदोलन में फायरिंग की घटना बाद सरकार के खिलाफ आक्रोश को कांग्रेस ने अपने पक्ष में करने की कोशिश की। सिंधिया ने 72 घंटे का सत्याग्रह का ऐलान कर कार्यकर्ताओं को भोपाल में जुटाया। बाद में सिंधिया का यह आंदोलन पीसीसी के आंदोलन में बदल गया। यहां कमलनाथ को छोड़कर सभी दिग्गज जमा हुए। अरुण यादव सत्याग्रह को किसान महापंचायत के रूप में खलघाट ले गए, जहां फिर दिग्विजय सिंह को छोड़कर सभी दिग्गज एकत्रित हुए। भिंड जिले के लहार कस्बे में हुए कांग्रेस के मेगा शो ने तो तस्वीर ही बदल दी। 1993 में डबरा में हुए कांग्रेस सम्मेलन की तर्ज पर हुए इस सम्मेलन को कांग्रेसी नेताओं की एकता का पहला पड़ाव माना जा रहा है। किसानों के नाम पर हुए इस सम्मेलन में कांग्रेस नेताओं ने ऐलान किया कि प्रदेश में अगली सरकार किसानों की होगी। सत्ता में आने पर कांग्रेस किसानों की जायज मांगों को पूरा कराएगी। लहार सम्मेलन में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर और मध्यप्रदेश के प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश के अलावा वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव सहित प्रदेश के बड़े और प्रमुख कांग्रेसी नेता मौजूद रहे।
उल्लेखनीय है कि 1993 में स्वर्गीय माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस की एकजुटता के लिए डबरा में ऐसा ही सम्मेलन आयोजित किया था। उसके बाद हुए विधानसभा चुनाओं में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। तब दिग्विजय मुख्यमंत्री बने थे जो 10 साल तक कुर्सी पर रहे थे। लहार के बाद अजय सिंह के गृह क्षेत्र चुरहट में सम्मेलन हुआ जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहली बार पहुंचकर सरकार को जमकर कोसा। अब कांग्रेस भाजपा को हर विधानसभा क्षेत्र में घेरने की तैयारी कर रही है। लेकिन भाजपा की जमावट को भेदने के लिए कांग्रेस को नाको चने चबाने पड़ेंगे।
प्रभावी चेहरों पर दांव लगाए कांग्रेस
किसान आंदोलन से मिली संजीवनी से उत्साहित कांग्रेस पार्टी में अब सीएम पद के लिए किसी एक चेहरे को प्रोजेक्ट करने की बहस छिड़ गई है। किसान आंदोलनों में मिल रहे समर्थन के बाद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किसी एक चेहरे को आगे करने की जरुरत बताई है। सिंधिया ने कहा है कि प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी पार्टी को किसी एक का चेहरा आगे कर चुनावी समर में उतरने की तैयारी करनी चाहिए। वहीं पार्टी में अब सिंधिया के नाम पर आमराय बनती नजर आ रही है। हालांकि कई नेता इस मामले में मौन हैं, लेकिन कुछ नेताओं ने खुलकर सिंधिया के समर्थन में बयान देना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के सीनियर लीडर सुरेश पचौरी ने सिंधिया को काबिल नेता बताया है। सिंधिया का कहना है कि मैंने तो पहले से ही ये कहा है कि मध्यप्रदेश ही नहीं, हर राज्य में जहां उपयुक्त चेहरे हो, वहां कांग्रेस पार्टी को निर्णय लेकर एक व्यक्ति को आगे करके चुनाव लडऩा होगा। सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का कहना है कि, राजनीति आज देश में व्यक्तित्व पर आधारित हो चुकी है, लेकिन मैं ये भी कहूंगा कि केवल चेहरा नहीं, उसके साथ संगठनात्मक ढांचे को भी मजबूती हमें प्रदान करनी होगी।
-अरविंद नारद