मोदी का 2019 का विजय प्लान
17-Apr-2017 07:30 AM 1234803
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भारी बहुमत से सरकार बनाने के बाद भाजपा की नजरें पूरे देश में अपने कमजोर आधार वाली संसदीय सीटों पर हैं। पार्टी ने कुल 120 सीटों की पहचान की है, जहां साल 2014 के चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा था। लगातार कई राज्यों में मिली जीत के बाद भाजपा जीत के रथ पर सवार है और मोदी बिलकुल नहीं चाहते कि किसी भी तरह ये विजय रथ रुके। इसके लिए पीएम मोदी ने 2019 के लिए फ्यूचर प्लानिंग शुरू कर दी है। बता दें, 2018 और 2019 में विधानसभा और लोकसभा चुनाव हैं। ऐसे में मोदी ने अभी से कमर कस ली है। यूपी में शानदार जीत के बाद पीएम मोदी ने सभी भाजपा सांसदों को चुनाव की तैयारी के निर्देश दे दिए हैं। मोदी का अब पूरा फोकस आने वाले चुनावों पर है। यूपी चुनाव जीतने के बाद पीएम मोदी लगातार कभी कार्यकर्ताओं से तो कभी सांसदों से मीटिंग कर रहे हैं। अमित शाह से लेकर पीएम मोदी आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए अभी से सक्रिय हो गए हैं। वो लगातार बैठक और चुनाव के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं। पीएम यह मीटिंग कर सांसदों को अपनी प्राथमिकताएं भी बता रहे हैं। उनका संदेश यही है कि युवाओं को पता चले कि मोदी सरकार ने सत्ता के बाद क्या-क्या काम किए। कैसे उनकी सरकार ने मॉर्डन इंडिया का मॉडल तैयार किया। गरीबों और पिछड़ी जातियों के लिए कैसा काम हुआ। मोदी हर तरह से लोगों को भाजपा के साथ खड़े रहने के लिए हर तरह की कोशिश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन की शर्मनाक हार ने गांधी परिवार की साख को नुकसान पहुंचाया है। इस पराजय ने राहुल गांधी के नेतृत्व के साथ प्रियंका गांधी को भी सवालों के घेरे में ले लिया है क्योंकि चुनाव से पहले प्रियंका के राजनीतिक कौशल की बातें की जा रही थीं। लेकिन, सवाल यह भी है क्या एक संगठित मोर्चा मोदी के करिस्मे को टक्कर दे सकता है? 2019 के चुनाव में जिसका जवाब आने वाले समय में धीरे-धीरे मिल जायेगा। हालांकि, जातीय गणित पर होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव ने इस गणित पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। ऐसे में 2019 का लोकसभा चुनाव मोदी के विकास की क्या नयी दस्तक देगा जो भारत की तस्वीर को बदल सकेगा यह भी देखना होगा। मोर्चे की सुगबुगाहट तो हुई थी लेकिन उत्तर प्रदेश के नतीजों ने फिलहाल इस पर विराम लगा दिया है। उत्तर प्रदेश में भी एक गठबंधन बना था लेकिन नातीजों में सफल नहीं रहा। वहीं, बिहार में महागठबंधन और दिल्ली के चुनावों ने मोदी के अश्वमेध यज्ञ को रोक दिया था। इसी के बाद शुरू हुआ था राष्ट्रीय मोर्चा बनने का दौर, जिसे नोटबंदी के बाद बहुत बल मिला था लेकिन उत्तर प्रदेश के परिणामों ने इस सब पर पानी फेर दिया। कांग्रेस की बात करें तो उसकी झोली में पंजाब आया है। यह वही पंजाब है जहां राहुल ने पंजाब प्रदेश कांग्रेस लीडरशिप से कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के लिए जोर लगाया था। उन्हीं अमरिंदर ने 2013 में कर्नाटक में विजय के बाद कांग्रेस को किसी प्रदेश में पहली जीत दिलाई है। कांग्रेस को दरअसल सिंह के साथ मणिपुर के दिग्गज नेता इबोबी सिंह और गोवा में पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिनका राहुल गांधी जैसे नई पीढ़ी के नेताओं के साथ प्रयोगों को लेकर टकराव रहा। गोवा और मणिपुर में विधानसभा में सीटों के मामले में कांग्रेस भाजपा से आगे है। दरअसल, सपा-कांग्रेस गठबंधन के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन राज्य में बेहद कमजोर रहा। इस बार कांग्रेस महज सात सीटों पर ही चुनाव जीत? सकी। हालांकि, 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 28 सीटें अपने दम पर हासिल की थी। सूबे में कांग्रेस पिछले 28 सालों से सत्ता से बाहर है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा था कि राहुल गांधी के पद त्यागने का तो सवाल ही नहीं उठता। गोवा में कांग्रेस के इन्चार्ज दिग्विजय सिंह ने कहा नेहरू-गांधी परिवार ही कांग्रेस को एकजुट करता है। यूपी में भाजपा की जीत के बाद भाजपा, बिहार में नीतीश कुमार को लेकर राजनीतिक खेल खेलने की कोशिश करेगी। नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी और महिला आरक्षण जैसे कई मुद्दों को लेकर नजदीकियां बढ़ी