17-Apr-2017 07:19 AM
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पंजाब और गोवा के चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ। हालांकि, पार्टी पंजाब में 22 सीट जरूर जीती लेकिन गोवा में खाता भी नहीं खोल पायी। इस हार से पार्टी संभल भी नहीं पाई है की एक बार फिर से आम आदमी की पार्टी में भगदड़ शुरू हो गई है। आम आदमी पार्टी अब टूट की कगार पर खड़ी है। जो विधायक अभी साथ हैं उनका भी दम घुट रहा है करीब 30 से 35 विधायक पार्टी से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रहे हैं।
केजरीवाल का असली चेहरा देखकर जिन नेताओं का मोहभंग हुआ है उनमें सबसे ताजा नाम आप की रोहिणी जिला महिला विंग की उपाध्यक्ष और रोगी कल्याण समिति की अध्यक्ष सीमा कौशिक का। वो अपने 250 समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गई हैं। आप छोड़ते वक्त उन्होंने आरोप लगाया कि, आम आदमी पार्टी में अब भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है। वो कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं, नेता भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और कार्यकर्ता मारे-मारे घूम रहे हैं। कार्यकर्ताओं को कुछ देने की बात आती है, तो रिश्तेदार आगे आ जाते हैं। सीमा कौशिक से पहले बवाना से आप विधायक रहे वेद प्रकाश सतीश भी केजरीवाल की झाड़ू फेंककर कमल थाम चुके हैं। उन्हें पटाने के लिए खुद सीएम ने घडिय़ालू आंसू बहाए और उनपर पार्टी में वापसी का दबाव भी बनाने की कोशिश की। उन्होंने यहां तक आरोप लगाया कि, केजरीवाल का एक ही काम है कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल को बदनाम किया जाए। वे काम को पूरा किए बिना आरोप केंद्र सरकार पर मढ़ देते हैं। उन्होंने बताया कि वो ही नहीं, पार्टी में कम से कम 30-35 विधायक हैं, जो पार्टी सुप्रीमो के व्यवहार से बेहद परेशान हैं। शायद यही वजह है कि 30 से ज्यादा विधायकों के जल्द ही आप छोडऩे के कयास लगाए जाने लगे हैं।
सीमा कौशिक और वेद प्रकाश सतीश ने तो समय रहते केजरीवाल की गुलामी करने से इनकार कर दिया, लेकिन आप में अभी भी ऐसे नेता हैं, जो वहां से किसी वजह से निकल तो नहीं पा रहे हैं, लेकिन भीतर रहकर ही तानाशाही सत्ता के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए हुए हैं। उन्हीं में से एक हैं बिजवासन से आप विधायक कर्नल देवेंद्र सहरावत। उन्होंने पार्टी के अंदर अरविंद केजरीवाल की दबंगई पर जमकर भड़ास निकाली है। सहरावत के शब्दों में, अरविंद केजरीवाल खुद को मायावती से भी खराब तानाशाह साबित कर रहे हैं। स्थानीय नेतृत्व को बढऩे की इजाजत नहीं है। विधायक जनता के बीच बुरे बन जाते हैं।
पार्टी के वयोवृद्ध और संस्थापक नेता शांति भूषण ने केजरीवाल की तानाशाही के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की और आंतरिक लोकतंत्र का सवाल उठाया। उन्होंने पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप भी लगाए। बदले में केजरीवाल ने उन्हें अपना दुश्मन मान लिया और बुरा-भला कहते हुए पार्टी के दरवाजे शांति भूषण के लिए बंद कर दिए। जबकि पार्टी को खड़ा करने में इन्होंने अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई भी लगाई थी। अन्ना आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी बनाने तक केजरीवाल ने जिन मुद्दों पर देश में सुर्खियां बटोरी, वो सारे कानूनी दांव-पेंच प्रशांत भूषण ने अपनी मेहनत से जमा किए। प्रशांत पार्टी का थिंक टैंक माने जाते थे। पर जैसे ही केजरीवाल की मनमानी का प्रशांत भूषण ने विरोध किया, आंतरिक लोकतंत्र की बात उठायी - केजरीवाल ने उन्हें बेईज्जत कर पार्टी से निकालने में देर नहीं की। भूषण की तरह ही केजरीवाल ने वही हाल अन्ना आंदोलन से लेकर आप के गठन तक में थिंक टैंक का हिस्सा रहे योगेन्द्र यादव का भी किया। आप को शून्य से शिखर तक लाने में इनके राजनीतिक विश्लेषण का भरपूर इस्तेमाल किया गया। लेकिन जैसे ही इन्होंने केजरीवाल की मनमानी का विरोध किया, तो केजरीवाल ने उनके लिए गाली-गलौच करने तक से भी गुरेज नहीं किया।
