ईवीएम के बहाने कब तक?
02-May-2017 07:03 AM 1234797
पंजाब और गोवा में मुंह की खाने के बाद आम आदमी पार्टी को दिल्ली नगर निगम चुनाव में भी मात मिली है। इस मात के बाद भी पार्टी ने ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ा है। आपके साथ कांग्रेस भी अपनी हार को लेकर ईवीएम के साथ ही अन्य तरह की बहानेबाजी करती नजर आ रही है। यानी कोई भी भाजपा या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की बात नहीं कर रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब तक ईवीएम या अन्य बहानेबाजी चलेगी। उम्मीदों की लहरों पर सवार प्रचंड बहुमत के साथ 2015 में सत्ता में आई यह आम आदमी पार्टी, पिछले दो साल में अपनी उपलब्धियों के लिए कम, विवादों को लेकर ज्यादा सुर्खियों में रही। लोगों ने देखा कि किस तरह साल भर के अंदर कई वरिष्ठ या तो बाहर कर दिए गए या अंदर ही खामोश कर दिए गए। लोगों की मानें तो आधे विधायकों के कामकाज को लेकर जहां स्थानीय स्तर पर नाराजगी थी, तो आधे विधायक पार्टी नेतृत्व के काम काज के तौर तरीकों से नाराज थे। आंतरिक लोकतंत्र को लेकर मयंक गांधी से लेकर अन्य कइयों ने सवाल खड़े किए तो उन्हें भी बाहर जाने की छूट दे दी गई। एक तरफ एलजी और केंद्र से टकराव के कारण विकास ठप पड़ा था, वहीं निगम में भाजपा से टकराव के कारण पिछले एक साल के दौरान जो हालात पैदा हुए, उसे लेकर भी लोगों में नाराजगी थी। इस बीच पार्टी की बढ़ती महात्वाकांक्षा और पार्टी विस्तार के फैसले से फायदा कम, नुकसान ज्यादा हुआ। सच यह भी है कि पिछले एक साल से केजरीवाल नॉन रेजीडेंट सीएम के नाम से जाने जा रहे थे। ऐसे में एमसीडी चुनावों के दौरान डेंगू-चिकनगुनिया को मुद्दा बनाने का दांव केजरीवाल के लिए नुकसानदेह ज्यादा साबित हुआ। साफ-सुथरा और ईमानदार प्रशासन के वायदे के बल पर सत्ता में आई इस पार्टी के तीन मंत्री किस तरह नैतिक और चारित्रिक भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए और उन्हें कुर्सी छोडऩी पड़ी, यह भी दिल्ली ने देखा। पर इन तथ्यों को हार के कारणों के तौर पर स्वीकार करना साहस का काम होता। ऐसे में चाहे पंजाब हो या दिल्ली नगर निगम के चुनाव, हार के लिए ईवीएम को दोषी मानना ज्यादा आसान काम था। दरअसल ईवीएम को लेकर सवाल कांग्रेस ने भी उठाया, बीएसपी ने भी उठाया, इसलिए उस सुर में अपना सुर जोडऩे में आम आदमी को भी परेशानी महसूस नहीं हुई। दरअसल, दर्द एक ही था, बाहर इलाज दिखा नहीं तो उपाय कहें या बहाना, सब आपस में ही तय कर लिया गया। इस मसले में 13 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिल चुके हैं, लेकिन यह समूह अब तक कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि ईवीएम में खोट है। सच यह भी है कि पूरे प्रचार के दौरान, अधिकतर विधायक अपने प्रत्याशियों के साथ नहीं दिखे, क्योंकि उनका आरोप यह था कि टिकट बंटवारे में उनकी नहीं सुनी गई और प्रत्याशी हेडक्वार्टर से तय किए गए। कुमार विश्वास जैसे नेता प्रचार में ही नहीं उतरे और जो कुछ उतरे भी, उनमें केजरीवाल के अलावा कोई असरदार नहीं था। बिजली हाफ और पानी माफ के अलावा उपलब्धियों के नाम पर पार्टी के पास बताने को कुछ खास था भी नहीं, लिहाजा विपक्ष, खासकर भाजपा के पास हमला करने के ज्यादा मौके थे। लिहाजा केजरीवाल की रैलियां भी कम कर दी गईं। कांग्रेस का दर्द अजय माकन को दुख इस बात का था कि कुछ लोग ऐन मौके पर पार्टी का साथ छोड़ गए, वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार से कन्नी काट लिए, कुछ सीनियर नेताओं ने उनके नेतृत्व को लेकर सवाल खड़े किए। पर सच यह है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में, जहां पार्टी को हर चुनाव में निराशा हाथ लग रही थी, दिल्ली में दिलचस्पी सिर्फ इतनी ही थी कि क्या पार्टी अपने पुराने वोट बैंक को दोबारा हासिल करने में कामयाब हो पाती है या नहीं। दिल्ली की राजनीति में पार्टी जिंदा रहेगी या हमेशा के लिए खो जाएगी, बस इतना ही तय होना था। 2015 के विधानसभा चुनावों में शून्य तक पहुंचने वाली पार्टी के सामने चुनौती यह थी कि वह इस शून्य के कितने पायदान ऊपर चढ़ पाती है, क्योंकि और नीचे फिसलने के लिए अब स्थान नहीं बचा था। कांग्रेस के लिए यह मंथन का समय है। आप तो एक आंदोलन की उपज है, लेकिन कांग्रेस का गौरवशाली इतिहास रहा है। ऐसे में पार्टी अपनी कमियों पर नजर रखने की बजाए ईवीएम को दोष देकर अपनी खामियां और बढ़ा रही है। दिल्ली की जनता के साथ बेरहमी का परिणाम सभी ने देखा कि किस तरह 2013 में दिल्ली डेंगू और चिकनगुनिया से जूझ रही थी और लोगों के मरने की खबरें आ रही थीं, केजरीवाल अपने इलाज के लिए दिल्ली से बाहर थे, उप मुख्यमंत्री सिसोदिया फिनलैंड में थे, स्वास्थ्य मंत्री गोवा में प्रचार में लगे थे, गोपाल राय छतीसगढ़ में कार्यकताओं के वर्कशॉप में गए थे। ले-देकर एक कपिल मिश्रा बतौर मंत्री दिल्ली में मौजूद थे। मामला बढ़ा और मीडिया ने सवाल पूछने शुरू किए, तब एलजी ने मनीष सिसोदिया को फिनलैंड से तलब किया, स्वास्थ्य मंत्री गोवा से भागे-भागे आए और फिर बैठकों का दौर शुरू हुआ। लोगों ने देखा कि किस तरह केंद्र से दिल्ली के हक का टैक्स का पैसा मांगने वाली आम आदमी सरकार दिल्ली के टैक्स देने वालों के पैसे का दुरूपयोग अपने प्रचार के लिए पंजाब, गोवा और अन्य राज्यों में कर रही थी। आज उन्हीं प्रचारों पर खर्च 97 करोड़ की वसूली का फरमान मुंह बाए खड़ा है। -इन्द्रकुमार
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^