...तो आडवाणी और जोशी का कैरियर खत्म ?
02-May-2017 06:58 AM 1234801
सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत भाजपा के 13 नेताओं पर बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में आपराधिक साजिश का केस चलेगा। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की पिटीशन पर सुनाया है। केस में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, सतीश प्रधान, चंपत राय बंसल, विष्णु हरि डालमिया, नृत्य गोपाल दास, सतीश प्रधान, आरवी वेदांती, जगदीश मुनी महाराज, बीएल शर्मा (प्रेम), धर्म दास के नाम शामिल है। कल्याण सिंह को राजस्थान के राज्यपाल होने के कारण संवैधानिक छूट प्राप्त है और उनके कार्यालय छोडऩे के बाद ही उनके खिलाफ मामला चलाया जा सकता है। इन सभी नेताओं पर आपराधिक षड्यंत्र का मामला चलेगा, धारा 120 (बी) के तहत मामला चलाया जाएगा। सेक्शन 120-बी : इंडियन पेनल कोड, 1860 के मुताबिक, इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल तक की सजा मिल सकती है। सबसे बड़ा नुकसान अगर होगा तो वह होगा लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का। कुछ समय से यह चर्चाएं चल रही हैं कि अडवाणी और जोशी ही राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हैं। अब शायद फैसले के दूरगामी नतीजे सामने आ सकते हैं। सबसे पहले बात करते हैं जुलाई में संपन्न होने वाले राष्ट्रपति चुनावों की। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हैं। अब भाजपा के ये दिग्गज राष्ट्रपति पद की रेस से लगभग दूर होते जा रहे हैं, चाल चरित्र और चेहरे की बात भाजपा में हमेशा ही की जाती है। हालांकि तीनों अभी दोषी करार नहीं दिए गए हैं। आडवाणी ही वह सख्श थे जिन्होंने भाजपा में चाल चरित्र को साबित किया था। उन्होंने जैन हवाला केस में नाम आने के बाद 1996 में संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और इस मामले में क्लीन चिट मिलने के बाद 1998 में वह संसद के लिए फिर से निर्वाचित हुए। अब बात रही उमा भारती की, तो वे साफ कर चुकी हैं कि अयोध्या, गंगा और तिरंगे के लिए वो कोई भी सजा भुगतने को भी तैयार हैं। यदि कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ भी जाता है तो वे पहले ही तैयार हैं। पद से इस्तीफा उनके लिए बड़ी बात नहीं है। लक्ष्य जरूरी हैं। हालांकि अभी दोषी होना दूर की कौड़ी है। फैसला आने में अभी भी समय लगेगा। तब तक शायद बहुत कुछ हो चुका होगा। लिब्राहन आयोग जिसका गठन 16 दिसंबर 1992 में किया गया था, ने भी अपनी रिपोर्ट में बाबरी विध्वंस को सुनियोजित साजिश करार देते हुए वाजपेयी, आडवाणी और जोशी समेत कुल 68 लोगों को दोषी माना था। जिन 68 लोगों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, शिव सेना के अध्यक्ष बाल ठाकरे, विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन, के एन गोविंदाचार्य, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा और प्रवीण तोगडिय़ा के नाम भी शामिल थे। रिपोर्ट में तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह पर उन्हें घटना का मूकदर्शक बताते हुए आयोग ने तीखी टिप्पणी की थी। लिब्राहन आयोग ने कहा कि कल्याण सिंह ने घटना को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। कानून की अगर बात करें तो भारतीय कानून में कहीं भी ऐसा जिक्र नहीं है कि जिसके खिलाफ कोई क्रिमिनल केस चल रहा हो वह चुनाव नहीं लड़ सकता। इन नेताओं के खिलाफ जो भी आरोप हैं, अभी ट्रायल पर हैं व ट्रायल के बाद यह तय होगा कि ये दोषी हैं या नहीं। ऐसे में कानूनी तौर पर चुनाव लडऩे को लेकर कोई विवाद नहीं है। यहां अगर कोई अड़चन आयेगी तो वो होगी नैतिकता की। सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को होगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रथम दृष्टया यह प्रतीत हो रहा है कि ये भाजपा के लिए बहुत बड़ा धक्का है। क्योंकि इसी मुद्दे ने भाजपा को केंद्र में सत्ता दिलवाने में सबसे ज्यादा मदद की थी और ये ही वो नेता थे जिन्होंने इस मुद्दे पर पार्टी का नेतृत्व किया था। पर क्या यह भाजपा के लिए सचमुच बहुत बड़ा धक्का है? क्या इससे भाजपा को नुकसान हो सकता है? इस अवधारणा के ठीक उल्टे इस आदेश से नरेंद्र मोदी को और भाजपा दोनों को फायदा हो सकता है। