19-Jul-2017 07:57 AM
1234812
छत्तीसगढ़ हो या देश का कोई भी क्षेत्र वहां बेहतर जिंदगी और रोटी की चाह में नक्सलवाद बढ़ रहे है। नक्सलियों को माओ के विचार से कुछ लेना देना नहीं है। इस बात का खुलासा हाल ही में एक रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्सलवाद को लेकर अफवाहों का बाजार हमेशा गर्म रहता है। इस कारण नक्सली वारदातें करते हैं। इस बात को प्रदेश के अफसर भी कुछ हद तक मानते हैं। भारतीय पुलिस सेवा 1986 बैच के अफसर और नक्सल अभियान के पुलिस महानिदेशक दुर्गेश माधव अवस्थी का मानना है कि छत्तीसगढ़ में माओवाद की जड़ों को मजबूत करने में अफवाह तंत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। माओवादियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ की घटना होती है तो अफवाह तंत्र इस प्रचार में जुट जाता है कि सरकार का खुफिया तंत्र विफल था और बड़ी संख्या में जवानों की मौत हो गई है। जवान लापता हो गए हैं। माओवादी मोर्चे पर सरकार असफल है। अफवाह तंत्र में प्रशासनिक अफसर के अलावा माओवाद के नाम पर रोजी-रोटी कमाने वाले छुटभैये सक्रिय हैं।
अगर देखा जाए तो इन सबके अलावा कई अन्य कारण है जिसके कारण युवा नक्सली बन मौत के मुंह में जा रहे हैं। इनदिनों प्रदेश में नक्सल विरोधी अभियान प्रहार के कारण कई नक्सलियों को जान गंवानी पड़ी है। नक्सलियों के खिलाफ पुलिस ने पहली बार बारिश के पीक सीजन में ऑपरेशन बंद नहीं किया है। नक्सलियों का गढ़ और उनके छिपने के लिए सबसे सुरक्षित माने जाने वाली जगहों में घुसकर फोर्स अभियान चला रहा है। इससे नक्सली खेमे में खलबली मची है। ज्यादातर बड़े नेता अंडरग्राउंड हो गए हैं। इसी बीच इनपुट मिला है कि पुलिस फायरिंग में घायल मोस्ट वांटेड नक्सली कमांडर माड़वी हिड़मा फोर्स के राडार से गायब है। पुलिस के जासूसों को उसका कोई लोकेशन नहीं मिल पा रहा है। हालांकि पुलिस की गोली से जख्मी होने के बाद वह जंगल में रोज अपनी लोकेशन बदल रहे थे।
खुफिया दस्ते को उसके हर मूवमेंट की जानकारी थी। तीन दिन से अचानक वह गायब है। संकेत मिल रहे हैं घायल हिड़मा इलाज करवाने बाइक से तेलंगाना भाग निकला है। जंगल में फोर्स के लगातार मूवमेंट के कारण हिड़मा का इलाज बेहतर तरीके से नहीं हो पा रहा था। पुलिस की घेरेबंदी के कारण जख्मी होने के बावजूद उसे रोज अपना मूवमेंट बदलना पड़ रहा था। पुलिस के आला अफसरों का मानना है कि इलाज में दिक्कत होने के कारण उसे तेलंगाना भागना पड़ा। हालांकि हिड़मा वहां भी हाई रिस्क में है। उसका फोटो वायरल होने के बाद से लोग उसे पहचानने लगे हैं। दो साल पहले तक हिड़मा बेफिक्री से बाइक में बैठकर तेलंगाना आता-जाता था। वहां उसे कोई नहीं पहचानता था। फोटो वायरल होने के बाद से उसने वहां आना-जाना बंद कर दिया था। पुलिस अफसरों को संकेत हैं कि इलाज के लिए कोई विकल्प नहीं होने के कारण वह जोखिम उठाकर वहां भागा है। फोर्स को खुफिया विंग से हिड़मा की बटालियन का लोकेशन तो मिल रहा है, लेकिन उसमें कमांडर हिड़मा नहीं है। इससे यह पुख्ता संकेत हैं कि वह अभी बस्तर के जंगलों में नहीं है। गौरतलब है कि हिड़मा ऑपरेशन प्रहार के दौरान पुलिस फायरिंग में घायल हो गया था। माड़वी हिड़मा को फायरिंग में गोली कहां लगी है? यह स्पष्ट नहीं हो रहा है। एक चर्चा के अनुसार उसके पेट में गोली लगी है। एक खबर है कि उसके पैर को छेदकर गोली पार हुई है। बेहतर इलाज नहीं होने के कारण उसे इंफेक्शन हो गया है और खतरा बढ़ता जा रहा है। मोस्ट वांटेड नक्सली नेता और एक तरह से छत्तीसगढ़ में मावोआद की कमान संभाल रहा रामान्ना अभी भी जंगलों में छिपा है। उसका लोकेशन भी पुलिस के खुफिया दस्ते की नजर में है।
घने जंगलों में फोर्स की एंट्री के बाद नक्सलियों को अपना अस्थायी अस्पताल तक बदलना पड़ गया है। नक्सलियों ने सुकमा के ऐतराजमाड़ के करीब सिंघन मड़कू की पहाडिय़ों के बीच तालाब के किनारे अस्पताल बनाया था। अस्पताल की आधी छत टिन के शेड की और आधी खपरैलपोश थी। फोर्स की घुसपैठ के कारण अस्थायी अस्पताल भी वहां से हटा दिया गया है। अभी करईपुंडम के जंगलों में अस्पताल चलाया जा रहा है। तीन दिन पहले तक वहीं घायलों का इलाज किया जाता रहा है। नक्सली अपना सीआईडी तंत्र फेल होने से बौखला गए हैं। नक्सलियों के अलग-अलग संगठन चेतना नाट्य मंच, किसान मजदूर संघ, महिला संगठन और छात्र ईकाई नवयुवक मित्र मंडल के जरिये गांव-गांव में बैठक ली जा रही है। यह पता लगाया जा रहा है कि ऑपरेशन प्रहार के दौरान जंगल में घुसी फोर्स का लोकेशन उन्हें कैसे नहीं मिला। नक्सलियों का खुफिया नेटवर्क इस तरह फैला है कि पुलिस तो दूर गांव या जंगल में कोई भी अनजान या नया व्यक्ति नजर आने पर नक्सलियों को सूचना दे दी जाती है, लेकिन ऑपरेशन प्रहार के लिए फोर्स जब जंगल में घुसी तो उन्हें कैसे खबर नहीं हुई? गांव वालों से इस बारे में जानकारी ली जा रही है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला