कांग्रेस में भगदड़ क्यों मची है भाई!
02-May-2017 07:39 AM 1234836
एक समय था कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी हुआ करती थी, लेकिन आज भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी पार्टी की स्थिति क्षेत्रिय दलों से भी बदतर हो गई है। आलम यह है कि कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान जमकर सत्ता सुख भोगने वाले नेता भी पलायन कर रहे हैं। लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी छोडऩे का जो सिलसिला चल पड़ा है वो रुकने का नाम नहीं ले रहा है। हालत ये है कि कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े वफादार नेता भी एक-एक कर आज पार्टी से मुंह मोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और उसके बाद सोनिया गांधी के साथ काम कर चुके नेताओं को कम उम्र राहुल गांधी का संगठन में हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं हो रहा है। सोनिया गांधी इस बात को समझ रही हैं, लेकिन वे फैसले की स्थिति में नहीं हैं। इस कारण कांग्रेस में भगदड़ रूकने का नाम नहीं ले रही है। दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस की नेता बरखा शुक्ला सिंह ने ये कहते हुए कांग्रेस पार्टी छोड़ दी है कि राहुल गांधी मानसिक रूप से नेतृत्व के योग्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली में पार्टी की कमान संभाल रहे अजय माकन की बदसलूकी की शिकायत एक साल पहले ही पार्टी नेतृत्व से की थी। बीच-बीच में कई रिमाइंडर भी दिए, लेकिन आलाकमान कान में तेल डालकर सोया हुआ है। दरअसल बरखा शुक्ला सिंह की पीड़ा पार्टी के भीतर उनकी आवाज नहीं सुने जाने को लेकर है। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी इस बात को तवज्जो नहीं दी। वो शायद अब भी अनुशासन की परिधि में ही देख रहा है और सबक सीखने को तैयार नहीं। कुछ दिन पहले ही दिल्ली कांग्रेस के कद्दावर नेता अरविंदर सिंह लवली का पार्टी छोडऩा भी पार्टी के लिए बड़ा झटका रहा है। दिल्ली में कांग्रेस छोडऩे वाले अरविंदर सिंह लवली ने कहा है कि पार्टी आलाकमान चीजों को ठीक करने में रूचि नहीं ले रहा है। अभी कांग्रेस आलाकमान का सीधा मतलब राहुल गांधी हैं। कांग्रेस छोडऩे वाले लवली हों या कांग्रेस में रह कर नेतृत्व पर सवाल उठाने वाली शीला दीक्षित हों या एके वालिया हों, सब बहुत होशियारी से अजय माकन पर हमला कर रहे हैं। लेकिन उनका असली निशाना राहुल गांधी हैं, जिन्होंने असीमित शक्ति देकर माकन को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। लवली के साथ युवा कांग्रेस अध्यक्ष अमित मलिक ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है। वहीं निगम चुनावों में दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित ने भी पार्टी के चुनाव प्रचार से किनारा कर लिया है। उन्होंने तो साफ तौर पर प्रदेश नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठाए हैं। शीला दीक्षित ने कहा वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष का नेताओं के साथ तालमेल अच्छा नहीं है। इसी कारण लोग पार्टी छोड़ रहे हैं। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही दिल्ली विधानसभा में पूर्व उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता अमरीश सिंह गौतम अपने पुत्र अविनाश गौतम और बड़ी संख्या में समर्थकों सहित भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने भी कहा कि कांग्रेस में उन्हें घुटन महसूस हो रही थी। दिल्ली की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस नेताओं ने राहुल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कांग्रेस के एमएलसी दिनेश प्रताप और प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने राहुल गांधी पर हमला किया और कहा कि उनकी कमान में पार्टी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई है। प्रदेश की राजनीति में यह स्थिति है कि कांग्रेस के महज सात विधायक जीते हैं, लेकिन उन्हीं का नेता बनने के लिए होड़ मची है। प्रमोद तिवारी अपनी बेटी अराधना मिश्रा को विधायक दल का नेता बनाना चाहते हैं और इस चक्कर में उनके समर्थक आलाकमान के निर्देश की अनदेखी कर रहे हैं। बीते मार्च में कर्नाटक के कद्दावर नेता और पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन कर ली है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आज इस स्थिति में पहुंच गई है कि उसे बड़ा बदलाव करना आवश्यक हो गया है, लेकिन पार्टी के आलाकमान इसके लिए बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा पार्टी के बड़े नेता और पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच कोई संपर्क ही नहीं है। उधर गोवा में सरकार बनाने में नाकाम रहने पर कांग्रेस के विश्वजीत राणे ने तो नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर पार्टी छोड़ दी। इसी तरह कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए बीरेन सिंह आज मणिपुर के सीएम बन गए हैं। इससे पहले उत्तराखंड में विजय बहुगुणा और उत्तर प्रदेश में रीता बहुगुणा जोशी जैसी कद्दावर नेताओं ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था। जाहिर है पार्टी नेतृत्व की नाकामी कांग्रेस के लिए संकट पैदा कर रहा है। पार्टी नेतृत्व के प्रति 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले ही शुरू हो गया था जब हरियाणा में बीरेन्द्र सिंह, तमिलनाडु में जी.