वर्चस्व की जंग
17-Apr-2017 07:35 AM 1234873
विश्व की दो महाशक्तियों अमेरिका और रूस के वर्चस्व की जंग में सीरिया इस कदर पिस रहा है कि यहां लगातार हमले हो रहे हैं जिसमें मानवता तार-तार हो रही है। हर हमले में सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं, लेकिन पूरा विश्व मौन होकर मौत का तांडव देख रहा है। आलम यह है कि सीरिया में करीब एक दशक से जारी गृह युद्ध में अब तक करीब 4 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन इतनी सारी मौत के बाद भी सीरिया में शांति नजर नहीं आ रही है। अभी पिछले कुछ दिनों से सब कुछ शांत था कि अमेरिका ने सीरिया में विद्रोही गुटों के कब्जे वाले इदलिब प्रांत में 4 अप्रेल को रासायनिक बम से हमला कर दिया। इसमें करीब 110 लोगों के मारे जाने की खबर है। इस हमले के बाद एक बार फिर रूस अमेरिका में शीतयुद्ध छिड़ गया है। ऐसा लगता है कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का शासन व सरकारी सेना पर नियंत्रण नहीं रह गया है। वहां पूर्णत: अराजकता का माहौल है। इसी अराजकता का फायदा उठाकर कभी रूस तो कभी अमेरिका सीरिया पर बमबारी करते रहते हैं। सीरिया से मिलने वाली खबरें दिल दहला देने वाली हैं। हमारी आंखों के सामने एक सभ्यता का विनाश जारी है। सीरिया कोई सामान्य देश नहीं, विश्व सभ्यता के इतिहास की एक धरोहर है, जिसकी परम्परा हमें यहूदियत, ईसाइयत और इस्लाम के पहले ले जाती है। सीरियाई शहर दमिश्क, अलेप्पो का जिक्र हिब्रू बाइबिल, ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट के साथ कुरान शरीफ में भी मिलता है जो ज्युडो-क्रिश्चियन परम्परा के तीनों धर्मों - यहूदियत, ईसाइयत और इस्लाम के साझा इतिहास का हिस्सा है। अरब स्प्रिंग के साथ शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध के पांच वर्ष बीत चुके हैं।  इस बीच राष्ट्रपति असद के समर्थक और विरोधी गुटों, इस्लामिक स्टेट, रूस, अमेरिका द्वारा की जा रही नृशंस बमबारी ने सीरिया के शहरों को खंडहरों में तब्दील कर दिया है। सीरियाई समाज अपने ही विरुद्ध विभाजित हो चुका है। इसमें शिया-सुन्नी के ऐतिहासिक अंतर्विरोध हैं, इस्लामिक स्टेट की कट्टर धर्मान्धता है, अप्रजातांत्रिक शासन-पद्धति के खिलाफ उबलता गुस्सा है और पश्चिमी देशों के अपने निहित स्वार्थ हैं। इन सब के बीच पामिरा, बाल शामिन, जोबार यहूदी मंदिर, बोसरा शहर, दमिश्क, अलेप्पो, सभी एक-एक कर सभी ध्वस्त होते जा रहे हैं जो कभी विश्व सभ्यता के केंद्र थे। क्या बाइबिल में की गई सीरिया के विध्वंस की भविष्यवाणी सच हो रही है? कौन जाने? इसमें शक नहीं कि पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप ने पश्चिम एशिया के तथाकथित तानाशाह को उखाड़ फेंके पर साथ ही वे इन देशों को भीषण सामाजिक और राजनैतिक अस्थिरता के दलदल में भी धकेल गए। राष्ट्रपति असद के अनुसार, सीरियाई गृहयुद्ध अमेरिका द्वारा इराक की बर्बादी का ही एक परिणाम है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सीरियाई गृहयुद्ध दुनिया की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी बताई जा रही है। राष्ट्रपति असद इसे गृहयुद्ध की जगह आतंकवाद मानते हैं और इसके लिए पश्चिमी मुल्कों को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनके अनुसार अस्सी के दशक में पश्चिमी मुल्कों ने अफगान आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी का रुतबा दिया और 2006 में जब इराक में उनकी शह पर इस्लामिक स्टेट खड़ा हुआ तो अमेरिका ने उसका खात्मा नहीं किया। आज अमेरिका और नाटो के सदस्य देश उसके खिलाफ अंधाधुंध बमबारी कर रहे हैं जिसमें ज्यादातर निर्दोष नागरिक ही मारे जा रहे हैं। इस्लामिक स्टेट का सफाया करने के नाम पर अमेरिका और नाटो द्वारा की जा रही बमबारी में निर्दोष हताहत हो रहे हैं। सरकार को मानवता की चिंता ही नहीं जहां तक सीरिया के हालात का सवाल है तो ऐसा लगता है कि वहां के अराजक माहौल मेें सरकार को मानवीयता की चिंता ही नहीं है। वह जैसे-तैसे विद्रोही गुटों को समाप्त कर सत्ता बरकरार रखने में जुटी है। युद्ध के दौरान भी अंतरराष्ट्रीय संधियों को मानना होता है, सरकार इसे शायद समझने की मन:स्थिति में भी नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां पर छिड़े गृह युद्ध के चलते पिछले तीन वर्षों में करीब 50 लाख लोग देश छोड़कर चले गए हैं। वहीं करीब 60 लाख लोग बेघर हो चुके हैं। यही नहीं यहां हर तीन में से एक स्कूल हमलों में नष्ट हो चुका है और करीब 17 लाख बच्चे पिछले एक वर्ष के दौरान स्कूल छोड़ चुके हैं। -धर्मेंद्र सिंह कथूरिया
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