19-Jul-2017 08:31 AM
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मप्र में मनरेगा यह खुलासा हाल ही में शुरू किए गए सत्यापन में सामने आया है। यह हाल तब है जब सत्यापन की प्रक्रिया शुरुआती दौर में है। सत्यापन के दौरान पाया गया है कि एक गांव की एक ही गली में एक ही जगह पर एक ही नाम के आठ से लेकर दस लोगों के नाम पर फर्जी जॉब कार्ड पाए गए हैं। जांच मेेंं सात लाख 73 हजार से ज्यादा जॉब कार्ड ऐसे पाए गए है, जिनमें परिवार व मुखिया का नाम एक समान है। इसमें फर्जीवाड़े की
भारी संभावना के चलते सत्यापन के दायरे में लाया गया है। सत्यापन में 14 लाख 80 से ज्यादा जॉब कार्ड ऐसे पाए गए है, जो एक्टिव ही नहीं हैं। अब इनको रद्द करने की तैयारी की जा रही है।
मनरेगा परिषद के डाटा रिकार्ड के मुताबिक प्रदेश में 63 लाख 84 हजार 220 जॉब कार्ड जारी किए गए हैं। इनके सत्यापन के शुरुआती आंकलन में 42 लाख 22 हजार 165 जॉब कार्ड एक्टिव पाए गए। मनरेगा की टीमें मैदान में सत्यापन के लिए क्या गई पूरा रिकार्ड ही बदल गया। इसमें जो जॉब कार्ड डुप्लीकेट या फर्जी हैं, उन पर भी भुगतान किया गया, जिससे वे जॉब कार्ड एक्टिव की श्रेणी में आ गए। इसके चलते बाद में 52 लाख 44876 जॉब कार्ड में से 37 लाख 64 हजार 580 जॉब कार्ड ही एक्टिव मिले हैं। 7 लाख 73 हजार 504 जॉब कार्ड ऐसे पाऐ गए हैं जिन पर फर्जी तरीके से भुगतान किया गया है। इन कार्डों में मुखिया के नाम समान हैं। कई जॉब कार्ड में एक ही व्यक्ति के कागज लगे हैं या दस्तावेज गायब हैं। इन पर भुगतान कर दिया गया। इस तरह के सबसे ज्यादा राजगढ़ में 77 हजार 32 जॉब कार्ड मिले हैं। सागर में 42752, शाजापुर में 38512, छतरपुर में 32425 और सीहोर में 29236 जॉब कार्ड मिले हैं।
ग्वालियर के खितरवार में 24-24 नारायण हैं। परिवार के सदस्यों के नाम लगभग समान हैं। केवल नामों को घटा बढ़ा दिया गया। भोपाल के बैरसिया के अंकिया में 8-8 मांगीलाल हैं। जॉब कार्ड में इनका नाम मुखिया के तौर पर दर्ज है। परिवार के सदस्यों के नाम भी समान हैं। इंदौर में सांवेर के तोड़ी-खाक रोद गांव में दस-दस बाबूलाल हैं। परिवार के नाम लगभग समान हैं। जबलपुर के सिलुवा सुरकारी में 7-7 जगदीश हैं। परिवार के सदस्यों के नाम भी समान हैं। हर कार्ड में उनका क्रम बदला है। पूर्व में भी सरकार मनरेगा में जॉब कार्ड के फर्जीवाड़े पर सत्यापन कर चुकी है। तब 22 लाख से ज्यादा जॉब कार्ड गलत और फर्जी पाए गए थे। इन पर भी सालों भुगतान हुआ था। बाद में इन जॉब कार्ड को रद्द कर दिया गया, लेकिन किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की गई। अब भी जॉब कार्ड में गलतियां मिली, तो सुधार
किया जा रहा है, लेकिन जवाबदेही तय नहीं की गई है।
मनरेगा में अधिकारी शासन एवं प्रशासन को झूठी जानकारी दे रहे हैं। ग्रामीणों को मांग के आधार पर काम देने वाली इस योजना में टार्गेट पूरा करने के लिए पीओ और एपीओ आंकड़ों से खेल रहे हैं और मस्टर रोल के आधार पर काम करने वाले मजदूरों को चार गुना बढ़ाकर वाहवाही बटोरी जा रही है, जबकि हकीकत इससे कोसों दूर है। मनरेगा में प्रतिदिन काम करने वाले मजदूरों की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। प्रदेश के सभी जिलों में अमूमन इसी तर्ज पर काम चल रहा है और टीएल बैठक से लेकर वीडियो कॉफ्रेसिंग एवं विधानसभा तक यही जानकारी भेजी जा रही है, लेकिन मनरेगा के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यहां अधिकारी मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों की संख्या को 4 से 5 गुना तक बढ़ा कर शासन के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
मजदूरों की मजदूरी से कर दिया पौधारोपण
उधर पूर्व सांसद कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने आरोप लगाया है कि नर्मदा बेसिन में किए गए पौधरोपण में सरकार ने मनरेगा मद से भी 860 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। जबकि छह महीने में ये पौधे जीवित ही नहीं बचेंगे। सिंह ने कहा कि जिन पौधों को इसमें लगाया गया है, उनसे नदी का संरक्षण नहीं होगा, क्योंकि मानक पौधे नहीं लगाए जा रहे हैं। बस सरकार 700 करोड़ रुपए खर्च कर जश्न मना रही है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि वृक्ष मित्र बनाकर पौधों की रक्षा की बात कही जा रही है और वृक्ष मित्र आरएसएस प्रचारकों को बनाया जा रहा है। इन्हें मजदूरी बताकर मनरेगा की राशि दी जाएगी।
- विनोद बक्सरी