17-Apr-2017 07:17 AM
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दरअसल प्रदेश में कुछ अफसरों की कार्यप्रणाली के कारण सरकार की छवि धूमिल हो रही है। इससे प्रदेश में विकास के जितने भी कार्य हो रहे हैं उन पर पानी फिर रहा है। समाधान ऑनलाईन के दौरान जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लोगों की समस्याएं सुन रहे थे उस समय महाराष्ट्र की एक सिक्युरिटी सर्विसेज का मामला सामने आया। सिक्युरिटी एजेंसी के उमाशंकर रघुनंदन मिश्रा ने सिक्युरिटी सर्विसेज लायसेंस के लिए आवेदन किया था। एजेंसी ने लाइसेंस के लिए स्पेशल डीजी अशोक दोहरे से लेकर एसीएस गृह केके सिंह तक का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई। यही नहीं उससे कहा गया कि प्रदेश में पहले से ही 1,048 सिक्युरिटी एजेंसियां कार्यरत हैं, ऐसे में तुम्हें कैसे लायसेंस दिया जाए। करीब डेढ़ साल तक एजेंसी के पदाधिकारी अफसरों के चक्कर लगाते रहे, लेकिन अंत में उसका लायसेंस निरस्त कर दिया गया।
मामला एक आम आदमी से जुड़ा हुआ था। अत: मामले को सुनते ही मुख्यमंत्री आग बबूला हो गए और एक तीर से कई निशाने साधते हुए अधिकारियों की जमकर क्लास ली। उन्होंने समाधान ऑनलाइन में स्पेशल डीजी अशोक दोहरे द्वारा सिक्युरिटी एजेंसी को लायसेंस न दिए जाने पर नाराजगी जताई। मुख्यमंत्री ने दोहरे को एडीजी कहते हुए संबोधित किया तो एसीएस केके सिंह ने कहा ये डीजी रैंक के अधिकारी हैं। फिर क्या मुख्यमंत्री ने दोहरे पर सवालों की झड़ी लगा दी। मुख्यमंत्री के सवालों को सुनकर दोहरे ठीक ढंग से जवाब नहीं दे पा रहे थे ऐसे में अपर मुख्य सचिव गृह केके सिंह ने बात संभाली। उन्होंने कहा कि मिश्रा दोबारा आवेदन करें उन्हें लायसेंस दे दिया जाएगा। इस पर मुख्यमंत्री बोले- क्या वो आपके कक्ष तक पहुंच पाएगा? मुख्यमंत्री का सवाल सुनकर अपर मुख्य सचिव भी बगले झांकने लगे। दरअसल मुख्यमंत्री ने अपने इस सवाल से प्रदेश की नौकरशाही की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है। सवाल वाजिब भी है। क्योंकि प्रदेश के कई नौकरशाह ऐसे हैं जो अपने पास आम आदमी को फटकने तक नहीं देते हैं।
अब उक्त सिक्युरिटी एजेंसी का लायसेंस बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। डीजी रैंक के अधिकारी एक आम आदमी की एजेंसी का लायसेंस बनाएंगे और अपर मुख्य सचिव उसे अपने हाथों से उस एजेंसी के संचालक को सौंपेंगे। अगर अधिकारियों ने पहले ही लायसेंस की प्रक्रिया पूरी कर दी होती तो आज उन्हें इस फजीहत का सामना नहीं करना पड़ता। आगामी साल में प्रदेश में विधानसभा चुनाव है। मुख्यमंत्री चाहते हैं कि प्रदेश के अधिकारी आम जनता के हितों को देखते हुए काम करे, लेकिन प्रदेश में कुछ अफसर ऐसे हैं जिनके कक्ष तक आम आदमी का पहुंचना मुश्किल है। मुख्यमंत्री के सख्त तेवर की यह भी एक वजह है।
प्रदेश में 1 मई से पॉलिथीन बैन
नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान नमामि देवी नर्मदे यात्रा के बाद मुख्यमंत्री ने अब पूरे प्रदेश में पॉलीथिन बैन करा दी है। गत दिनों हुई कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रदेश में एक मई से पॉलीथिन कैरी बैग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग जाएगा। सिर्फ उन्हीं पॉलीथिन को मंजूरी होगी जो पैकेजिंग के आवश्यक भाग के रूप में निर्मित होती है। यानी जिनमें पैक्ड आयटम होते हैं। जिसमें सामग्री को उपयोग से पूर्व सीलबंद किया जाता है। इसके अलावा प्लास्टिक से बने उत्पाद (कुर्सी, टेबल, आलमारी या घरेलू चीजों) को छूट मिलेगी। दरअसल पॉलिथीन से पर्यावरण दूषित हो रहा है, जमीन की उत्पादकता कम हो रही है, गायों में रोग फैल रहे हैं जिससे उनकी मौत हो रही है और नदी-तालाब प्रदूषित हो रहे हैं। इसको देखते हुए सरकार ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया है। अब जल्द ही कार्यवाही और जुर्माने की रूपरेखा को अमल में लाने की कवायद शुरू होगी। कैबिनेट ने पॉलीथिन के उपयोग से जुड़े मप्र जैव अनाशय अपशिष्ट (नियंत्रण) संशोधन अध्यादेश 2012 को मंजूरी दे दी। इससे पहले 2004 में इस अध्यादेश में संशोधन हुआ था। राज्य सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि सीलबंद पैकेज पॉलीथिन का एक बार उपयोग होने के बाद उसे री-साइकिल नहीं किया जा सकेगा। यहां बता दें कि 23 दिसंबर 2014 को मुख्य सचिव की वरिष्ठ सचिव समिति ने इसे मंजूरी दे दी थी कि चाहे किसी भी माइक्रोन का पॉलीथिन कैरी बैग होगा, वह प्रतिबंधित रहेगा।
