19-Jul-2017 08:21 AM
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सरकार ने दावा किया था कि जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवाकर लागू होने के बाद लोगों को कई तरह के टैक्स से मुक्ति मिलेगी और सामान सस्ते होंगे। लेकिन एक जुलाई से लागू हुआ जीएसटी उपभोक्ताओं के लिए परेशानी का सबब बन गया है। उपभोक्ताओं को जीएसटी अभी तक समझ में नहीं आया है और बाजार मेंं उसके साथ जमकर ठगी हो रही है। शॉपिंग मॉल हो या फिर किराने की दुकान हर जगह बिलों में हर सामान के लिए अलग-अलग जीएसटी देखकर लोग चकरा रहे हैं। आलम यह है कि कुछ लोग जब महीने के शुरू में पूरे माह का घरेलू सामान लेने पहुंचे तो उन्हें कई-कई मीटर का बिल थमा दिया गया। काफी परीक्षण के बाद भी लोगों को जीएसटी का फंडा समझ में नहीं आया और ठगा सा मुंह लेकर घर पहुंचे। जीएसटी का जंजाल इसी से समझ में आ सकता है कि इसके लागू होने के एक पखवाड़ा होने के बाद भी सरकार व्यापारियों और आमजन को इसका फंडा समझाने के लिए कार्यशाला आयोजित कर रही है। उधर व्यावसायी इस जंजाल का जमकर फायदा उठा रहे हैंं।
आलम यह है कि जीएसटी के लागू होने सड़कों, गलियों से लेकर मुख्य मार्गों तक में खुले छोटे से लेकर बड़े-बड़े रेस्टोरेंट के लिए जीएसटी वरदान बन गया है। पहले वैट और सर्विस चार्ज की राशि वसूलने वाले होटल- रेस्टोरेंट वाले सीधे-सीधे 18 प्रतिशत जीएसटी वसूल रहे हैं। इस वसूली का न तो कोई रिकॉर्ड है और न ही कोई जांच-पड़ताल का माध्यम। सारे के सारे लोग कच्चा बिल लेते हैं और नकद भुगतान करते हैं। केवल उन्हीं लोगों के भुगतान का रिकॉर्ड मिल सकता है जो कार्ड से पेमेंट करते हैं, लेकिन कार्ड से पेमेंट करने वालों की तादाद भी गिनी-चुनी होती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने इस खर्चे का हिसाब आयकर विभाग को नहीं देना चाहता है। लेकिन अब आयकर बचाने के चक्कर में लोग अपना 18 प्रतिशत का इनपुट गंवा रहे हैं और होटल- रेस्टोरेंट वाले 9 प्रतिशत सीजीएसटी और 9 प्रतिशत ईजीएसटी वसूल कर 18 प्रतिशत की यह रकम सीधे-सीधे अपनी जेब के हवाले कर रहे हैं।
जीएसटी के तहत सुविधा है कि किसी भी व्यक्ति ने यदि कोई टैक्स दिया है और वह भी टैक्स का चुकारा करता है तो दिए हुए टैक्स और चुकाए गए टैक्स का समायोजन हो सकता है। यानी कोई व्यक्ति किसी होटल में खाना खाता है या किसी को खाना खिलाता है तो यह खर्च वह अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान के खर्च में डाल सकता है। ऐसा व्यक्ति यदि 18 प्रतिशत टैक्स चुकाता है और अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में जो भी टैक्स वह ग्राहक से पाता है तो उसका समायोजन वह कर सकता है। इसे यूं समझा जाए कि यदि कोई व्यक्ति अपने व्यावसायिक काम के दौरान किसी होटल-रेस्टोरेंट में कुछ खाता है या किसी व्यक्ति को खिलाता है तो उसे उस खर्च में चुकाई गई जीएसटी की रकम इनपुट के रूप में वसूलने का अधिकार है, लेकिन रेस्टोरेंट द्वारा जो बिल ग्राहक को दिया जाता है उस पर उसका या उसके प्रतिष्ठान का नाम ही अंकित नहीं किया जाता है। इससे उसके द्वारा अदा की गई टैक्स की रकम उसके नाम पर नहीं चढ़ पाएगी और वह इस खर्च का समायोजन टैक्स में नहीं कर पाएगा।
