02-May-2017 07:09 AM
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मप्र राज्य मंत्रालय की सत्कार शाखा में अतिथियों के सत्कार के नाम पर हुआ करीब 7 करोड़ रुपए से अधिक का फर्जीवाड़ा अब सरकार की बदनामी का कारण बन गया है। वह इसलिए कि महालेखाकार (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) ने भी इस मसले को अपने प्रतिवेदन में उल्लेखित किया है। महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में पूरे घोटाले का सिलसिलेवार जिक्र करते हुए देयकों की प्रस्तुति में हो रहे विलंब पर सवाल खड़े किए है। दरअसल, उप महालेखाकार (लेखा) ग्वालियर ने सामान्य प्रशासन विभाग की सत्कार शाखा को कई पत्र भेजकर खर्च की गई राशि का ब्यौरा मांगा, लेकिन विभाग कोई जवाब नहीं दे पा रहा है। सामान्य प्रशासन विभाग की लेटलतीफी और निष्क्रियता से महालेखाकार कार्यालय इस बहुचर्चित घोटाले का आडिट नहीं कर पा रहा है।
महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मध्यप्रदेश कोषालय संहिता भाग-1 के नियम 313 के अनुसार प्रत्येक आहरण एवं संवितरण अधिकारी को प्रत्येक संक्षिप्त आकस्मिक देयक में यह प्रमाणित करना होता है कि वर्तमान माह के प्रथम दिवस से पूर्व उनके द्वारा आहरित समस्त आकस्मिक प्रभारों के लिए विस्तृत प्रतिहस्ताक्षरित आकस्मिक देयकों को प्रतिहस्ताक्षर के लिए संबंधित नियंत्रण अधिकारियों को तथा महालेखाकार (लेखा एवं हकदारी) को प्रेषण हेतु अग्रेषित कर दिए गए हैं। मध्य प्रदेश कोषालय संहिता के सहायक नियम 327 के अनुसार आहरण एवं संवितरण अधिकारी को मासिक विस्तृत प्रतिहस्ताक्षरित आकस्मिक देयक आवश्यक प्रमाण पत्र के साथ नियंत्रण अधिकारी को आगामी महीने की पांच तारीख तक प्रस्तुत कर देने चाहिए। नियंत्रण अधिकारी को पारित विस्तृत प्रतिहस्ताक्षरित आकस्मिक देयक महालेखाकार को प्रस्तुत करना होता है, ताकि ये देयक महालेखाकार कार्यालय में उसी महीने को प्रस्तुत करना होता है, ताकि ये देयक महालेखाकार कार्यालय में उसी महीने की 25 तारीख तक प्राप्त हो जाए। तथापि, वित्त विभाग के अनुदेश (जुलाई 2011) द्वारा सभी विभागों के लिए संक्षिप्त आकस्मिक देयकों से आहरण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
महालेखाकार की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2016 के अन्त तक रु. 7.59 करोड़ के 19 विस्तृत प्रतिहस्ताक्षरित आकस्मिक देयक लंबित थे, जो कि सामान्य प्रशासन विभाग के अंतर्गत राज्य शिष्टाचार अधिकारी, भोपाल द्वारा आहरित किए गए थे। इन आहरणों के प्रकरण न्यायालय में निर्णय के लिए लंबित था। प्रकरण न्यायालय विशेष न्यायाधीश द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत 13.03.2012 को बंद कर दिया गया था, तथापि ये संक्षिप्त आकस्मिक देयक समायोजन हेतु प्रतिक्षित थे। लेकिन आज तक इसकी जानकारी महालेखाकार ग्वालियर को नहीं भेजी गई। इस संदर्भ में महालेखाकार के अधिकारियों का कहना है कि खर्च की गई राशि का विवरण जब तक नहीं मिलेगा हम अपनी रिपोर्ट में इसे प्रकाशित करते रहेंगे। यानी हर साल इस भ्रष्टाचार के कारण सरकार की जग हंसाई होनी है।