ज्ञातव्य है कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पॉलीथिन बैन करने की घोषणा की थी। उल्लेखनीय है कि मप्र के पर्यटन, धार्मिक और सांस्कृतिक शहरों में 1 जुलाई 2015 से ही पॉलीथिन पर पाबंदी लगी हुई है। पूरे प्रदेश में लागू होने के बाद सख्ती से इसकी मॉनिटरिंग होगी। ताकि पाबंदी का उल्लंघन होने पर कार्रवाई की जा सके।
इसके साथ ही कैबिनेट में फैसला लिया गया है कि, अखिल भारतीय सेवा और राज्य की सेवाओं के अफसरों और कर्मचारियों पर विभिन्न मामलों में विभागों में लंबित अभियोजन की स्वीकृति दिए जाने के नियमों को सरल किया जाएगा। फिलहाल तीन महीने में विभाग द्वारा अभियोजन की स्वीकृति दिए जाने की व्यवस्था है। इसके अलावा नार्थ और साउथ टीटी नगर की जमीन स्मार्ट सिटी को दिए जाने के बारे में भी निर्णय लिया गया। सीएम यंग प्रोफेशनल फॉर डेवलपमेंट योजना शुरू की जाएगी। इस टीम के लिए 35 साल से कम उम्र के युवाओं को मौका दिया जाएगा, जो सरकार को नए आइडियाज देगी और सरकार के लिए काम करेंगी। सीएम शिवराज सिंह चौहान खुद इस टीम को फॉलो करेंगे। भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की 100 सीटें बढ़ाई जाएगी। कैबिनेट में छिंदवाड़ा, रतलाम, शहडोल, शिवपुरी, खंडवा और विदिशा में नए मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए पद सृजन, उपकरण, फर्नीचर आदि की खरीदी का प्रस्ताव मंजूर किया गया। दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना के लिए एक रुपये किलो की दर पर गेहूं, चावल सप्लाई के साथ ही नमक और शक्कर भी मुहैया कराने के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर लगी। इंदौर से एमवाई अस्पताल में बोनमेरो ट्रांसप्लांट की अनुमति दी गई है साथ ही विधि विभाग में 6 नए पदों का मंजूरी दी गई है।
हमारी पुलिस एक्सिलेंस
मध्यप्रदेश पुलिस को लेकर आपके मन में भले ही कई आशंकाएं-कुशंकाएं हों, लेकिन प्रदेश के आला अधिकारियों की नजर में हमारी पुलिस एक्सिलेंस है। दरअसल केंद्र सरकार की 15 व 25 वर्ष की सेवा या 50 वर्ष की आयु पूरी कर चुके नाकारा अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्त करने की कवायद के लिए प्रदेश के आईपीएस अधिकारियों की स्क्रूटनी में यह तथ्य सामने आया है कि यहां के आईपीएस की परफारमेंस एक्सिलेंस है। मुख्य सचिव बीपी सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर राजस्थान के डीजी (जेल) अजीत सिंह, अपर मुख्य सचिव गृह केके सिंह, डीजीपी ऋषि शुक्ला समेत अजा-अजजा प्रतिनिधि के तौर पर महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया शामिल थे। इस अवसर पर अधिकारियों द्वारा 15 और 25 वर्ष की सेवा तथा 50 वर्ष की उम्र पार कर चुके 149 अधिकारियों के रिकार्ड का परीक्षण किया गया। दो घंटे से अधिक समय तक चली बैठक में अधिकारियों की पांच वर्ष की सीआर का परीक्षण किया गया, लेकिन किसी भी अधिकारी का पांच साल का रिकार्ड खराब नहीं मिला। सभी अधिकारियों की सीआर को डीजीपी ने अच्छा और उत्कृष्ट लिखा है। जिससे कमेटी ने किसी भी नाम को अनिवार्य सेवानिवृत्त देने की सिफारिश नहीं की। इससे ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश के आईपीएस अधिकारी बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। बताया जाता है कि केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि और राजस्थान के डीजी अजीत सिंह ने बैठक में कहा भी कि मध्यप्रदेश में पुलिस विभाग का काम बहुत अच्छा चल रहा है। बड़ा सवाल यह है कि यदि सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है तो कुछ जिलों से भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतें क्यों आ रही है। बैठक में प्रदेश के चार अधिकारियों एडीजी शैलेष सिंह, डीआईजी मयंक जैन, आईजी शहडोल डीके आर्य और डीआईजी आर के शिवहरे के विरूद्ध मिली शिकायतों और चल रहे प्रकरणों पर भी चर्चा हुई। शैलेष सिंह के खिलाफ उनके परिजनों ने थाने में शिकायत दर्ज कराई है। मयंक जैन के खिलाफ लोकायुक्त में आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण दर्ज है इसकी जांच चल रही है। शिवहरे पर व्यापमं घोटाले में शामिल होने का प्रकरण दर्ज है। इसी माह 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, इस कारण अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए नाम पर विचार ही नहीं किया गया। डीके आर्य की सीआर में की गई विपरीत टिप्पणी पर भी विचार नहीं हुआ। आर्य आगामी 30 जून को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। कुल मिलाकर स्कू्रटनी कमेटी में शामिल अधिकारियों ने अपने अफसरों को पूरी तरह पाक-साफ माना। उधर इस बार प्रदेश में राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस और राज्य पुलिस सेवा से आईपीएस की डीपीसी अगले सप्ताह एक साथ की जाएगी इसके लिए शासनस्तर पर तैयारी चल रही है।
-विशाल गर्ग