हैं। पटना में प्रकाशोत्सव कार्यक्रम में दोनों एक-दूसरे की तारीफ भी कर चुके हैं। यूपी में भाजपा की सरकार बनने के बाद लालू सरकार पर ज्यादा दवाब बनाने में सफल नहीं होंगे। क्या ऐसे में एक मोर्चा बनना संभव होगा? अगर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा की जीत ने उसे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बढ़त दी है। भारतीय जनता पार्टी के अंदर और देश की आगे की राजनीति के समीकरण ठीक करने का एक मौका राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति पद का चुनाव भी है। इससे पहले भी पार्टियां इन पदों पर उतारे जाने वाले उम्मीदवारों के जरिए राजनीति को साधने का प्रयास करती थीं। लेकिन आमतौर पर उन चुनावों में अपना उम्मीदवार जिताने की मजबूरी के तहत भी उम्मीदावार तय किए जाते थे। मिसाल के तौर पर कांग्रेस ने प्रतिभा पाटिल को इसलिए उम्मीदवार बनाया क्योंकि वामपंथी नेताओं को उनके नाम पर आपत्ति नहीं थी और सीपीआई के नेता एबी बर्धन के साथ वे विधायक रही थीं। इसी तरह भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने एपीजे अब्दुल कलाम को इसलिए चुना क्योंकि समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह ने उनका नाम प्रस्तावित किया था। सो, गठबंधन की राजनीति में सत्तारूढ़ पार्टियों के सामने उम्मीदवार तय करने में कई तरह की शर्तें होती हैं। लेकिन जिस तरह पिछली बार कांग्रेस ने अपनी मर्जी से प्रणब मुखर्जी को अपना उम्मीदवार बनाया और वे राष्ट्रपति बने, उसी तरह से इस बार भाजपा के सामने मौका है कि वह अपने किसी नेता को देश के सर्वोच्च पद पर नियुक्त कराए। मोबाइल फोन से लड़ेंगे चुनाव पीएम मोदी का जीत का फॉर्मूला होगा मोबाइल फोन। जी हां, 2019 का चुनाव बीजेपी मोबाइल फोन पर लड़ेगी। मोदी का मानना है कि युवाओं तक पहुंचने के लिए मोबाइल सबसे अच्छा माध्यम है। पीएम मोदी ने गुजरात, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश के सांसदों से मुलाकात की और बता दिया कि अब समय के साथ सियासत भी बदल चुकी है। मोदी ने सांसदों से फ्यूचर प्लानिंग की और बोला कि ज्यादा से ज्यादा लोगों के कनेक्ट रहें और मोबाइल फोन को 2019 में होने वाले चुनावों में अपना हथियार बनाएं। पीएम मोदी का कहना है कि सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को सरकार के कामों को मोबाइल के जरिेए पहुंचाना है और सांसदों से यह भी कहा है कि वो सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव रहें। मोदी के हाथ होगा मुख्यमंत्रियों का रिमोट भाजपा में अब तक जो भी मुख्यमंत्री रहे हैं वह किसी नेता के प्रतिनिधि के रूप में काम नहीं करते हैं। उनका अपना वजूद रहा है। ऐसे मुख्यमंत्रियों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम प्रमुख है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद युवाओं को प्रदेश की कमान देने के नाम पर ऐसे लोगों को मुख्यमंत्री बनाने का सिलसिला शुरू हुआ जो केन्द्र सरकार के रिमोट की तरह काम कर सकें। गुजरात में पहले आनंदी बेन पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया जब वह सफल नहीं हुई तो विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाया गया। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर भी नये नाम की तरह सामने आये और मुख्यमंत्री बने। गोवा में भाजपा को पूरा बहुमत नहीं मिला तो वहां रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को भेजा गया क्योंकि वह पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तराखंड में भाजपा को कोई खतरा नहीं था तो पहले के तमाम मुख्यमंत्रियों को दरकिनार कर त्रिवेन्द्र सिंह रावत को कुर्सी सौंपी गई। जो भाजपा में उत्तराखंड के लिये नया नाम था। जानकार मानते है कि जहां भाजपा को बहुमत हासिल हुआ है वहां वह रिमोट कंट्रोल मुख्यमंत्री पसंद करती है। भाजपा केन्द्र से कई अफसरों को भी उत्तर प्रदेश भेजने जा रही है, जो प्रधानमंत्री की योजनाओं को अमल में लाएंगे। कमजोर मुख्यमंत्री बनाने का काम कांग्रेस भी करती रही है। जब कांग्रेस की कमान इंदिरा गांधी ने संभाली तब वह पार्टी की सबसे मजबूत मेंमबर थी। इंदिरा गांधी अपने पसंद का मुख्यमंत्री ही चुनती थी। उसी नाम पर विधायक और पर्यवेक्षक मुहर लगाते थे। पर भविष्य के लिहाज से यह नीति पार्टी के लिये सही नहीं साबित हुई। -श्याम सिंह सिकरवार
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