मंत्रियों का दर्द जाने कौन?
02-May-2017 07:31 AM 1234804
इन दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निशाने पर मंत्री हैं। मुख्यमंत्री का गुस्सा लाजमी है क्योंकि हाल ही में धार जिले के मोहनखेड़ा में संपन्न प्रदेश कार्यसमिति की बैठक हो या कोई अन्य महत्वपूर्ण बैठक प्रदेश के कई मंत्री इनमें गैर हाजिर रहते हैं। नेताओं की गैरहाजिरी पर आजकल भाजपा का हर नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैली में गुस्सा कर रहा है। संसद में सांसदों की कम उपस्थिति पर पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने भाजपा संसदीय दल की बैठक में अपने सांसदों को खूब हड़काया था। धार में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में वैसे ही तेवर मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने दिखाए। कार्य समिति की बैठक के समापन के मौके पर मुख्यमंत्री ने अपने ही मंत्रियों पर खूब भड़ास निकाली। गैरहाजिरी के लिए इस्तीफा देने तक की सलाह दे डाली। फिर मोदी का ही उदाहरण दिया कि कैसे ओड़ीशा में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिन चली बैठक में अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद प्रधानमंत्री पूरे समय मौजूद थे। उन्होंने अपना उल्लेख भी किया कि लू की चपेट में आ जाने और बुखार से ग्रस्त होने के बावजूद वे दोनों दिन कार्यसमिति की बैठक में मौजूद रहे। बैठक के पहले दिन जहां कुछ मंत्री नदारद थे तो कुछ शाम को रफूचक्कर हो गए। इस पर मुख्यमंत्री ने मंत्रियों को खरी-खोटी तो सुना दी, लेकिन क्या कभी मंत्रियों का दर्द जानने की कोशिश की है? दरअसल मप्र में अधिकांश मंत्री ऐसे हैं जिनकी उनके विभाग के अफसर ही नहीं सुनते।  कई विभागों में स्थिति तो यह है कि मंत्री अधिकारी से मुलाकात करने के लिए घंटों बैठे रहते हैं और अधिकारी व्यवस्तता दिखाकर मंत्री से मुलाकात तक नहीं करते। मंत्रियों ने अपनी व्यथा संघ, संगठन और मुख्यमंत्री से कई बार बताई है, लेकिन उनकी व्यथा दूर करने का प्रयास कभी नहीं हुआ। सरकार में महत्व नहीं मिलने से अधिकांश मंत्री अपने अन्य काम धंधों में लग गए हैं। ऐसे में बैठकों में मंत्रियों का नदारद रहना कोई बड़ी बात नहीं है। सरकार, संघ और भाजपा संगठन को मंत्रियों की समस्याओं को भी सुनना होगा और उनका समाधान करना होगा। वर्ना इसी तरह मंत्री बैठकों से गायब रहेंगे। हालांकि प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में अनुपस्थित रहने पर कई मंत्रियों ने सफाई दी कि वे पहले से इजाजत लेकर गैरहाजिर थे। जयंत मलैया ने अपना चेकअप कराना कारण बताया तो ललिता यादव ने भी जरूरी काम का बहाना पेश कर दिया। गोपाल भार्गव ने संगठन मंत्री से दूसरे दिन की छुट्टी स्वीकृत कराने की दलील दी तो जयभान सिंह पवैया ने भी स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की आड़ ले ली। चौहान की नाराजगी पर संस्कृति राज्यमंत्री सुरेंद्र पटवा ने अपनी लाचारी बता दी कि उनके घर मेहमान आए थे। 568 सदस्यों की कार्यसमिति में से महज 230 के पहुंचने की ही सूचना थी। पार्टी के सूबेदार नंदकुमार सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री की नाराजगी देख गैरहाजिर नेताओं से जवाब-तलब करने की बात कह दी। गायब रहने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर भी थे। एक तरफ भाजपा प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बनाने की रणनीति पर काम कर रही है वहीं दूसरी तरफ मंत्रियों की प्रदेश कार्य समिति की बैठक में अनुपस्थिति चिंता का विषय जरूर है। तभी तो अभी हाल ही में कैबिनेट बैठक के दौरान भी मुख्यमंत्री की तल्खी दिखाई दी। मंत्रालय में शिवराज ने मंत्रियों के साथ बंद कमरे में आधा घंटे बैठक की। उन्होंने कहा कि मंत्री सप्ताह में तीन दिन अनिवार्य रूप से ग्रामोदय अभियान में जाएं। 