के. वासन, जयंती नटराजन ओडिशा में गोमांगो, आंध्रप्रदेश के के.एस. राव, आर. सम्बाशिवा राव, किरण रेड्डी, जगन रेड्डी और दिवंगत एन.टी. रामाराव की बेटी पुरंदेश्वरी ने भी कांग्रेस छोड़ दी थी। उत्तर प्रदेश में जगदम्बिका पाल और उत्तराखंड में सतपाल महाराज जैसे नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी थी। दिल्ली में कृष्णा तीरथ, महाराष्ट्र में दत्ता मेघे, पंजाब में जगमीत सिंह बराड़, हरियाणा में अवतार सिंह भडाना और जम्मू-कश्मीर में मंगत राम शर्मा जैसे नेताओं ने भी पार्टी छोड़ दी थी। सबसे चौंकाने वाला नाम पूर्व केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का था जिन्होंने कांग्रेस छोडऩे के बाद कहा कि वो पिछले दो साल में घुटन महसूस कर रहे थे।  बहरहाल किसी ने नेतृत्व की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए पार्टी छोड़ी तो किसी ने पार्टी में आमूल-चूल परिवर्तन की मांग रखी। जाहिर है कांग्रेस इस समय अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है दिग्गज नेताओं का इस मुश्किल घड़ी में एक-एक कर हाथ छोड़कर जाना पार्टी के लिए किसी बड़े संकट का संकेत तो नहीं है? कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मान रहे है कि नेतृत्व को लेकर कुछ सवाल हैं लेकिन उनका कहना है कि राहुल की छवि बिगाडऩे का काम बहुत सुनियोजित तरीके से भाजपा करा रही है। कांग्रेस छोडऩे वाले सभी नेता भाजपा की योजना के तहत ही राहुल को निशाना बनाते हैं। उधर, खबर है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की ओर से राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाए जाने के प्रस्ताव को राहुल गांधी ने अस्वीकार कर दिया है। लेकिन इसका कारण हर कोई जानना चाहता है कि क्यों राहुल खुद अध्यक्ष की कुर्सी ठुकरा रहे हैं? ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल को देर से ही सही इस बात का भान हो गया है की पार्टी में भगदड़ उन्हीं के कारण मची हुई है। ऐसे में क्या सोनिया अपनी जगह किसी सर्वमान्य नेता को पार्टी की कमान सौंपने का साहस दिखा पाएंगी? कांग्रेस में अब राहुल बन रहे मुद्दा! कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ कांग्रेस के अंदर शोर बढ़ रहा है। कांग्रेस छोड़ते समय असम के नेता हिमंता बिस्वा सरमा ने जो आरोप लगाए थे, वैसे आरोप लगाने वालों की संख्या बहुत बढ़ गई है। कांग्रेस के नेता खासतौर से राहुल की टीम के युवा नेता इस बात से परेशान हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संसद सत्र के दौरान पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की थी और उसमें इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी कि पार्टी के भीतर बागी हो रहे नेताओं को कैसे रोकें। इसका कोई फार्मूला कांग्रेसी नेताओं को नहीं सूझ रहा है। कांग्रेस छोडऩे वाले नेताओं की बयानबाजी से यह माहौल बन रहा है कि राहुल गांधी कांग्रेस को नहीं संभाल सकते हैं। इससे सोनिया गांधी भी चिंतित बताई जा रही हैं। गोवा में कांग्रेस छोडऩे वाले पूर्व मंत्री विश्वजीत राणे ने राहुल पर हमला करते हुए कहा कि अगर राहुल गांधी राजनीति में इंटरेस्टेड नहीं हैं तो उनकी वजह से मैं अपना कैरियर क्यों खराब करूं। उनके इस बयान से यह मैसेज गया कि अगर किसी युवा को अपना राजनीतिक कैरियर बनाना है तो राहुल के नेतृत्व में यह संभव नहीं है। वाफादारों ने छोड़ी कांग्रेस आलम यह है की जो नेता कभी कांग्रेस के वफादार हुआ करते थे वे लगातार पार्टी छोड़ रहे हैं। जून 2016 में कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं गुरुदास कामत और अजीत जोगी ने पार्टी इसलिए छोड़ दी कि वे पार्टी के वर्तमान नेतृत्व से निराश हो गए थे। गुरुदास कामत ने तो पार्टी छोडऩे से पहले कांग्रेस नेतृत्व को कम से कम 10 बार पत्र लिखे थे। वहीं पार्टी छोडऩे के बाद अजित जोगी ने कहा अब मैं आजाद हो गया हूं। छत्तीसगढ़ के फैसले अब दिल्ली में नहीं लिए जाएंगे। जाहिर है पार्टी नेतृत्व के प्रति कितनी भारी नाराजगी रही होगी। इतना ही नहीं 2016 में ही त्रिपुरा में कांग्रेस के 6 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। - रजनीकांत पारे
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