02-May-2017 07:48 AM
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भाजपा के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी का कथन अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगाÓ अब सच दिखने लगा है। हालांकि जब अटल जी यह भाषण दे रहे थे तब भाजपा केंद्र की सत्ता में दूर-दूर तक कहीं नहीं थी। भाजपा को अपनी स्थापना के बाद पहली बार सत्ता में आने के लिए सोलह वर्ष का इन्तजार करना पड़ा था, लेकिन अब देश के सत्रह राज्यों में भाजपा और इसके गठबंधन की सरकारें हैं। तेरह राज्यों में अकेले भाजपा की सरकार है। देश के 58 फीसदी भूभाग पर भाजपा की सत्ता है। लेकिन इतने के बावजूद भी भाजपा खुशफहमी में नहीं है। इसका नजारा ओडिसा के भुवनेश्वर में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में देखने को मिला।
इस बार बैठक देश के पूरब छोर पर स्थित ओडिसा के भुवनेश्वर में हुई। इस कार्यकारिणी बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अभी यह भाजपा का स्वर्ण काल नहीं है। उनका आशय यह था देश के हर राज्य में हर स्तर तक भाजपा की सरकार बनाना उनका लक्ष्य है। अभी की स्थिति में अगर देखें तो निर्विवाद रूप से भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा को इन तमाम उपलब्धियों के करीब ले जाने में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रिय छवि वाले नेतृत्व और अमित शाह के कुशल संगठन की बड़ी भूमिका है। लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में अमित शाह द्वारा जताई गयी मंशा साफ संकेत करती है कि अभी वे इतने भर से संतुष्ट नहीं है बल्कि भाजपा के विस्तार के लिए वो परिश्रम की पराकाष्ठा तक जाएंगे। खैर, वर्तमान भाजपा को समझने के लिए हमें अतीत की भाजपा पर एक संक्षिप्त नजर डालनी होगी। भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए पूरब के छोर पर स्थित ओडि़सा को चुना। बीस साल बाद भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ओडि़सा में हुई है। इन बीस वर्षों में भारतीय राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका है। सियासत के सारे समीकरण नए ढंग से परिभाषित होने लगे हैं।
आज अगर अमित शाह कार्यकर्ताओं को यह सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं कि यह अभी भाजपा का सर्वश्रेष्ठ नहीं है, तो उनकी नजर उन राज्यों पर है जहां भाजपा को मजबूत करना है और सरकार में लाना है। गौरतलब है कि अमित शाह ने यह बयान ओडि़सा में दिया है। ओडिसा और पश्चिम बंगाल सीमावर्ती राज्य हैं। ओडिसा में अभी हाल में हुए एक लोकल निकाय चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली है तो वहीं पश्चिम बंगाल के कांठी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी को पछाड़कर दूसरे पायदान पर जगह बना ली है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांठी सीट पर भाजपा को 9 फीसदी वोट मिले थे जो
अब 30 फीसदी है। यह भाजपा के लिए
उत्साह जनक परिणाम है। ओडि़सा में विधानसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा की आशाएं प्रबल हैं।
अगर आगामी चुनावों में भाजपा ओडि़सा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अच्छा कर पाती है तो यह भाजपा को उसी स्वर्णकाल की तरफ ले जाएगा, जिस लक्ष्य को अमित शाह साधे हुए बैठे हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने तुष्टिकरण की जो छिछली सियासत की हदें पार की हैं, उससे तो भाजपा एक बेहतर विकल्प के रूप में वहां नजर आ रही है। ओडि़सा में भी अब भाजपा को ही लोग विकल्प के रूप में स्वीकार करने लगे हैं, ऐसा पिछले लोकल स्तर के चुनावों से स्पष्ट हो रहा है। भाजपा की नजर दक्षिण राज्यों में भी है। कर्नाटक में तो भाजपा 2008 में आ चुकी है लेकिन केरल और तमिलनाडु अभी भी भाजपा की पहुंच से बाहर हैं। हालांकि केरल में भाजपा के मतों में जिस ढंग से इजाफा हो रहा है और वहां कम्युनिस्टों द्वारा भाजपा एवं संघ कार्यकर्ताओं पर बर्बर हिंसा की जा रही है, वह भाजपा के मजबूत होते जनाधार का द्योतक है।