31 मई को सभी प्रभार के जिलों में अभियान की समीक्षा करें। इस पर खेल एवं युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने कहा कि अफसर सुनते ही नहीं हैं। इस पर मुख्यमंत्री बोले- वे बिल्कुल सुनेंगे, आपको काम करवाना पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने अपनी तल्खी तो दिखा दी, लेकिन मंत्री उन अफसरों से किस तरह काम करवाएं जो उनकी सुनते ही नहीं हैं। ऐसे में मंत्रियों के सामने विकट स्थिति निर्मित हो गई है। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शिवराज के सख्त तेवरों पर पार्टी के भीतर खासी प्रतिक्रिया हुई है, लेकिन अनुशासन की बंदिश की वजह से लोग बोल नहीं रहे हैं। एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि शिवराज सिंह नरेंद्र मोदी बनना चाहते हैं। वे हर काम में मोदी की नकल कर रहे हैं। कार्यसमिति की बैठक में भी उन्होंने जो कुछ कहा वह भी मोदी की नकल ही है, लेकिन अपने मंत्रियों पर नकेल कसने से पहले मुख्यमंत्री अफसरों पर तो नकेल कसें। संगठन के कमजोर होने से चिंतित हैं मुख्यमंत्री अफसरों तक को कभी चेतावनी न देने वाले मुख्यमंत्री का आक्रामक अंदाज बड़ा संदेश है। इसके दो मायने हैं। पहला-संगठन को सत्ता से ऊपर स्थापित करना। दूसरा-मंत्रियों और बड़े नेताओं को चुनाव के पहले उनकी जमीन दिखाना। दरअसल भाजपा की सत्ता तो मजबूत हुई, पर संगठन लगातार कमजोर हो रहा है। पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का मामला उठता रहा है। पार्टी पिछले चौदह साल से सत्ता में है। इन चौदह सालों में साल दर साल कार्यकर्ता कमजोर होता गया। भाजपा का भी कांग्रेसीकरण हो रहा है। कांग्रेसीकरण यानी सत्ता और संगठन में दूरी। इससे मुख्यमंत्री चिंतित हैं और मंत्रियों से अनुनय विनय के बाद अब वे तल्खी से निपटने के मूड में है। नंदकुमार सिंह चौहान की आखिर कार्यसमिति बैठक मोहनखेड़ा में सम्पन्न प्रदेश कार्यसमिति की बैठक प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान की आखिरी कार्यसमिति की बैठक थी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नए जोड़ीदार के साथ लड़ेंगे। वैसे देखा जाए तो नंदकुमार सिंह चौहान का कार्यकाल कोई उल्लेखनीय नहीं रहा। कई बार अपनों को भी घेरते नजर आए। उनका कार्यकाल काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। वे बस मुख्यमंत्री शिवराज ङ्क्षसह चौहान की छाया बनकर काम करते रहे। नंदकुमार सिंह चौहान कहते हैं कि मैंने कभी पद और प्रतिष्ठा के लिए काम नहीं किया। संगठन ने मुझे अभी तक जो जिम्मेदारी दी है उसे पूरी निष्ठा के साथ निभाया है। आगामी दिनों में भी मुझे जो जिम्मेदारी मिलेगी उसे निभाऊंगा। वह कहते हैं कि भाजपा की प्रदेश में चौथी बार सरकार बने और केंद्र सहित अन्य राज्यों में भाजपा का परचम आगे भी लहराएं इसके लिए संगठन के साथ मिलकर काम करूंगा। स्टंट किस लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनों पर ही नहीं बल्कि विपक्ष पर भी आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए हैं। उन्होंने सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पर कई आरोप लगाए हैं। उन्होंने अभी हाल ही में कहा है कि ज्योतिरादित्य चोरी-छिपे ट्रस्ट की जमीनें बेची है और कब्जाई है। इस पर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि पिछले 14 साल से प्रदेश में भाजपा की सरकार है। खुद शिवराज 11 साल से मुख्यमंत्री हैं ऐसे में उन्होंने इस मामले की जांच क्यों नहीं कराई। अगर सिंधिया दोषी हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री केवल चुनावी  स्टंट कर रहे हैं। अब विधानसभा चुनाव करीब आ रहे है। कहीं इस कारण तो मुख्यमंत्री जुमले छोड़कर कांग्रेस की फजीहत करने का उपक्रम तो नहीं कर रहे हैं। - श्यामसिंह सिकरवार
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