02-May-2017 07:06 AM
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जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर हालात बेकाबू हैं। ऐसे में राज्य में सत्तारूढ़ पीडीपी और भाजपा के बीच खाई बढ़ती जा रही है। इस कारण प्रदेश में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लगने की आशंका जताई जा रही है। हालांकि गत दिनों मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर में बिगड़ रहे हालात को काबू में करने के लिए पक्षकारों से बातचीत करने के लिहाज से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। महबूबा ने हालांकि चेताया कि बातचीत के लिए माहौल तैयार करने की जरूरत है। पथराव और गोलियों की आवाजों के बीच बातचीत नहीं हो सकती। मोदी से मुलाकात के दौरान महबूबा ने कश्मीर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नीति का जिक्र किया और कहा कि डोर के सिरे को वहीं से पकडऩा चाहिए जहां पर वह छूटी थी। यह जाहिर रूप से अलगाववादियों से बातचीत का सुझाव था।
दरअसल महाबूबा की सरकार राज्य में हिंसा को काबू करने में विफल हो रही है। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और भाजपा सरकार के गठबंधन को मुमकिन बनाने वाले जम्मू-कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद के निधन के बाद महबूबा मुफ्ती को 2016 में 3 महीने का वक्त लगा जम्मू कश्मीर की सरकार संभालने में। तब भी महबूबा मुफ्ती की यही चिंता रही कि क्या भाजपा उसकी उम्मीद के अनुसार जम्मू-कश्मीर में आगे बढ़ेगी या फिर नहीं, लेकिन अभी तक मुफ्ती को यही एहसास हो रहा है कि भाजपा के लिए कश्मीर से ज्यादा देश की राजनीति ही प्रमुख है। शायद इसी कारण केंद्र सरकार ने महबूबा मुफ्ती के चाहते हुए भी न ही अलगावादी संगठनों के प्रति नरम रुख किया और न ही पाकिस्तान को लेकर नरमी दिखाई।
महबूबा मुफ्ती अब राजनीति के उस मुकाम पर आ गई हैं जहां वो खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही हैं! महबूबा मुफ्ती के जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री बनने के बाद कश्मीर जिन हालात से जूझ रहा है उनके कारण मुफ्ती की राजनीति और लोकप्रियता हाशिये पर आकर खड़ी हो गई है। उसका उदाहरण कश्मीर में हुए लोकसभा उपचुनावों से भी साफ होता है, जहां एक तो सब से कम मतदान हुआ और पीडीपी के जनाधार में भी कमी दिखी, वहीं अनंतनाग लोकसभा उपचुनाव टल गए। अब पीडीपी ने अनंतनाग लोक सभा उपचुनावों को एक बार फिर टालने के लिए चुनाव आयोग से गुजारिश भी की है।
जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के नेता ही भाजपा के नेताओं के उन बयानों से भी खासा परेशान हैं जिनमें वह कश्मीर विरोधी बयान देते रहे हैं। यही वजह है कि पहली बार राजनीति में आए महबूबा मुफ्ती के भाई और अनंतनाग लोकसभा सीट के लिए पीडीपी उम्मीदवार तसादुक मुफ्ती ने कुछ ही दिन पहले एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर को लेकर गंभीर नहीं है।
जम्मू-कश्मीर में 2016 में कई महीनों तक अशांति के बाद महबूबा मुफ्ती को उम्मीद थी कि 2017 में कश्मीर के हालात सुधरेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अब विरोध प्रदर्शनों में पत्थरबाजों के साथ-साथ स्कूल और कालजों के छात्र भी जुडऩे लगे हैं। कश्मीर में पिछले एक हफ्ते से कालेज बंद पड़े हैं और पिछले साल की तरह ही इस साल भी पर्यटन सीजन फीका रह गया है। रविवार को जम्मू-कश्मीर की मुख्य्मंत्री महबूबा मुफ्ती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात करेंगी और देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मिलेंगी। महबूबा मुफ्ती के करीबी शत्रु की माने तो महबूबा मुफ्ती सिर्फ 2 बातों पर ही बल देंगी। एक अलगावादियों और पाकिस्तान से बातचीत की प्रक्रिया को केंद्र सरकार आगे बढ़ाये और कश्मीर में सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए संयम बरतने की अपील की जाए, क्योंकि महबूबा मुफ्ती मानती हैं घाटी में आम लोगों के मारे जाने और लोगों के घायल हो जाने से हिंसा बढ़ती जा रही है। इसी वजह से हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं।
सत्ता के लिए सुरक्षा को खतरे में नहीं डाला जा सकता
महबूबा जिस उम्मीद के साथ प्रधानमंत्री से मुलाकात करने पहुंची थी वह उसमें सफल नहीं हो पाईं। मुलाकात के दौरान मोदी ने महबूबा से साफ कहा कि सत्ता से ऊपर सुरक्षा है और सिर्फ सत्ता के लिए सुरक्षा को खतरे में नहीं डाला जा सकता। महबूबा ने मोदी से कहा कि मोदी की नीतियों पर नहीं, अटल बिहारी वाजयेपी की नीतियों पर आगे बढ़े केन्द्र सरकार। महबूबा ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने जहां बातचीत छोड़ी थी वही से केन्द्र सरकार को बातचीत शुरू करनी चाहिए। सूत्र बताते है कि बातचीत तनावपूर्ण थी। गठबंधन में तनाव तब भी आया जब हाल में हुए एमएलसी चुनावों में एक निर्दलीय विधायक ने भाजपा उम्मीदवार विक्रम रंधावा के पक्ष में मतदान किया था। चुनाव में पीडीपी यह सीट हार गई थी। उन्होंने कहा, जो भी हुआ वह नहीं होना चाहिए था। लेकिन यह अंदरूनी मामला है और हम भाजपा के साथ इसे सुलझा लेंगे।ÓÓ
-विकास दुबे