17-Apr-2017 07:11 AM
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रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के रखीना इलाके से हैं। रखीना देश के पश्चिमी तट पर है। पर वे वहां के नागरिक नहीं माने जाते क्योंकि म्यांमार उन्हें अधिकारिक एथनिक समूह नहीं मानता। सरकार का दावा है कि ये बांग्लादेश से आए बंगालीÓ शरणार्थी हैं। पर बांग्लादेश उन्हें बंगाली नहीं मानते, इसलिए इस समुदाय को दोनों देशों में विरोध झेलना पड़ रहा है। म्यांमार की सभी सरकारों ने रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता और मानव अधिकारों से बाकायदा मना किया है। म्यांमार की सेना, देश की सीमा पुलिस और कुछ बौद्ध चरमपंथी गुटों ने उन पर अनगिनत अत्याचार किए हैं।
2012 में उन पर जबर्दस्त हिंसा हुई और नतीजतन 1 लाख रोहिंग्या को म्यांमार से भागना पड़ा। उन्होंने बांग्लादेश, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया और भारत जैसे पड़ोसी देशों में शरण लेनी पड़ी। अक्टूबर 2016 में फिर हिंसा हुई और 66 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश भागे, जबकि कुछ को म्यांमार में आईडीपी कैंप्स में रहने को मजबूर किया गया। सेना ने उस साल उन पर खूब अत्याचार किए। इनमें आगजनी, पूरे परिवार की हत्या, गैंग रेप, उन 50 महिलाओं का रेप, जिनसे बात की गई, अवयस्कों और 8 महीने तक के शिशुओं की हत्या शामिल है। यूएनएचसीआर के आंकड़ों (अक्टूबर 2016) के अनुसार उनके यहां म्यांमार के 19 हजार शरणार्थी रजिस्टर्ड हैं। उनमें 10 हजार रोहिंग्या समुदाय से हैं, जिन्हें किसी देश का नागरिक नहीं माना गया है। वे 2012 से जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान जैसे भारत के विभिन्न भागों में रह रहे हैं।
दिसंबर 2016 से जम्मू और कश्मीर नेशनल पेंथर पार्टी (जेकेएनपीपी) और भाजपा रोहिंग्या मुसलमानों को राज्य से निकालने के लिए आंदोलनरत हैं। जम्मू शहर और उसके आसपास होर्डिंग्स लगाए गए हैं। इनमें रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों को इलाका छोडऩे के लिए कहा गया है। ऐसा लगता है, जेकेएनपीपी और भाजपा रोहिंग्या को बांग्लादेशी मुसलमान मानती हैं। इन होर्डिंग्स पर जेकेएनपीपी नेताओं की तस्वीरें हैं, जो स्थानीय लोगों को जागनेÓ को प्रेरित कर रही हैं। उन्होंने रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को जम्मू छोड़ोÓ के नोटिस जारी किए हैं। उन्होंने स्थानीय लोगों को इतिहास, संस्कृति और डोगरा की पहचान बचाने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया है।Ó जेकेएनपीपी और भाजपा नेताओं का आरोप है कि रोहिंग्या के आतंकियों से संबंध हैं, जबकि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे। जम्मू-कश्मीर के गृहमंत्री के बयान के बावजूद कि रोहिंग्या आतंकियों में शामिल नहीं थे, उन पर जम्मू में बाकायदा मुहिम चलाई गई। रोहिंग्या को अपराधी, कानून तोडऩे वाले और गैरकानूनी प्रवास करने वाले बताकर बदनाम किया जा रहा है।
दिहाड़ी मजदूरी, फैक्टरी, सेनिटेशन और मॉल, होटलों और दुकानों में साफ-सफाई का काम करके बहुत ही कम कमाने वाले रोहिंग्या समुदाय को अपने अवैध निवास से बराबर खदेड़ा जा रहा है। स्थानीय पुलिस ने कुछ रोहिंग्या को बिना किसी सुनवाई और सही प्रक्रिया के पब्लिक सेफ्टी एक्ट के अधीन कैद किया है। यह कार्रवाई उचित नहीं है। इससे रोहिंग्या में डर का माहौल बना हुआ है।
1995 में भी कुछ ऐसे ही हालात हो गए थे। ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन ने अरुणाचल प्रदेश में बसे चकमा शरणार्थियों को निकलने का नोटिस दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को राज्य में हर चकमा का जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चितÓ करने के निर्देश दिए थे और कहा था कि राज्य से जबरन बाहर निकालने की ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन जैसे संगठनों की कोशिश का विरोध किया जाएगा।
भाजपा अधिकारों की रक्षक
2014 में राज्य चुनाव के दौरान भाजपा ने खुद को बड़े जोश से जम्मूवासियों के अधिकारों का रक्षकÓ बताया था। इनमें ज्यादातर हिंदू हैं। भाजपा के नेताओं का दावा है कि रोहिंग्या मुसलमानों को नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस दोनों पार्टियां जम्मू की जनसांख्यिकी बिगाडऩे के लिए जम्मू लाई थीं। केद्र की भाजपा सरकार पर पार्टी वालों का दबाव है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू से निकाले। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार राज्य के इस कदम में हस्तक्षेप करती है या नहीं।
-विशाल गर्ग