उल्लेखनीय है कि मंत्रालय में स्थित सत्कार शाखा द्वारा अतिथियों के सत्कार के नाम पर वर्ष 2004-05, वर्ष 2005-06, वर्ष 2006-07 में 21 करोड़ रूपए का भुगतान किया गया है। इनमें से 7,59,00,000 रूपए का हिसाब विभाग द्वारा महालेखाकार कार्यालय ग्वालियर को नहीं दिया गया है। इसको लेकर महालेखाकार कार्यालय तीन दर्जन से अधिक बार रिमाईंडर भेज चुका है लेकिन उक्त रकम की जानकारी आज तक नहीं भेजी गई है। विभाग में हिसाब नहीं होने के कारण वर्तमान सत्कार अधिकारी भी असमंजश में हैं। ज्ञातव्य है कि इस बहुचर्चित घोटाले को लेकर विधानसभा में भी एक दर्जन से अधिक बार सवाल उठ चुके हैं, लेकिन करीब 11 साल बाद भी इतनी बड़ी राशि का फर्जीवाड़ा करने वाले का बाल भी बांका नहीं हो सका। न ही सरकार तत्कालीन राज्य शिष्टाचार अधिकारी से इस रकम के खर्च का हिसाब ले सकी। बताया जाता है कि उक्त कैश बुक चोरी कांड के मामले में कुछ आईएएस अफसरों के स्वार्थ जुड़े हुए थे इस कारण पहले ईओडब्ल्यू में मामले को कमजोर किया गया फिर उसका खात्मा करा दिया गया, लेकिन अब इस मामले में महालेखाकार कार्यालय की परेशानी बढ़ गई है। 7,59,00,000 रूपए का डीसी बिल नहीं मिलने से उसकी ऑडिट रूकी हुई है।
पत्रों का जवाब भी नहीं भेजा गया
उप महालेखाकार (लेखा) ने अपने मुख शीर्ष के मद-2 में वर्ष 2004-05 में 4,60,00,000, मद-5 में वर्ष 2005-06 में 2,74,00,000 और मद- 03 में वर्ष 2006-07 में 25,00,000 रूपए के खर्च का जिक्र किया है, लेकिन अग्रिम निकासी (एसी) पर आहरित 7,59,00,000 रूपए के अंतिम विपत्र (डीसी बिल) का कहीं अता-पता नहीं है। आखिर यह रकम गई कहां? इतनी बड़ी रकम कौन डकार गया? इस रकम की जानकारी के लिए महालेखाकार कार्यालय ग्वालियर ने दिनांक 29/12/2014 को पत्र क्रमांक-टीसी/07/डीसी बिल/डी-1585, दिनांक 29/09/2016 को पत्र क्रमांक-टीसी-1डी/41, दिनांक 01/12/2016 को पत्र क्रमांक-टीसी/ 1-43 के माध्यम से खर्च का हिसाब मांगा था, लेकिन आज तक जवाब नहीं भेजा गया।
मंत्री को भी किया गुमराह
इस मामले में सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्री लाल सिंह आर्य को भी गुमराह किया है। राष्ट्रीय पाक्षिक अक्स के मार्च 2017 के प्रथम अंक में इस भ्रष्टाचार में हो रही हीलाहवाली को लेकर प्रकाशित खबर को मंत्री ने गंभीरता से लिया और विभाग को पत्र लिखकर जानकारी मांगी। इस पर विभाग ने मंत्री को जानकारी दी है की कमेटी बनाकर जांच की गई, लेकिन फाइल में न बिल, बाउचर मिले न ही कोई सबूत। जब इस मामले में ईओडब्ल्यू से पत्राचार किया गया तो उसने भी भ्रष्टाचार से संबंधित कैसबुक, फाइलों को लेकर असहमति जताई। वह इस मामले में पहले ही एफआर काट चुका है। मंत्री को यह भी जानकारी दी गई है कि तत्कालीन प्रमुख सचिव एमके वाष्णेय द्वारा भी महालेखाकार कार्यालय ग्वालियर को इससे अवगत करा दिया गया है।
-कुमार राजेंद्र