19-Jul-2017 08:27 AM
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कुछ वर्ष पहले टाइगर स्टेट का दर्जा खो चुका मध्यप्रदेश अबकी बार टाइगर स्टेट का दर्जा पाने की जुगत में जुट गया है। दरअसल पिछली बार अपनी ही गल्तियों के कारण प्रदेश इस तमगे से चूक गया था। इसलिए इस बार टाइगर स्टेट का दर्जा खो चुका प्रदेश बाघों की संख्या के मामले में अपनी लाज बचाने की तैयारी में जुट गया है। देश में बाघों की संख्या के मामले में कभी सिरमौर रहा प्रदेश इस समय तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। 2018 में होने वाली राष्ट्रीय बाघ गणना में प्रदेश का वन विभाग दूसरे पायदान पर पहुंचने की कोशिश में है। इसके लिए प्रदेश भर में 10 हजार ट्रेंड वनकर्मी तैयार किए जा रहे हैं। इन्हें प्रशिक्षण देने 300 मास्टर ट्रेनर तैयार किए गए हैं।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने वर्ष 2014 में कराई गणना की रिपोर्ट 20 जनवरी 2015 को जारी की थी। इसमें पहले नंबर पर कर्नाटक था। यहां बाघों की संख्या 408 थी। दूसरे नंबर पर उत्तराखंड, यहां बाघों की संख्या 340 थी, मप्र तीसरे नंबर पर था, यहां 308 बाघ मिले थे। बाद में यह तथ्य सामने आया कि मध्यप्रदेश में बाघों की गिनती ठीक से नहीं हो पाई थी इसलिए वह तीसरे स्थान पर रहा। इसलिए इस बार प्रदेश भर के टाइगर रिजर्व, सेंचुरी में से चुने गए 300 मास्टर ट्रेनर टाइगर रिजर्व, सेंचुरी के कोर एरिया में तैनात वनकर्मियों को ट्रेनिंग दें रहे हैं। ये वनकर्मी बाघों के नजदीक रहने के साथ ही उनकी गतिविधियां, अंग, निशान आदि की समझ रखते हैं। इससे बाघों की गणना में वास्तवित संख्या सामने आएगी। बाघों की संख्या का अनुमान लगाने वन विभाग ने वर्ष 2016 में 06 टाइगर रिजर्व और सेंचुरी की खुद गणना की। इसमें विभाग को 250 बाघों के कैमरा ट्रैप फोटो मिल चुके हैं। इनमें 1.5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे शामिल नही थे। बाघों की संख्या 350 से अधिक है। गणना के लिए प्रदेश को सात क्लस्टर में बांटा गया है। इनमें से पांच क्लस्टर पेंच, पन्ना, इंदौर, सतपुड़ा और कान्हा के मास्टर टे्रनर्स को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। बांधवगढ़ और कूनो के मास्टर ट्रेनर्स को ट्रेनिंग दी जानी है।
सहायक वन संरक्षक भोपाल रजनीश कुमार कहते हैं कि वर्ष 2018 में होने वाली बाघ गणना की तैयारी की जा रही है। हमें उम्मीद है कि प्रदेश इस बार बेहतर स्थान प्राप्त करेगा। वह कहते हैं कि मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिलाने के लिए वर्ष 2018 में होने वाली वन्य प्राणियों की गणना को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बताया जाता है कि प्रदेश में इस बार बाघों की गणना वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित 9 स्पेशल पैरामीटर्स के आधार पर की जाएगी। अगले साल होने वाली वन्यप्राणियों की गणना को लेकर वन विभाग ने अपने मैदानी अमले को ट्रेंड करने का प्लान तैयार कर लिया है। इसके मुताबिक पूरे प्रदेश के वन अफसरों व मैदानी अमले को वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए पैरामीटर्स और टेक्नीक का प्रयोग करने के लिए ट्रेंड किया जा रहा है। वन विभाग ने इसके लिए राज्य वन अनुसंधान के वैज्ञानिकों की मदद लेते हुए ट्रेनिंग प्रोग्राम तैयार कर लिए हैं।
ज्ञातव्य है कि वन विभाग ने पूरे तीन साल बाद स्वीकार किया है कि वर्ष 2013 में बाघों की गिनती में गलती हुई थी, इसीलिए कर्नाटका ने टाइगर स्टेट का दर्जा पा लिया। अब ऐसी गलती न हो, लिहाजा विभाग ने मैदानी अमले को 2018 में होने वाली गिनती के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। पन्ना टाइगर रिजर्व से इसकी शुरूआत हो चुकी है। वर्तमान में पेंच टाइगर रिजर्व में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
भारत सरकार चार साल में एक बार बाघों की गिनती कराती है। दिसंबर 2013 के बाद अब जनवरी 2018 में गिनती होना है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस बार हमें उम्मीद है कि हम अपना खोया सम्मान पा सकते हैं। इसके लिए सभी टाइगर रिजर्व में तकनीकी तैयारी चल रही है।
अपनी गलती से गवां दिया पिछली बार तमगा
वन विभाग ने पूरे तीन साल बाद स्वीकार किया है कि वर्ष 2013 में बाघों की गिनती में गलती हुई थी, इसीलिए कर्नाटका ने टाइगर स्टेट का दर्जा पा लिया। अब ऐसी गलती न हो, लिहाजा विभाग ने मैदानी अमले को 2018 में होने वाली गिनती के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। पन्ना टाइगर रिजर्व से इसकी शुरूआत हो चुकी है। वर्तमान में पेंच टाइगर रिजर्व में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। भारत सरकार चार साल में एक बार बाघों की गिनती कराती है। दिसंबर 2013 के बाद अब जनवरी 2018 में गिनती होना है। विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। सभी टाइगर रिजर्व के अलावा सामान्य वनमंडल के मैदानी कर्मचारियों को ट्रेनिंग में बताया जा रहा है कि गिनती के समय क्या सावधानियां बरती जाना हैं और किन परिस्थितियों की अनदेखी नहीं होना चाहिए। पिछली बार ये ही गड़बड़ी हुई थी, जिस कारण प्रदेश कर्नाटक से पीछे रह गया। वन अफसरों के मुताबिक 2013 में हुई गिनती में कर्मचारियों का सिर्फ पगमार्क पर फोकस था। इसलिए 286 बाघों की गिनती हो सकी थी। हालांकि ट्रैप कैमरे के फोटो और अन्य दस्तावेजों से प्रदेश में 308 बाघों की पुष्टि हुई थी। वहीं कर्नाटका के वन अमले ने 260 बाघ गिने थे पर वैज्ञानिक तरीके से तैयार दस्तावेजों से वहां 406 बाघों की पुष्टि हुई। यह आंकड़े भारत सरकार ने अप्रैल 2014 में जारी किए थे।
-बिन्दु माथुर