बड़ी राजनीतिक जमीन की तलाश में हैं उद्धव
18-Mar-2017 11:09 AM 1234815
देशभर में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशते-तलाशते शिवसेना आज इस मुकाम पर पहुंच गई है कि उसके घर यानी महाराष्ट्र में ही उसकी जमीन खिसकने लगी है। ऐसे में उद्धव ठाकरे ने क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करके एक महासंघ बनाने का संकेत देकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी जता दी है। यानी अब वह अपने और शिवसेना के राजनैतिक कैनवस को अधिक बड़ा आकार देने के मूड में हैं। सिल्वर जुबली का अवसर अमूमन एक बड़ी और दीर्घकालिक सफलता का जश्न होता है, लेकिन शिवसेना और भाजपा गठबंधन इसका अपवाद रहा है। कारण विगत महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान सीट बंटवारे को लेकर दोनों के 25 वर्षीय रिश्ते के बीच खड़ी हुई दीवार है। इसके नतीजे में इनको अलग-अलग चुनावी समर में कूदना पड़ा। बाद में मजबूरीवश दोनों ने मिलकर सरकार जरूर बना ली लेकिन ऐसा लगता है कि ये दीवार और ऊंची होती चली जा रही है। कम से कम बृहन्मुंबई महानगर पालिका में शिवसेना के अकेले चुनाव लडऩे और फिर उसके बाद दूसरे राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन का विकल्प खुला रखकर एक महासंघ बनाने की घोषणा करने से तो यही लगा है। इस तरह हम कह सकते हैं कि सम्बंधों का ये रजत जयंती अवसर बहुत सुखद नहीं रहा। बीएमसी चुनाव में ‘एकला चलो’ की नीति अपनाकर एक तरह से शिवसेना ने भाजपा पर दबाव बनाने का प्रयास किया, लेकिन भाजपा पर इस दबाव का कोई विशेष असर नहीं हुआ है। निगम चुनाव में भाजपा को पूरे महाराष्ट्र में जनाधार मिला। इससे शिवसेना को बड़ा झटका लगा है। लेकिन उद्धव ठाकरे अभी भी भाजपा के इतर अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने में लगे हुए हैं। शिवसेना ने महानगरपालिका में अपनी परिषद का गठन तो कर लिया है, लेकिन वह भाजपा से हर हाल में मुकाबला करने की जुगत में लगी हुई है। शिवसेना को उम्मीद है कि उसकी इस मुहिम में अन्य दलों का साथ मिलेगा। इन परिस्थितियों को भांपकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार को एक तरह से ‘नोटिस पीरियड’ देने का कार्ड खेला है। उन्होंने कहा है कि अगर उनकी वरिष्ठ सहयोगी भाजपा, शिवसेना के द्वारा लंबे समय से उठाए जाने वाले मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट नहीं करती है तो उनके पास प्रदेश सरकार से अपना समर्थन वापस लेने का विकल्प खुला है। लेकिन निकाय चुनावों के परिणाम शिवसेना को असमंजस में डाले हुए हैं। गौरतलब है कि बीएमसी में निरंतर 19 वर्षों से शिवसेना का कब्जा है और निकाय चुनावों में उसकी पकड़ हमेशा से ही मजबूत मानी जाती रही है। बिना गठबंधन स्थानीय निकायों में शिवसेना प्रमुख ने अपनी पार्टी की हैसियत परखी तो उन्हें उसके परिणाम भी भुगतने पड़े हैं। इसलिए निकाय चुनाव में शिवसेना को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के कारण वह वेट एंड वॉच की स्थिति में आ गई है। दरअसल उद्धव ठाकरे नवीन पटनायक, नितीश कुमार, ममता बनर्जी और दिवंगत जयललिता की तरह मिसाल बनना चाहते हैं। काबिलेगौर है कि ये सभी एक समय राजग के घटक रहे हैं लेकिन उससे अलग होने के बाद भी इन्होंने अकेले अपने दम पर चुनाव जीता और अपनी सरकारें बनाने में सफलता पाई। यही वजह है कि अपने हालिया बयान में उद्धव ठाकरे ने इनकी मिसालें देने से कोई गुरेज भी नहीं किया है। लेकिन फिलहाल उनकी दाल गलती नजर नहीं आ रही है। अब उन्हें विधानसभा चुनाव का इंतजार होगा। बीजेपी की गुगली से शिवसेना बोल्ड ! महाराष्ट्र में नगर निगम चुनाव में अलग-थलग लड़ी शिवसेना और भाजपा का असर यह हुआ कि भाजपा ने मुंबई छोडक़र पूरे महाराष्ट्र में अपना दबदबा कायम कर लिया। ऐसे में मुंबई महानगरपालिका में महापौर पद को लेकर बीजेपी और शिवसेना के बीच खींचतान को लेकर कयास लगाय जा रहे थे। कहा जा रहा था कि भाजपा और शिवसेना के बीच की ये तनातनी महाराष्ट्र में मध्यवर्ती चुनाव तक जा सकती है। लेकिन फडनवीस ने यह घोषणा करके कि बीजेपी मेयर और डिप्टी मेयर के लिए अपने कैंडिडेट्स नहीं उतारेगी सबको हैरत में डाल दिया। खासकर शिवसेना को आइना दिखाया कि वह एक पद के लिए वर्षों पुरानी दोस्ती नहीं तोडऩे वाली। -मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर
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