16-May-2013 07:53 AM
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सौर ऊर्जा सदैव एक चुनौती रही है। किन्तु भारत जैसे देश में जहाँ अधिकांश भू-भाग पर वर्ष के 10 माह सूरज प्रचंड ज्योति से दमकता रहता है सौर ऊर्जा वरदान साबित हो सकती है। उर्जा जरूरतों की

मांग दिनों दिन बढ़ती जा रही है और परम्परागत उर्जा स्रोतों के अवैध इस्तेमाल से स्थिति और भी विकट हो गयी है। इन सबके बीच नवीन और नवीकरणीय मंत्रालय ने सौर ऊर्जा शहरों के विकास नामक कार्यक्रम की शुरूआत की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्थानीय नगर निकायों को अपने शहरों को नवीकरणीय ऊर्जा नगर अथवा सौर ऊर्जा शहर बनाने में मार्ग दर्शन के लिए रोड मैप तैयार करने में सहायता एवं प्रोत्साहन देना है। एक सौर शहर में सभी तरह की नवीकरणीय ऊर्जा आधारित परियोजनाएं जैसे- सौर, वायु, जैव ईंधन, छोटी पनबिजली इकाइयों, अपाशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन आदि को शहरों की जरूरतों से स्थापित किया जाएगा। सौर शहर का लक्ष्य पारंपरिक ऊर्जा की संभावित मांग में कम से कम 10 प्रतिशत की कटौती करके नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों द्वारा ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना है। इसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय सरकारों को नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करना और ऊर्जा क्षमता बढ़ाने वाले उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित करना है। सौर ऊर्जा शहरों की पहचान का आधार जनसंख्या; नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की क्षमता और ऊर्जा संरक्षण; स्थानीय सरकार और आम जनता तथा उद्योगों द्वारा इस क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास हैं। इन शहरों की जनसंख्या 50 हजार से 50 लाख के बीच होनी चाहिए, हालांकि विशेष श्रेणी वाले राज्यों जैसे- पूर्वोत्तर और पर्वतीय राज्य, द्वीप तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के मामले में इसमें रियायत रहेगी। 11वीं पंचवर्षीय योजना में सौर ऊर्जा शहरों के रूप में विकसित करने के लिए मदद हेतु 60 शहरों/कस्बों को चुना गया था। मंत्रालय ने प्रत्येक राज्य में कम से कम एक और अधिकतम पांच शहरों को इसके लिए चिन्हित किया था। सैद्धांतिक तौर पर सौर ऊर्जा नगरों के रूप में 48 शहरों को स्वीकृति दी जा चुकी है इनके नाम हैं उत्तर प्रदेश में आगरा, मुरादाबाद, गुजरात में राजकोट, गांधीनगर और सूरत। महाराष्ट्र में नागपुर, कल्याण-डोम्बीवली, ठाणे, औरंगाबाद, नांदेड़ और शिर्डी, मध्य-प्रदेश में इंदौर, ग्वालियर, भोपाल और रीवा। मणिपुर में इंफाल, नागलैंड में कोहिमा और दीमापुर, उत्तराखंड में देहरादून, हरिद्वार-ऋषिकेश, हरियाणा में गुडगांव और फरीदाबाद, तमिलनाडु में कोयम्बटूर, आंध्रप्रदेश में विजयवाड़ा, छत्तीसगढ में बिलासपुर और रायपुर, त्रिपुरा में अगरतला, असम में गुवाहाटी और जोरहट, कर्नाटक में हुबली-धारवाड़ और मैसूर, केरल में तिरूवनन्तपुरम, पंजाब में अमृतसर, लुधियाना और एसएएस नगर मोहाली, राजस्थान में अजमेर, जयपुर और जोधपुर, ओडिशा में भुवनेश्वर, मिजोरम में आइजोल, गोवा में पणजी शहर, अरूणाचल प्रदेश में इटानगर, हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर और शिमला, पश्चिम बंगाल में हावड़ा।
सौर ऊर्जा शहर कार्यक्रम द्वारा स्थानीय नगर निकायों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता दी जाएगी। स्थानीय सरकारों को मास्टर प्लान तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा और इसके लिए संस्थागत व्यवस्था उपलब्ध कराई जाएगी। शहर के मास्टर प्लान में वर्ष 2008 के दौरान ऊर्जा की खपत, 2013 तथा 2018 में अपेक्षित ऊर्जा मांग को शामिल किया जाएगा, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु कार्य योजना तथा क्षेत्रवार रणनीति तैयार की जाएगी, ताकि शहर में जीवाश्म ईंधनों की खपत को कम किया जा सके। योजना में जागरूकता पैदा करने के लिए उपयुक्त कार्यकलाप शामिल किये जाएंगे। जिससे सिर्फ बिजली आपूर्ति नहीं होगी बल्कि ऊर्जा की खपत भी पूरी हो सकेगी और प्रकृति का दोहन भी नहीं होगा। तमिलनाडु सरकार ने तो सौर उर्जा नीति में बड़े पैमाने पर बिजली खपत करने वाले उपभोक्ताओं के लिए 2014 तक अपनी कुल उर्जा जरूरत का छह प्रतिशत सौर उर्जा से पूरा करने को अनिवार्य कर दिया है। तमिलनाडु में बिजली की किल्लत को ध्यान में रखकर यह कदम उठाया है। नई सौर उर्जा नीति में अगले तीन साल में सौर उर्जा से 3,000 मेगावॉट बिजली पैदा करने की बात कही गई है। नीति के तहत सेज, आईटी पार्क, टेलीकाम टॉवर, कॉलेजों तथा अवासीय स्कूल एवं उद्योग जैसे बड़े पैमाने पर बिजली खपत करने वाले उपभोक्ताओं के लिए अपनी कुल उर्जा जरूरत का 6 प्रतिशत सौर उर्जा से प्राप्त करना अनिवार्य किया गया है। नीति दस्तावेज के अनुसार उक्त क्षेत्रों को दिसंबर 2013 तक तीन प्रतिशत तथा जनवरी 2014 तक छह प्रतिशत का लक्ष्य पूरा करना है। वहीं दूसरी तरह घरेलू उपभोक्तओं तथा छोटे उद्योगों, पॉवरलूम जैसे छोटे क्षेत्रों को इससे छूट दी गई है। बहरहाल, घरेलू उपभोक्ताओं को सौर उर्जा चालित संयंत्रों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। नीति में कहा गया है कि 31 मार्च 2014 से पहले छतों पर सौर तथा सौर-पवन उर्जा उपकरण स्थापित करने के लिए पहले दो साल उत्पादन आधारित दो रुपये प्रति यूनिट तथा उसके अगले दो साल एक रुपये प्रति यूनिट एवं उसके अगले दो वर्ष तक 0.50 रुपये प्रति यूनिट का प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसमें यह भी कहा गया है कि घरेलू तथा सरकारी इमारतों के अलावा स्ट्रीट लाइट तथा जल आपूर्ति व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से सौर उर्जा आधारित बनाया जाएगा। भारत पवन चक्की से उर्जा उत्पादन के क्षेत्र में पहले ही दुनिया के बाकी देशों से आगे हैं अब उसने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी कदम बढ़ा दिए हैं। जुलाई 2009 में भारत ने 19 अरब अमेरिकी डॉलर के खर्च वाली एक योजना सामने रखी थी जिसके जरिए 2020 तक 20 गीगावाट बिजली का उत्पादन करने की योजना है।