02-May-2017 07:25 AM
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मप्र में एक तरफ भाजपा ने लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लिए चौसर बिछानी शुरू कर दी है, वहीं कांग्रेस अभी तक अपना सेनापति तय नहीं कर पाई है। दरअसल पार्टी में सेनापति बनने के लिए दिग्गिज नेताओं में सिर फुटव्व्ल मची हुई है। इससे आलाकमान भी असमंजस में फंसा हुआ है। आलाकमान चाहता है कि सर्वसम्मति से कोई नाम तय हो। लेकिन ऐसी स्थिति बनती न देख अब चुनाव ही एकमात्र रास्ता नजर आ रहा है। अगर चुनावी प्रक्रिया से प्रदेश का सेनापति तय होगा तो इसके लिए अक्टूबर तक इंतजार करना होगा। ऐसे में कांग्रेस अपने मिशन 2018 में दिन पर दिन पिछड़ती जाएगी।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में कांग्रेस पिछले 13 साल से अधिक समय से सत्ता से दूर है। इसकी वजह है पार्टी के दिग्गज नेताओं की निष्क्रियता। दिग्गज नेता केवल चुनाव के समय ही नजर आते हैं। ऐसे में पार्टी पूरी तरह बिखर चुकी है। इस बिखरी हुई पार्टी को एकजुट करने के लिए एक दमदार नेता की जरूरत है। इसके लिए कभी कमलनाथ तो कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सामने आता है। पिछले दो सालों से बस कयासों का दौर चल रहा है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव जैसे-तैसे पार्टी संगठन को चला रहे हैं। ऐसे में पार्टी भाजपा के मुकाबले दिन पर दिन कमजोर होती जा रही है। अब उम्मीद की जा रही है कि अक्टूबर माह में निर्वाचन प्रक्रिया के बाद पार्टी को सर्वमान्य सेनापति मिल जाएगा। हालांकि कांग्रेस में भी भाजपा की तरह निर्वाचन की औपचारिकता ही की जाएगी। नए प्रदेशाध्यक्ष के लिए जो नाम पार्टी आलाकमान तय करेगा उसे प्रदेश संगठन की बागडोर सौंप दी जाएगी। फिर भी चुनाव प्रक्रिया शुरू हो रही है। इसके तहत 15 मई तक सदस्यता का काम पूरा हो जाएगा और जिला कमेटियां 30 मई को सदस्यता सूचियों का प्रकाशन कर देगी। इनके आधार पर ही संगठन पदाधिकारियों के चुनाव होंगे।
कांग्रेस के संगठनात्मक चुनावों का कार्यक्रम अधिकृत तौर पर अभी जारी नहीं है। पर पार्टी सूत्रों के अनुसार सदस्यता सूचियों के प्रकाशन के साथ चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। जून में प्रदेशभर में बूथ कमेटियों के चुनाव करा लिए जाने की संभावना है।
हालांकि बूथ कमेटियों में कौन होगा, उन नेताओं के नामों की सूची अभी से तैयार होने लगी है। यह काम जिला एवं ब्लाक कमेटियों के पदाधिकारियों के साथ समन्वयक एवं सह समन्वयक कर रहे हैं।
अक्टूबर में प्रदेश अध्यक्ष एवं एआईसीसी सदस्यों के चुनाव के बाद कभी भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है। वैसे भी निर्वाचन आयोग ने कांगे्रस नेतृत्व को नवंबर तक संगठन के चुनाव कराने का निर्देश दे रखा है। इस बार सोनिया गांधी के स्थान पर राहुल गांधी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना है। वहीं मप्र में कांग्रेस को नया प्रदेश अध्यक्ष अक्टूबर तक मिलने की तैयारियां हो रही हैं। प्रदेश कांगे्रस के एक पदाधिकारी ने बताया कि बूथ कमेटियां गठित होने के बाद अगस्त एवं सितंबर में जिला एवं ब्लाक अध्यक्षों के चुनाव होंगे। इसके साथ प्रदेश प्रतिनिधि भी चुने जाएंगे। इनके जरिए ही बाद में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा। ये चुनाव कराने के लिए जून के पहले सप्ताह में चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति की जा सकती है। जिला एवं ब्लाक कमेटियों के बाद अक्टूबर में प्रदेश अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय कांगे्रस कमेटी के सदस्यों का चुनाव होगा। हालांकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि कांग्रेस पूरी तरह संगठित है सेनापति कोई भी हो उसके नेतृत्व में चुनाव लड़कर भाजपा को सत्ता से दूर किया जाएगा।
आंदोलन-यात्राएं अधूरी
मध्यप्रदेश में बीते तेरह सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस मतदाताओं में अपनी पैठ बनाने के लिए पूरी ताकत लगाने के लिए तैयार नहीं हैं। शायद यही वजह है कि कांग्रेस द्वारा बीते सालों में समय-समय पर शुरू किए गए आंदोलन और विभिन्न यात्राएं बीच में ही छोड़ दी गईं। दरअसल प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेताओं में जमकर गुटबाजी है, जिसका असर पार्टी के कार्यक्रमों पर भी देखा जा सकता है। यह यात्राएं भी गुटबाजी का शिकार हो गई। ऐसे मेें पार्टी एक बार फिर नई यात्रा निकालने की तैयारी कर रही है। अब प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है, इसके बाद भी अभी कोई यह दावा नहीं कर सकता है कि अगले चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहेगा। यह हाल तब हैं जब प्रदेश में लगातार तीन बार से भाजपा की सरकार है।
-भोपाल से अरविंद नारद