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से राम मंदिर का मुद्दा फिर से राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गया है। आज के युवा, जो लगभग 6 दिसंबर 1992 के बाद पैदा हुए हैं, वो भी इस मुद्दे के बारे में जानेंगे। भाजपा इस मुद्दे को हिन्दू अस्मिता से जोड़ कर देखती है। अगर युवा पीढ़ी भी यही अवधारणा बनाती है तो भाजपा को उनके मन मस्तिष्क पर भगवा रंग चढ़ाने में मदद मिलेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने लखनऊ में सेशन जज को आदेश दिए हैं कि वह रोजाना इस मामले में सुनवाई करें और सुनवाई कर रहे जज का ट्रांसफर नहीं होगा। न्यायालय ने सीबीआई को आदेश दिया है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि गवाहों को कोर्ट में रोज पेश किया जाए ताकि बाबरी विध्वंस मामले के ट्रायल में कोई देरी न हो एवं फैसला निर्धारित दो वर्षों में हो जाए। मतलब के अगले लोक सभा चुनाव तक, जो की 2019 में होगा, यह मुद्दा हर दिन खबरों में रहेगा। इसका फायदा लाजिमी तौर पर भाजपा को होगा। इस आदेश से लोगों में सन्देश जायेगा कि भाजपा के बड़े से बड़े नेता भी राम मंदिर के लिए आपराधिक मामले को सहर्ष झेल रहे हैं। यानी की भाजपा का भव्य राम मंदिर बनाने का दावा केवल जुमला नहीं हैं। पार्टी इसके लिए कृत्यसंकल्प है। देश के अगले राष्ट्रपति के लिए जिन नामों की चर्चा है उनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के नाम भी शामिल है। आज के फैसले के बाद से इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि ये अब राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल नहीं होंगे। आडवाणी से प्रधानमंत्री मोदी के सम्बन्ध पिछले कई वर्षों से बहुत मधुर नहीं है। ऐसा माना जा रहा था कि राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री कराने वाले अपने गुरु आडवाणी को पीएम मोदी गुरुदक्षिणा के तौर पर राष्ट्रपति पद तक पहुंचाने को तैयार हैं। अब मोदी को ऐसे कोई बाध्यता नहीं रहेगी। राष्ट्रपति चुनाव में बनेगी विपक्षी एकता ! भाजपा आगामी राष्ट्रपति अपनी पसंद का न बना सके इसलिए विपक्ष एक बार फिर एकता की राह पर चल रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- अखिलेश यादव व मायावती ने विपक्ष के जिस महागठबंधन का आह्वान किया है, उसकी राह की मुश्किलों का अंदाजा उन्हें भी होगा।  दरअसल नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आक्रामक राजनीति को जवाब देना किसी एक पार्टी के बूते की बात नहीं लग रही है। दोनों नेता जिस अंदाज में राजनीति कर रहे हैं और जैसे विपक्ष को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं, उसे रोकने के लिए विपक्षी पार्टियां एक साथ आ सकती हैं। ध्यान रहे मोदी ने अपने प्रचार की शुरुआत कांग्रेस मुक्त भारत के नारे से की थी। जब तक वे कांग्रेस के विरोध में प्रचार करते रहे तब तक प्रादेशिक क्षत्रपों को परेशानी नहीं थी। लेकिन अब उनका निशाना सिर्फ कांग्रेस नहीं है, बल्कि सभी प्रादेशिक पार्टियां हैं। इसलिए क्षत्रपों की मुश्किल बढ़ी है। बसपा को अपने दलित वोट की चिंता है, जो भाजपा की ओर शिफ्ट हो रहा है तो नीतीश कुमार को गैर यादव पिछड़ी जातियों का वोट हाथ से निकल कर भाजपा की ओर जाने की चिंता है। ममता बनर्जी को लग रहा है कि कांग्रेस हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करा सकती है तो साथ साथ महाराष्ट्र में गैर मराठा और हरियाणा में गैर जाट वोट भाजपा के साथ गोलबंद होने की संभावना दिख रही है। इससे एक बड़ा राजनीतिक संकट कई पार्टियों के सामने खड़ा हुआ है। -दिल्ली से रेणु आगाल
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