किसी भी होटल या रेस्टोरेंट में आप जाते हैं तो वहां आपको कम्प्यूटर पर बनाया गया बिल दिया जाता है। बिल में बाकायदा टैक्स की रकम भी होती है, लेकिन यह बिल एक हफ्ते भी यदि फाइल में रखा जाए या जेब में रखा रह जाए तो सफेद कागज बन जाएगा, यानी उस पर अंकित शब्द का कोई रिकॉर्ड नजर नहीं आएगा। ऐसे में कोई भी व्यक्ति उक्त बिल के संदर्भ में न तो कोई कानूनी कार्रवाई कर सकता है और न ही इस बात को प्रमाणित कर सकता है कि किसी होटल या रेस्टोरेंट से उसे यह बिल मिला था। ऐसा बिल केवल किसी साधारण रेस्टोरेंट में नहीं, बल्कि बड़े-बड़े थ्री-फोर स्टार होटलों तक में दिए जा रहे हैं। अभी तक इस संदर्भ में किसी सरकारी विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की, इसलिए टैक्स हड़पने की प्रवृत्ति सारी होटलों में धड़ल्ले से जारी है। पहले इसका ताल्लुक किसी ग्राहक से नहीं होता था, लेकिन अब ग्राहकों को यदि अपने चुकाए गए टैक्स का इनपुट लेना है तो उसे साधारण कागज पर बना हुआ बिल लेना होगा, तभी वह बिल प्रमाण के रूप में काम आ सकेगा।
चार्टर्ड अकाउंटेंटों के पास भी अभी आधा-अधूरा ज्ञान है जीएसटी का। थोड़ा पढ़ते हैं।आधा समझते हैं। सवाल करो तो बिचकते हैंजीएसटी को लेकर ढेरों सवाल लोगों के मन में हैं- इसे किस तरह से लागू किया जाए, टैक्स कैसे लगाया जाए और इनपुट कैसे लिया जाए।किन-किन चीजों पर इनपुट लेने की सुविधा उपलब्ध है।कहां टैक्स लगेगा और वह कैसे कोई वसूलेगा, इस बात को लेकर चार्टर्ड अकाउंटेंटों के पास भी आधा-अधूरा ज्ञान है। बड़ी तादाद में चार्टर्ड अकाउंटेंट अपने लिए आयोजित सेमिनारों में जाते हैं, थोड़ा समझते हैं। फिर अपने आप से सवाल करने लगते हैं। जितना समझा वह अपने क्लाइंट्स को बताते हैं। लेकिन यदि कोई व्यक्ति सवाल कर ले तो कुछ लोग बिचकते हैं और कुछ लोग यह कहने में भी नहीं हिचकते हैं कि अभी यह समझना बाकी है। कई अखबारवालों और मीडिया के चैनलों ने चार्टर्ड अकाउंटेंटों को मेहमान बनाकर सवाल-जवाब भी परोसना शुरू कर दिए।लेकिन हर सवाल के जवाब में से एक सवाल निकलता है और उसका उत्तर कहीं पर भी, किसी को नहीं मिलता है।दरअसल जीएसटी अज्ञानता के कारण जबरदस्त हौवा बना हुआ है।लोग जीएसटी के खिलाफ कम हैं, लेकिन उसे लागू करने की पेंचीदगियों को लेकर डरे हुए हैं।यहां तक कि चार्टर्ड अकाउंटेंट भी जीएसटी को लेकर किए गए सजा के प्रावधानों से बेहद डरे हुए हैं। और जितना वे डरे हुए हैं उससे ज्यादा वे अपने क्लाइंटों को डरा रहे हैं। इस कारण आने वाले समय में और भी कई मुसीबतें सामने आ सकती हैं।
जीएसटी से बचने के लिए बैक डेट में माल बेच रहे व्यापारी
प्र्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीएसटी को व्यापारियों के लिए फायदा बता रहे हैं, वहीं व्यापारी उनकी इस अहम् योजना को पलीता लगा रहे हैं। व्यापारियों द्वारा एक ओर जीएसटी का विरोध किया जा रहा है वहीं दूसरी इससे बचने के लिए उन्होंने नया रास्ता निकाल लिया है। इन दिनों बाजारों में जो वस्तुओं की बिक्री की जा रही है वह बैक डेट के बिल बनाकर की जा रही है। हकीकत जानने के लिए राजधानी भोपाल में जब एक साइकिल स्टोर की पड़ताल की गई तो इस दुकान पर