अमित शाह एक कुशल और दूरगामी सोच रखने वाले संगठनकर्ता हैं। नरेंद्र मोदी एक परफॉर्मर प्रधानमंत्री के रूप में अपनी नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने और देश की जनता से नियमित संवाद करने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बन चुके हैं। वैसे मोदी और शाह की जोड़ी अगर उन राज्यों में भी भाजपा की भगवा पताका फहरा दे तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि इसी जोड़ी ने 2014 के बाद उन जगहों पर भाजपा के जनाधार को मजबूत किया है, जहां कोई कल्पना भी नहीं करता था।
राजनीतिक पंडितों के लिए जो अकल्पनीय है, वो मोदी और शाह के लक्ष्य बिंदु हैं। और, उन लक्ष्यों को लगातार भाजपा हासिल भी करती जा रही है। आमतौर पर किसी भी सरकार के तीन साल बाद लोकप्रियता कम होती है लेकिन मोदी इस मामले में भी परंपरागत धारणाओं को धता साबित करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में अमित शाह अगर कहते हैं कि यह भाजपा का अभी स्वर्णकाल नहीं है तो उनके लक्ष्यों का सहज अंदाजा लगाते हुए यह मान लेना चाहिए कि अभी भाजपा और मजबूत होने वाली है। भगवा पताका का विस्तार अभी और बड़ा होने वाला है। अमित शाह संगठन और चुनावी रणनीति में इतने माहिर हो गए हैं कि उनका हर दांव निशाने पर लग रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनावी रणनीति को लेकर अमित शाह की पीठ थपथपाई है। आज भाजपा के नेता ही नहीं बल्कि विपक्षी भी मानते हैं कि शाह की रणनीति का तोड़ फिलहाल किसी दल में नहीं है।
जोड़-तोड़कर अपना कुनबा बड़ा करने की रणनीति
उत्तराखंड से यूपी, यूपी से गोवा, गोवा से मणिपुर और अब दिल्ली। भाजपा के सत्ता के रथ मे दूसरी पार्टी के नेताओं की सवारी लगातार नजर आ रही है। कहीं चुनाव से पहले, कहीं चुनाव के मौके पर, कहीं चुनाव के बाद। भाजपा में दूसरी पार्टियों से शामिल होने की होड़ लगातार नेताओं में देखी जा सकती है। चाहे वह नेता अपनी पार्टी में कितना ही बड़ा क्यों ना हो। नेताओं को अब अपना भविष्य भाजपा में सुरक्षित दिखता है। दूसरा भाजपा या यह कहें कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति दूसरी पार्टी के कद्दावर नेताओं को भाजपा में शामिल करवाने के पीछे यह भी है कि, जो भी नेता दूसरी पार्टी से आएगा वो कुछ न कुछ वोट अपने साथ लाएगा, क्योंकि उनका व्यक्तिगत वोट बैंक भी होता है। जिससे पार्टी में वोट बढ़ेंगे ही और एक मैसेज यह भी जाएगा कि, हारने वाली पार्टी को ही अकसर नेता छोड़ते हैं। वह जीतने वाले की तरफ जाते हैं तो नेताओं के आने से जनता को यह लगेगा कि भाजपा जीतने वाली पार्टी है और भविष्य भी इसी का है। हालांकि विपक्ष इस तरीके से भाजपा में शामिल करवाने की रणनीति को ठीक ना मानते हुए उसे कटघरे में खड़ा कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि भाजपा ऐसे नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवा रही है जिनको लेकर पहले वह कई तरह के आरोप जिनमें भ्रष्टाचार के आरोप भी शामिल हैं, लगाती रही है और खुद भ्रष्टाचार मुक्त की बातें करती है। इसे कहीं ना कहीं भाजपा में भी आतुरता दिखती है। भाजपा कितनी बड़ी-बड़ी बातें करे कि वह बहुत बड़ी और मजबूत पार्टी है, उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ी है, लेकिन दूसरी पार्टी के नेताओं के सहारे वह चुनाव जीतना चाहती है।
भाजपा के भविष्य को लेकर अभी बहुत कुछ करना है
दस वर्ष के वनवास के बाद वर्ष 2014 भारतीय जनता पार्टी के लिए संजीवनी बनकर आया और लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का जादू चला और उत्तर प्रदेश में अमित शाह ने करिश्माई परिणाम दिए। लिहाजा आज फिर भाजपा सत्ता में है। भाजपा का दारोमोदार दूसरी पीढ़ी के नेताओं के हाथ में है। देश में प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार चल रही है। ऐसे में अगर वर्तमान नेतृत्व अभी इतने से भी संतुष्ट नहीं है तो इसका साफ मतलब है कि उसे भाजपा के भविष्य को लेकर अभी बहुत कुछ करना है। अमित शाह और नरेंद्र मोदी की कार्य प्रणाली को जो लोग करीब से जानते हैं, वो इनके परिश्रम क्षमता को अवश्य जानते होंगे। दूरगामी सोच और कठोर अनुशासन इनके कार्य पद्धति का हिस्सा है। दोनों ही एक सामान्य कार्यकर्ता से शुरू करके सर्वोच्चता तक पहुंचे हैं। संगठन की बुनियादी समझ के मामले में दोनों ही निपुण हैं। इससे उम्मीद है कि आगामी दिनों में भाजपा और राज्यों में अपनी सरकार बनाने में सफल होगी।
-ऋतेन्द्र माथुर