टीम केजरीवाल में थिंकटैंक का हिस्सा रहे प्रोफेसर आनन्द कुमार ने जब पार्टी और सरकार में एक व्यक्ति एक पद की बात उठायी तो अरविन्द केजरीवाल भड़क गये। पार्टी के संयोजक पद से इस्तीफे का दांव खेलकर केजरीवाल ने प्रोफेसर आनन्द कुमार, योगेंद्र यादव और प्रशान्त भूषण को एक झटके में पार्टी से निकाल दिया। प्रोफेसर आनन्द कुमार के साथ अजित झा ने भी पार्टी के भीतर लोकतंत्र की आवाज उठायी। आंदोलन और पार्टी में सक्रिय रहे। केजरीवाल ने चर्चित फोन टेप कांड में अजित झा के लिए भी अपशब्द कहे थे। योगेंद्र यादव, आनन्द कुमार, प्रशांत भूषण के साथ-साथ इन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी ने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन लोकपाल आंदोलनÓ साथ ही किया। दोनों ही टीम अन्ना के अहम सदस्य थे, लेकिन 2011 में शुरू हुआ लोकपाल आंदोलन डेढ़ साल बाद जब एक सामाजिक आंदोलन से एक राजनीतिक पार्टी की तरफ बढ़ चला तो किरण बेदी ने राजनीति में आने से इनकार करते हुए केजरीवाल के साथ चलने से मना कर दिया, और केजरीवाल से अलग हो गई। केजरीवाल के तानाशाही रवैये का उन्होंने हमेशा विरोध किया। उसके बाद शाजिया इल्मी, जस्टिस संतोष हेगड़े, एडमिरल रामदास, विनोद कुमार बिन्नी, एमएस धीर, मुफ्ती शमून कासमी किनारे होते गए। फिर भारत में कम कीमत के हवाई यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जी आर गोपीनाथ को भी पार्टी छोडऩी पड़ी। पार्टी छोड़ते हुए गोपीनाथ ने अरविन्द केजरीवाल की कार्यप्रणाली की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पार्टी केजरीवाल के नेतृत्व में रास्ते से भटक गयी है। आज स्थिति यह है की आम आदमी पार्टी के अधिकांश विधायक केजरीवाल और उनकी नीतियों से परेशान हो गए हैं और किसी अन्य पार्टी के सहारे की तलाश में हैं।
तानाशाही से खिन्न मयंक गांधी ने भी साथ छोड़ा
योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और अन्य साथियों को जिस तरह से केजरीवाल ने साजिश के साथ बाहर निकाला था, उसका खुलासा मयंक गांधी ने अपने ब्लॉग में किया। वह जानते थे कि उनकी पारदर्शिता की मांग से एक न एक दिन उन्हें भी केजरीवाल बाहर का रास्ता दिखा ही देंगे। 11 नवंबर 2015 को मयंक गांधी ने भी केजरीवाल की तानाशाही प्रवृति से तंग आकर इस्तीफा दे दिया। अरविंद केजरीवाल ने धोखेबाजी की जिस बुनियाद पर आम आदमी पार्टी की नींव रखी थी, उसकी चूलें अब पूरी तरह डांवाडोल हो चुकी हैं। पंजाब-गोवा में वोटरों को उल्लू बनाने में नाकाम रहने के बाद उन्होंने प्रॉपर्टी टैक्स खत्म करने का लॉलीपॉप दिखाकर एमसीडी चुनाव में नाक बचाने का षड्यंत्र रचा है। लेकिन हकीकत ये है कि दिल्ली की जनता क्या अब उनकी पार्टी के नेताओं तक में वो अपना भरोसा खो चुके हैं। उनकी असलियत जग-जाहिर हो चुकी है। यही वजह है कि एमसीडी से ठीक पहले आप छोडऩे वाले नेताओं की लाइन लग गई है। अरविंद केजरीवाल का मन आईआरएस की नौकरी से ज्यादा अपनी संस्था परिवर्तनÓ में ही लगा रहता था। इसी दौरान उनको मैगसासे अवार्ड मिला। यहां से केजरीवाल को एक नये आंदोलन की रूप-रेखा समझ में आयी और अरुणा राय को छोड़कर अन्ना हजारे के साथ महाआंदोलन में लगे। फिर अन्ना का साथ छोड़ आम आदमी की पार्टी का गठन किया।
मांझी जो नाव डुबोए, उसे कौन बचाए
इससे पहले जनकपुरी के आप विधायक राजेश ऋषि ने भी पार्टी संयोजक को खूब खरी-खोटी सुनाई। मीडिया रिपोट्र्स के अनुसार ऋषि ने अपनी भड़ास निकालने के लिए व्यंग बाण का सहारा लिया। 30 मार्च को उन्होंने ट्वीट किया, मंझधार में नैय्या डोले, तो मांझी पार लगाए, मांझी जो नाव डुबोए, उससे कौन बचाए। एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा, जिस राजा में घमंड होता है, वो राजा अपने राज्य को खुद डुबो देता है। उनका अगला ट्वीट ये था अगर कोई चापलूसों पर भरोसा करता है, तो उसका शासन खत्म होने की तरफ है। अरविंद केजरीवाल अपनी सुविधा की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। समय-समय पर कई संगठनों और व्यक्तियों का उन्होंने सीढिय़ों की तरह इस्तेमाल किया और आगे बढ़ते गए। इस यात्रा में जिस किसी ने भी उनकी सोच का विरोध किया, केजरीवाल ने उनका साथ छोड़ दिया। वो हर किसी को राजनीतिक स्वार्थ में इस्तेमाल करने के बाद दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंकते रहे हैं।
-दिल्ली से रेणु आगाल