जीएसटी 12 प्रतिशत अतिरिक्त के बोर्ड व स्टीकर लगे थे। यहां मौजूद कर्मचारी ने अलग-अलग वस्तुओं की अलग-अलग कीमत बताई, जब इनके रेट पूछे गए तो उसने जीएसटी जोड़े बिना ही रेट बताए। जब कहा गया कि अब तो जीएसटी लागू हो गया है, उसका टैक्स भी जुड़ेगा तो कर्मचारी का कहना था कि आप तो सामान खरीद लीजिए हम आपको बैक डेट का बिल बनाकर देंगे, इसमें आपका फायदा है। सबूत के तौर पर हमने यहां से 1650 रुपए का सामान खरीदा और मुख्य काउंटर पर पहुंचे। यहां काउंटर पर ही जीएसटी 12 प्रतिशत का स्टीकर लगा था। यहां मौजूद दुकान संचालक ने पुरानी डेट का बिल हमारे कुछ कहने के पहले ही काट दिया।
7450 का बिल ...1341 टैक्स
एक ग्राहक ने इन्दौर के एमजी रोड स्थित होटल फोर सीजंस में खाना खाया, जिसका बिल 7450 रुपए आया। होटल मालिक ने सर्विस चार्ज के रूप में 5 प्रतिशत राशि 372 रुपए भी वसूली, इस तरह सर्विस चार्ज सहित बिल की रकम 7822 रुपए पर सीजीएसटी के रूप में 9 प्रतिशत 704 रुपए और एसजीएसटी के रूप में 9 प्रतिशत राशि 704 (कुल 1408 रुपए) का कर वसूल लिया। होटल ने यह बिल कम्प्यूटरीकृत कागज पर दिया। यह बिल उस चिकने कागज पर बनाया जाता है जिस पर अंकित शब्द स्वत: चंद दिनों बाद उड़ जाते हैं और कागज सफेद रह जाता है। कागज के सफेद हो जाने के बाद ग्राहक उस बिल को क्लेम नहीं कर पाएगा और यदि क्लेम करना भी चाहे तो इस बिल पर ग्राहक का नाम तक अंकित नहीं है। यानी जिएसटी के रूप में वसूला गया यह पूरा पैसा होटल वाला हड़प जाएगा।
जीएसटी में घटी गाडिय़ों की कीमत, पर वसूल रहे पुरानी दर पर टैक्स
1 जुलाई से जीएसटी लागू होने के बाद नए वाहनों की कीमतों में जबरदस्त गिरावट आई है। एक अनुमान के मुताबिक दोपहिया वाहनों पर डेढ़ हजार से लेकर 4 हजार रुपए तक कम हो गए हैं तो चार पहिया और बड़े वाहनों पर 25 हजार रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक कम हुए हैं। फायदा लेने के लिए अब शोरूम और डीलरों के यहां नए वाहनों की बिक्री में इजाफा होने लगा है। वाहन डीलर के यहां से जब व्यक्ति वाहन खरीदता है तो उसे जीएसटी लागू होने के बाद कम कीमत का फायदा तो मिलता है, लेकिन जब यही वाहन आरटीओ में रजिस्ट्रेशन के लिए जाता है तो वहां उसे छूट का फायदा नहीं देकर 1 जुलाई से पहले की ज्यादा कीमत पर ही टैक्स लगाया जाता है। जब वर्तमान कीमत का हवाला दिया जाता है तो रजिस्ट्रेशन विभाग के अधिकारियों का कहना होता है कि हमारे यहां साफ्टवेयर में वाहनों की जो कीमत है, उसी के हिसाब से टैक्स लिया जाएगा। इस पर पिछले 10 दिनों से विवाद की स्थिति निर्मित हो रही है, क्योंकि दोपहिया वाहनों पर 7 प्रतिशत टैक्स लिया जाता है और अगर वाहन की कीमत में 2 हजार रुपए की कमी आई है तो 140 रुपए टैक्स। यही नहीं, कारों के महंगे मॉडलों पर तो 50 हजार से लेकर 10 लाख रुपए तक की कमी आई है। नियमानुसार पेट्रोल वाहनों पर 7 तो डीजल वाहनों पर 9 प्रतिशत तक टैक्स देना होता है। ऐसे में अंतर की राशि लाखों रुपए में आ रही है और वाहन मालिक नई कीमत के हिसाब से ही टैक्स देने पर अड़े हुए हैं और जवाबदार अधिकारी मामला मुख्यालय स्तर पर हल होने की बात कह रहे हैं।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया