राज्यवर्धन पर लगेगा दांव...?
17-Apr-2017 07:22 AM 1234933
राजस्थान में महारानी यानी वसुंधरा राजे के आगे न भाजपा संगठन और न ही संघ की कभी चली है। लेकिन जिस तरह भाजपा की राजनीति में नरेंद्र मोदी और अमित शाह हावी हो रहे हैं, उससे महारानी पर खतरा बढ़ता जा रहा है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि आगामी चुनाव में भाजपा संगठन और संघ महारानी को दरकिनार न कर दे। ज्ञातव्य है कि महारानी ने अपनी जिद के कारण पिछले सालों में संघ को नाको चने चबाने को मजबूर कर दिया था। अब बाजी संघ के हाथ में है। ऐसे में हवा यह चल रही है कि कांग्रेस के युवा प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के मुकाबले भाजपा सूचना प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को अपना नया चेहरा बनाकर प्रस्तुत कर सकती है। राजस्थान में पिछले लंबे समय से हर पांच साल में सत्ता परिवर्तित होते देखी गयी है। इसके अलावा जानकार बताते हैं कि पिछले साढ़े तीन साल में जिस तरह का प्रदर्शन वसुंधरा सरकार का रहा है उसे देखते हुए राज्य में भाजपा को वापसी करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में संभावनाएं जताई जा रही हैं कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कुछ समय बाद राजस्थान में बड़ा बदलाव कर सकता है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर और केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ऐसे ही दो बड़े नाम हैं जो प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। इस कड़ी में अब एक और नाम अचानक से आकर जुड़ गया है। हो सकता है यह इतना प्रचलन में न हो, लेकिन कई मान रहे हैं कि यह नाम राजस्थान में भाजपा के नए चेहरे के लिए कहीं ज्यादा अनुकूल दिखता है। कई जानकार मान रहे हैं कि सूचना प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को भाजपा शीर्ष नेतृत्व राजस्थान में अपना नया चेहरा बनाकर प्रस्तुत कर सकता है। राज्यवर्धन राठौड़ का नाम सामने आना महज इत्तेफाक नहीं है। कई कारण हैं जिनके चलते वे राजस्थान और केंद्र, दोनों के समीकरणों के लिहाज से मुख्यमंत्री पद के लिए फिट नजर आते हैं। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ फौज में कर्नल रहने के साथ ओलंपिक खेलों में पदक जीतकर देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर चुके हैं। इस तरह उनकी जो राष्ट्रवादी छवि उभरकर सामने आयी है वह भाजपा और आरएसएस की विचारधारा से मेल खाने के साथ आमजन को भी खासा प्रभावित करती है। इसके अलावा बीते साल सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से सेना को लेकर खूब बात हो रही है। जानकारों का मानना है कि हालिया विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए जो पाकिस्तान विरोधी माहौल तैयार किया था उसका उसे भरपूर फायदा मिला है। ऐसे में यदि भाजपा राठौड़ की सैनिक छवि को भुनाते हुए उन्हें सच्चे राष्ट्रभक्त की तरह जनता के सामने प्रस्तुत करती है तो उसे निश्चित तौर पर इसका लाभ मिलेगा। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ राजपूत समाज से ताल्लुक रखते हैं। यदि राजस्थान के वर्तमान मंत्रिमंडल पर नजर डाली जाए तो उसमें राजपूत नेताओं ने बड़ा स्थान घेर रखा है। इसके अलावा वोटों की संख्या के हिसाब से भी राजपूत समुदाय महत्वपूर्ण है। ऐसे में जानकार कहते हैं कि राजघराने से ताल्लुक रखने वाली वसुंधरा राजे को हटाने से यदि राजपूत विधायक और पुराने रजवाड़ों से जुड़े लोग रुष्ट होते हैं तो राठौड़ उन्हें मनाने में सफल रहेंगे। राजस्थान की राजनीति के इतिहास पर नजर डालें तो इससे पहले भी वहां पर राजपूत मुख्यमंत्रियों को सहर्ष ही स्वीकार किया जाता रहा है। राजे के अलावा पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत की बात की जाए तो वे राजस्थान की राजनीति में बतौर मुख्यमंत्री लंबी पारी खेल चुके है। ऐसे में विधानसभा चुनावों के दौरान जो जातिगत समीकरण बन सकते हैं राठौड़ उनमें आसानी से फिट होते दिखते हैं। आमतौर पर किसी नेता को कोई बड़ा पद देने के पीछे उससे जुड़ी मजबूत राजनैतिक पृष्ठभूमि देखी जाती है। लेकिन जानकार मानते हैं कि ऐसी कोई पृष्ठभूमि न होना भी राठौड़ के लिए के लिए फायदेमंद साबित होगी। युवा चेहरा और सचिन पायलट का तोड़ पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट प्रदेश में बड़ा चेहरा बनकर सामने आए हैं। युवा होने के साथ-साथ अपनी कड़ी मेहनत और प्रबंधक के रूप में मजबूत छवि के चलते वे कुछ ही वर्षों में जनता के बीच खासे पसंद किए जाने लगे हैं। जानकारों का मानना है कि अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस, पायलट को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाए या न बनाए लेकिन, वे बड़ी संख्या में वोटों को कांग्रेस की तरफ जरूर खींच ले जाएंगे। ऐसे में भाजपा को प्रदेश में जल्द ही कोई ऐसा चेहरा उतारना होगा जो पायलट की काट बन सके। जानकारों की मानें तो राज्यवर्धन सिंह राठौड़ पायलट को टक्कर देने के लिहाज से एक सटीक विकल्प नजर आते हैं। उनका कहना है कि युवा होने के साथ राठौड़ का ऊर्जावान व्यक्तित्व प्रदेश के युवाओं के साथ सामान्य वोटर को रिझाने में सफल रहेगा। इसके अलावा पायलट और राठौड़ में संयोगवश कुछ समानताएं भी हैं जो चुनावी समीकरणों के लिहाज से ना सही लेकिन मनोवैज्ञानिक तौर पर राठौड़ को पायलट का विकल्प बनाकर पेश करती हैं। -जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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